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Top 20 Short Story in Hindi For Class 6 हिंदी में लघु कहानी

    Top 20 Short Story in Hindi For Class 6 हिंदी में लघु कहानी

    Short Story in Hindi For Class 6:- Here I’m sharing the top 20 Short Story in Hindi For Class 6 which is very valuable and teaches your kids life lessons, which help your children to understand the people & world that’s why I’m sharing with you.

    यहां मैं बच्चों के लिए हिंदी में नैतिक के लिए शीर्ष कहानी साझा कर रहा हूं जो बहुत मूल्यवान हैं और अपने बच्चों को जीवन के सबक सिखाते हैं, जो आपके बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने में मदद करते हैं इसलिए मैं आपके साथ हिंदी में नैतिक के लिए कहानी साझा कर रहा हूं।

    Table of Contents

    Hindi Story for Class 6 – वैज्ञानिक की ईश्वरनिष्ठा

    संसार के अग्रणी वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन को वर्ष 1921 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह जीवन के अंतिम समय तक नई-नई खोजों में तो लगे ही रहे, ईश्वर के प्रति भी उनकी अटूट निष्ठा बनी रही।

    एक बार आइंस्टीन बर्लिन हवाई अड्डे से विमान में सवार हुए। वायुयान जब ऊपर पहुँचा, तो उन्होंने अपनी जेब से एक माला निकाल ली। उनकी बगल की सीट पर बैठे एक युवक ने यह देखा, तो वह आश्चर्य में पड़ गया।

    उसने धीरे से उनसे कहा, ‘आज हमारे युग में अनेक वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं। आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों का युग है और आप जैसा युवक माला जपकर दकियानूसी होने का परिचय दे रहा है।’

    उस युवक ने अपना कार्ड निकालकर उन्हें दिखाया और बोला, ‘मैं अंधविश्वास और ईश्वर के अस्तित्व के विरुद्ध अभियान में लगा हूँ। आप भी इसमें सहयोग करें। ‘

    आइंस्टीन उस युवक की बातें सुनकर मुसकराए और अपना कार्ड निकालकर उसे दिया । कार्ड पर जैसे ही उसने ‘अलबर्ट आइंस्टीन’ शब्द पढ़ा, तो हक्का-बक्का रह गया।

    वह तुरंत श्रद्धापूर्वक उनके चरणों में झुक गया। वर्ष 1930 में जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर आइंस्टीन से मुलाकात करने बर्लिन गए, तो उस भेंट में दोनों महापुरुषों ने ईश्वर और धर्म के संबंध में चर्चा की थी ।

    आइंस्टीन ने कहा था, ‘मैं ईश्वर के अस्तित्व की अनुभू कर चुका हूँ। अतः गर्व से अपने को धार्मिक कहता हूँ।’

    Hindi Story for Class 6 – अनूठी सहृदयता

    जवाहरलाल नेहरू अपने परिचितों के दुःख-दर्द के बारे में सुनकर द्रवित हो उठते थे। एक बार नेहरूजी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने लखनऊ पहुँचे।

    वहाँ पहुँचकर उन्हें पता लगा कि लालबहादुर शास्त्रीजी की बेटी चेचक से पीड़ित थी और आर्थिक वजहों से समुचित इलाज न हो पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

    शास्त्रीजी उन दिनों लखनऊ में ही थे। नेहरूजी तत्काल शास्त्रीजी के पास पहुँचे और उन पर क्रुद्ध होते हुए बोले, ‘यह बहुत दुःखद है कि धनाभाव के कारण तुम अपनी बेटी का उचित इलाज नहीं करा पाए और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

    मुझ जैसे किसी सहयोगी से कहते, तो तुरंत धन की व्यवस्था की जा सकती थी।’ यह कहते-कहते उनकी आँखें नम हो गईं।

    एक बार नेहरूजी किसी समारोह में भाग लेने जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक युवक किसी वाहन से टकराकर खून से लथपथ सड़क किनारे पड़ा है और कुछ लोग तमाशबीन बने उसे घेरे हुए हैं।

    नेहरूजी ने अपनी कार रुकवाई, उन्हें पहचानते ही कुछ लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। नेहरूजी ने नारा लगाने वालों को बुरी तरह फटकारते हुए कहा, ‘जय-जय क्या चिल्ला रहे हो । इस घायल को तड़पते देखकर भी तुममें से किसी का कलेजा नहीं पिघला, जो इसे अस्पताल पहुँचाते?’

    नेहरूजी ने अपनी कार से घायल व्यक्ति को पहले अस्पताल पहुँचवाया, फिर वे समारोह में गए।

    Hindi Story for Class 6 – अनूठी सेवा भावना

    गीता मर्मज्ञ सद्गृहस्थ संत जयदयाल गोयंदका ने आजीवन गीता का प्रचार करने का संकल्प लिया था। इसी उद्देश्य से गीता प्रेस गोरखपुर ) की स्थापना की गई थी।

    उन्होंने स्वयं भी अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की । वे प्रायः कहा करते थे, ‘पीड़ितों की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। जिसका हृदय दूसरे के दुःख को देखकर द्रवित नहीं होता, वह धार्मिक हो ही नहीं सकता।’

    एक बार वह अपनी जन्मस्थली चुरु ( राजस्थान) में ठहरे हुए थे। उन्हें पता लगा कि गरीब दलितों की बस्ती में आग लग गई है। उनका सबकुछ राख हो गया है। यह सुनते ही गोयंदकाजी का हृदय द्रवित हो उठा।

    वे अपने साथियों को लेकर घटनास्थल पर पहुँचे। पीड़ितों की अन्न व वस्त्रादि से सहायता की । धर्मशाला में उन्हें ठहरने की व्यवस्था की और अपने धन से उन लोगों के लिए पुनः झोंपड़ियाँ बनवाईं।

    कुछ दिनों बाद उस बस्ती में फिर आग लग गई। इस बार भी गोयंदकाजी ने उन लोगों की झोंपड़ियाँ बनवा दीं। किसी व्यक्ति ने उनसे कहा, ‘बार-बार झोंपड़ियाँ बनवाने की जिम्मेदारी क्या आपने ही ली है?’

    उन्होंने कहा, ‘यदि कोई बार-बार बीमार होता है, तो क्या उसका इलाज नहीं कराया जाता? इसी प्रकार हमें यह मानना चाहिए कि हम आपदाग्रस्त लोगों की सेवा कर भगवान् की ही पूजा-उपासना कर रहे हैं । ‘ गोयंदकाजी ने आजीवन दरिद्रों की सेवा अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा की तरह की ।

    Hindi Story for Class 6 – त्यागभूमि नहीं कर्मभूमि

    विख्यात स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार पंडित हरिभाऊ उपाध्याय के आमंत्रणपर लाला लाजपतरायजी 1927 में अजमेर पधारे। वहाँ राष्ट्रीय आंदोलन के संबंध में लालाजी का बड़ा प्रभावी भाषण हुआ।

    हरिभाऊजी को उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार के लिए प्रकाशित पत्रिका का नाम त्यागभूमि की जगह कर्मभूमि होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि त्याग और वैराग्य के उपदेश की जगह भगवान् श्रीकृष्ण के गीता के संदेश को अपनाने और निरंतर कर्म करते रहने की प्रेरणा देने की आवश्यकता है।

    कुछ क्षण रुककर पंजाब केसरी लालाजी ने कहा, ‘हमने अपने देश का त्याग कर उसे विदेशियों को सौंप दिया । अपनी धन-दौलत उन्हें दे दी। त्याग के चक्कर में हमने अपने स्वर्ग समान राष्ट्र की बहुत हानि की है।

    हमने श्रीकृष्ण के कर्म और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के संदेश को भुला दिया है। इसी का दुष्परिणाम है कि हम त्याग के नाम पर सबकुछ लुटाकर स्वयं बेबस बने विदेशी शासन का अत्याचार सहन कर रहे हैं।’ लालाजी के ओजपूर्ण शब्द सुनकर पंडित हरिभाऊजी नतमस्तक हो उठे।

    लालाजी लाहौर में साइमन कमीशन के बहिष्कार जुलूस का नेतृत्व करते हुए पुलिस की लाठियों से घायल हुए। उन्होंने कहा था, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत की आखिरी कील साबित होगी।’ 17 नवंबर, 1928 को उन्होंने शरीर त्याग दिया और अमर हो गए।

    Hindi Story for Class 6 – सत्संग का प्रभाव

    धर्मसंघ के संस्थापक स्वामी करपात्रीजी भारत विभाजन की योजना के विरोध में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार किए गए। उन्हें कुछ दिनों के लिए लाहौर की जेल में रखा गया। स्वामीजी कैदियों को प्रतिदिन प्रार्थना कराया करते थे, ‘भगवान्, हमें पाप कर्मों से बचाकर अच्छा व्यक्ति बनाओ।’

    एक कैदी स्वामीजी के संपर्क में आया और उनके त्यागमय जीवन और प्रवचन से काफी प्रभावित हुआ । उसने एक दिन स्वामीजी से कहा, ‘महाराज, सजा पूरी होने के बाद मैं जेल से छूट जाऊँगा। कोई ऐसा उपाय बताइए कि मुझसे कोई बुरा कर्म न होने पाए। ‘

    स्वामीजी ने कहा, ‘किसी दुर्व्यसनी का संग न करने और परिश्रम से कमाई करने का संकल्प ले लो । प्रतिदिन सवेरे भगवान् का स्मरण कर उनसे प्रार्थना किया करो कि कोई पाप न होने पाए । संतों का सत्संग करना । धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना। तुम्हारा जीवन सुखमय हो जाएगा।’

    स्वामी करपात्रीजी लाहौर जेल से रिहा किए गए, तो वे पुनः धर्म प्रचार में लग गए। कुछ वर्ष बाद उन्होंने एक सम्मेलन में हिस्सा लिया। सम्मेलन के एक सत्र का संचालन करने वाले व्यक्ति ने स्वामीजी का स्वागत करते हुए कहा,

    ‘पूज्य स्वामीजी उस पारस के समान दिव्य हैं, जिसके स्पर्श मात्र से लोहा सोना बन जाता है। मैं लाहौर जेल में स्वामीजी के संपर्क में आया। इनके सत्संग के कारण मैं आज अपराध करने के बजाय शिक्षक बनकर धर्म के प्रचार में जुटा हूँ।’

    सम्मेलन के बाद वह स्वामीजी के पास पहुँचा | स्वामीजी ने उसे गले से लगा लिया।

    Hindi Story for Class 6 – मुनिश्री का अनूठा प्रभाव

    विख्यात जैन मुनि आचार्य सुदर्शनजी महाराज गाँवों और नगरों में पदयात्रा कर लोगों को दुर्व्यसनों को त्यागने और सदाचार का पालन करने की प्रेरणा दिया करते थे ।

    उन्होंने विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन किया था। वे प्रायः कहा करते थे कि जब तक मांस-मदिरा तथा अन्य नशी पदार्थों का त्याग करके सात्त्विक और शुद्ध जीवन नहीं अपनाओगे, तब तक आत्मिक उन्नति असंभव है। प्रत्येक धर्म का यही सार है कि जीवन को पवित्र और शुद्ध बनाओ।

    एक बार मुनिश्री शिष्य मंडली के साथ पंजाब के एक गाँव में शाम के समय पहुँचे। उन्हें पता चला कि यहाँ के सभी ग्रामीण सिख हैं। रात बिताने की व्यवस्था गुरुद्वारे में की गई।

    गुरुद्वारे में एक सिख ग्रंथी ने सभी मुनियों से भोजन करने के लिए आग्रह किया, तो उन्होंने कहा, ‘हम सूर्यास्त से पूर्व मात्र एक बार भिक्षा माँगते हैं। रात में ज भी ग्रहण नहीं करते । ‘

    सवेरा होते ही ग्रंथी ने मुनिश्री से प्रार्थना की, ‘महाराज, गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहब के समक्ष सिर ढककर खड़े रहने का नियम है। ‘

    मुनिश्री ने सहर्ष सभी को ऐसा करने का आदेश दिया। सभी मुनिगण ग्रंथ साहब के समक्ष नतमस्तक हुए। मुनिश्री ने गुरु ग्रंथ साहब का अध्ययन किया हुआ था।

    उन्होंने गुरुवाणी पर प्रभावी प्रवचन किया और दुर्व्यसनों-नशा सेवन के दुष्परिणाम बताए। सभी उनके प्रवचन सुनकर अभिभूत हो उठे। मुनिगण नियमानुसार सिख घरों से भिक्षा प्राप्त करने गए सभी ने उन्हें श्रद्धा से भोजन दिया। अगले दिन उन्हें आदर सहित विदा किया गया ।

    Hindi Story for Class 6 – सेवा ही धर्म है

    आयरलैंड में एक पादरी के परिवार में जन्मी मारग्रेट एलिजाबेथ नोबल स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर भारत आईं। 25 मार्च, 1898 को मार ने स्वामीजी से दीक्षा ग्रहण की ।

    स्वामीजी ने उनका नामकरण किया ‘भगिनी निवेदिता । स्वामीजी ने भगिनी निवेदिता को गीता, महाभारत, रामचरितमानस आदि का अध्ययन कराया और भारत के इतिहास, धर्म व संस्कृति से अवगत कराया।

    भगिनी निवेदिता ने अपना संपूर्ण जीवन भारत में रहकर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगा दिया।

    भगिनी निवेदिता जब पहली बार गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के निवास पर पहुँचीं, तो परिचय प्राप्त करने के बाद रवींद्र बाबू ने अपनी पुत्री को बुलाया और निवेदिता से कहा, ‘तुम मेरी बेटी को अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति का अध्ययन कराओ।’

    निवेदिता ने विनम्रता से कहा, ‘गुरुदेव, मैं स्वयं अंग्रेजीयत का त्याग कर भारतीय बन गई हूँ। ऐसी स्थिति में आप मुझसे यह अपेक्षा न रखें कि मैं भारत जैसे महान् देश में किसी विदेशी भाषा या संस्कृति का शिक्षण दूँगी । ‘

    रवींद्र बाबू अंग्रेज युवती की भारत भक्ति देखकर हतप्रभ रह गए। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि वे भारत तथा भारतीयता की सेवा के अपने संकल्प को पूरा करें। बंगाल में एक बार भीषण बाढ़ आई ।

    भगिनी निवेदिता को बाढ़ पीड़ितों की सेवा करते देख रवींद्र बाबू ने कहा, ‘बेटी, तुमने वास्तव में अपने गुरु के सूत्र, सेवा ही धर्म है, को साकार रूप देकर अपना जीवन सफल बना लिया है। ‘

    Hindi Story for Class 6 – आँखें नम हो गईं

    गांधीजी के अनन्य सहयोगी काका कालेलकर ने अनेक बार स्वाधीनता आंदोलन के सिलसिले में जेल यातनाएँ सहन की थीं। वे विदेशी शासन की कारगुजारियों के विरुद्ध खुलकर लेख लिखते थे।

    वे गांधीजी के आश्रम में रहकर स्वदेशी और स्वदेश का महत्त्व प्रकट करनेवाला साहित्य सृजन करते थे। एक बार काका साहब को गिरफ्तार कर साबरमती की जेल में रखा गया।

    उसी दौरान काका साहब के दोनों पुत्रों सतीश और बाल ने गांधीजी की दांडी यात्रा में शामिल होकर गिरफ्तारियाँ दीं। उन दोनों को भी उसी जेल में भेजा गया। काका साहब को इसकी जानकारी नहीं थी । पुत्र भी इस बात से अनजान थे कि उनके पिता इसी जेल में हैं।

    एक दिन सतीश और बाल जेल के पुस्तकालय में स्वदेशी पुस्तकों की तलाश में पहुँचे। उन्होंने एक व्यक्ति को अध्ययन में लीन देखा । तीनों की जैसे ही आँखें मिलीं कि वे सब हतप्रभ रह गए।

    काका साहब ने पुत्रों को गले लगाते हुए कहा, ‘मैं तुम दोनों को अपने पथ का अनुकरण करते देखना चाहता था। तुम्हें कैदियों के वस्त्र पहने देख प्रभु ने मेरी अभिलाषा पूरी कर दी ।

    मुझे संतोष है कि तुम दोनों ने मातृभूमि की स्वाधीनता के यज्ञ में शामिल होकर हमारे कुल को पवित्र कर दिया।’ कहते-कहते काका साहब की आँखें नम हो गईं।

    काका कालेलकर ने राष्ट्रभाषा हिंदी, स्वदेशी और दलितों-पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन खपाया। उन्होंने अनेक देशों की यात्रा कर भारतीय संस्कृति का प्रचार किया।

    Hindi Story for Class 6 – अनूठी सादगी

    देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की धर्म व भारतीय संस्कृति में अनूठी निष्ठा थी । वे अपने भाषणों में प्रायः कहा करते थे कि भारतीय संस्कृति मानवता, करुणा,

    सत्य और अहिंसा रूपी सद्गुणों को अपनाने की प्रेरणा देती है। गांधीजी के सान्निध्य में रहकर उन्होंने सत्य पर अडिग रहने का संकल्प लिया था।

    राजेंद्र बाबू समय-समय पर संतों के सत्संग के लिए भी जाया करते थे। देवरहा बाबा, माँ आनंदमयी जैसी विभूतियों के दर्शन कर वे बहुत संतुष्ट होते थे। राजेंद्र बाबू ने संकल्प लिया था कि वे चमड़े से बने जूते नहीं पहनेंगे।

    एक बार उनके जूते पुराने पड़ गए, तो उनका सचिव बाजार जाकर नए जूते खरीद लाया । राजेंद्र बाबू ने देखा कि जूता मुलायम चमड़े कर बना है और कीमती है।

    उन्होंने सचिव से कहा, ‘मैं कपड़े के जूते ही पहनता हूँ। चमड़े के जूते मैं नहीं पहनता । यदि संभव हो, तो इन्हें लौटा दो।’ कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, ‘केवल जूते लौटाने के लिए इतनी दूर सरकारी गाड़ी से न जाना । जब किसी अन्य काम से बाजार जाओ, तब जूते लौटा आना।’

    राजेंद्र बाबू चरखे पर स्वयं के काते गए सूत से बुने कपड़े ही पहनते थे। इस बारे में पूछे जाने पर वे कहा करते थे, ‘हमने स्वाधीनता से पूर्व स्वदेशी खादी का प्रचार किया था । इसलिए देश के स्वाधीन होने के बाद हमें स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए । ‘

    Hindi Story for Class 6 – संन्यासी का स्वदेश प्रेम

    विरक्त संत स्वामी कृष्णबोधाश्रमजी ने बचपन में ही अपनी विशेष पोशाक पहनने और संस्कृत व हिंदी भाषा पर गर्व करने का संकल्प लिया था। साधु बनने के बाद स्वामीजी धर्म प्रचार के लिए जहाँ भी जाते, तो वहाँ श्रद्धालुओं को स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करते थे।

    एक बार मथुरा जिले के किसी नगर में उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा, ‘ब्रजभूमि भगवान् श्रीकृष्ण की लीला भूमि है। यहाँ के लोगों को अपने बच्चों को विदेशी भाषा न पढ़ाकर देववाणी संस्कृत और हिंदी पढ़ानी चाहिए ।

    विदेशी वस्त्रों की जगह खादी के वस्त्र पहनने चाहिए । ‘ उनके इस प्रवचन से प्रशासन के कान खड़े हो गए । गुप्तचर विभाग ने रिपोर्ट दी कि कृष्णबोधाश्रमजी लोगों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भड़का रहे हैं ।

    स्वामीजी धर्मप्रचार करते हुए मेरठ पहुँचे। मथुरा प्रशासन मेरठ प्रशासन से उन पर निगाह रखने का अनुरोध पहले ही कर चुका था ।

    एक दिन एक सरकारी अधिकारी स्वामीजी के प्रवचन में पहुँचा। वह चुपचाप प्रवचन सुनता रहा। बाद में उनके चरण स्पर्श करते हुए बोला, ‘महाराज, आपके प्रवचन से मैं बहुत प्रभावित हूँ।

    यदि आप केवल धर्मोपदेश करें और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की बात कहना छोड़ दें, तो सरकारी कोप से बच सकते हैं। ‘

    स्वामीजी ने कहा, ‘मैं धर्म के साथ-साथ राष्ट्रधर्म की भी प्रेरणा देता हूँ। आप अपनी नौकरी बचाने के लिए मुझे संन्यासी धर्म से विचलित करने का प्रयास न करें। साधु किसी से भय क्यों खाएगा?’ वह अधिकारी उनके चरणों में लोट गया।

    दसवाँ व्यक्ति Short Story in Hindi For Class 6

    सोहन एक बेरोजगार युवक था। वह कुछ कार्य करना चाहता था। इसलिए उसने महल के द्वार पर खड़े होकर राजा से नौकरी माँगने का निर्णय लिया। अगले दिन वह महल के द्वार पर खड़े होकर राजा का इंतजार करने लगा।

    समय व्यतीत करने के लिए वह महल के अंदर आने जाने वाले व्यक्तियों की गिनती करने लगा। पूरे दिन उसने अन्दर जाने वाले दस अजनबी व्यक्तियों की गिनती की। लेकिन शाम तक उनमें से सिर्फ नौ ही व्यक्ति बाहर आए थे।

    शाम को जब राजा महल से बाहर आए तो सोहन ने उनसे नौकरी की। बात की लेकिन दुर्भाग्यवश राजा ने उसे मना कर दिया। तब सोहन ने राजा से कहा, “महाराज,

    महल के अंदर जाने वाले दस अजनबियों में से सिर्फ नौ ही अजनबी बाहर आए हैं। एक व्यक्ति अब भी अंदर ही है।” यह सुनकर राजा ने उसी वक्त अपने सैनिकों को उस दसवें व्यक्ति को ढूँढने का आदेश दिया।

    वह व्यक्ति राजा के ही कमरे में छुपा हुआ था। सैनिकों ने उसे पकड़ लिया। वह व्यक्ति दुश्मन देश का जासूस था, जो राजा को मारने आया था। यह देखकर राजा सोहन से बहुत खुश हुआ और उसने उसे अपना अंगरक्षक बना लिया।

    काजी का न्याय Short Story in Hindi For Class 6

    एक दिन तीन भाई न्याय पाने के लिए काजी के पास गए। उनका मामला बड़ा अनोखा था। वे काजी से बोले, “हमारे पिता की मृत्यु हो चुकी है। मरने से पहले हमारे पिता ने कहा था कि आधी जायदाद बड़े बेटे की होगी.

    जायदाद का एक-चौथाई हिस्सा दूसरे बेटे और जायदाद का छठवाँ हिस्सा तीसरे बेटे का होगा। इसलिए हमने उनकी मृत्यु के बाद जमीन-जायदाद को उसी तरह बाँट लिया।

    लेकिन हम ग्यारह ऊँटों को नहीं बाँट पा रहे हैं। हम उन्हें किस प्रकार बाँटे?” उनकी बात सुनकर कुछ देर तो काजी सोच में पड़ गया लेकिन फिर बोला,

    “यदि तुम्हें एतराज न हो तो मैं तुम्हारे पशु समूह में अपने ऊँट को भी शामिल करना चाहता हूँ।” वे बोले, “नहीं, हमें कोई एतराज नहीं है।” अब उनके पास बारह ऊँट हो गए थे।

    तब बड़े बेटे को बारह ऊँटों के आधे छह ऊँट मिले, वहीं दूसरे बेटे को एक-चौथाई के हिसाब से तीन ऊँट मिले और सबसे छोटे बेटे के हिस्से छठवें भाग के हिसाब से दो ऊँट आए।

    बटवारा करने के बाद काजी ने अपना ऊँट वापस ले लिया। तीनों भाई काजी के चतुराईपूर्ण न्याय से बहुत खुश थे।

    सोच-समझकर बोलो In Hindi Short Story For Class 6

    एक गाँव में एक गरीब किसान और उसकी पत्नी रहते थे। एक बार देवी को उनकी गरीबी पर दया आ गई। वह उनके पास आई और बोली, “तुम लोग वर्षों से गरीबी में रह रहे हो। इसलिए मैं तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ।

    तुम लोग आज जो भी तीन इच्छाएँ करोगे, वे तुरंत ही पूरी हो जाएँगी।” वे बोले,”इस दया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद” उस रात वे रसोई में बैठकर सोच रहे थे कि क्या इच्छा की जाए। तभी किसान की पत्नी बोली,

    “मेरी चिकन खाने की बड़ी इच्छा है।” उसके ऐसा कहते ही प्लेट में चिकन प्रकट हो गया। किसान ने उसे डाँटते हुए कहा, “बेवकूफ औरत! तुमने एक वरदान बर्बाद कर दिया। यह चिकन तुम्हारी नाक पर चिपक जाए।”

    उसने जैसे ही यह बोला, चिकन उसकी पत्नी की नाक पर चिपक गया। यह देखकर वे दोनों डर गए। पत्नी बोली, “मेरी इच्छा है कि यह चिकन मेरी नाक से छूट जाए।” ऐसा कहते ही चिकन उसकी नाक से हट गया।

    इस तरह उनके तीनों वरदान व्यर्थ हो चुके थे। इस प्रकार उन दोनों ने अपनी बेवकूफी के कारण बोलने से पहले सोचा नहीं और अमीर बनने का सुनहरा मौका गंवा दिया।

    अंतिम इच्छा In Hindi Short Story For Class 6

    एक राजा थे। उनके दरबार में एक विदूषक था। वह बहुत चालाक था वह न सिर्फ अच्छे-अच्छे चुटकुले सुनाता था, बल्कि शासन के कार्यों में भी राजा की सहायता करता था।

    वह विदूषक कई बार तो राजा के ऊपर ही किस्से बनाकर सुना देता था। एक दिन राजा को उसकी किसी बात से अपना अपमान महसूस हुआ। वे क्रोधित होते हुए बोले, “सैनिको इस उदंड आदमी को बंदी बना कर कैदखाने में डाल दो।

    कल इसे फाँसी दी जाएगी।” अगले दिन विदूषक को दरबार में लाया गया। राजा उससे बोले,”तुम्हें जल्दी ही फाँसी दे दी जाएगी। यदि तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा हो तो हमें बताओ?” उसे अवश्य ही पूरा किया जाएगा।

    यह सुनकर उस चालाक विदूषक ने कहा, “महाराज, मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं बुढ़ापे की मौत मरूँ।” उसकी बात सुनकर राजा को हँसी आ गई। उन्होंने उसे माफ कर दिया। इस प्रकार चतुर विदूषक ने चालाकी से अपनी जिंदगी बचा ली।

    जैसी करनी वैसी भरनी For Class 6 Short Story In Hindi

    एक बूढ़ा सन्यासी था। अपने जीवन-यापन के लिए वह प्रतिदिन पास के गाँव में जाकर भिक्षा माँगता था। यद्यपि वह भिक्षा माँगकर पेट भरता था, परन्तु फिर भी अपना भोजन जरूरतमंदों के साथ अवश्य बाँटता था।

    एक दिन वह एक वृद्धा के घर भिक्षा माँगने के लिए गया। उसने भिक्षा माँगी तो उस वृद्धा ने भोजन न होने का बहाना बनाकर उसे टाल दिया। अगले दिन एक बार फिर वह वृद्धा के घर भिक्षाटन के लिए गया।

    यह देखकर वृद्धा बुरी तरह चिढ़ गई। उसने खाने में जहर मिलाकर सन्यासी को दे दिया। सन्यासी ने भोजन लिया और अपनी कुटिया में वापस आ गया। वह जैसे ही भोजन करने बैठा, तभी एक युवक उसके पास आया और बोला,

    “मैं बहुत भूखा हूँ। कृपया मुझे खाने के लिए कुछ भोजन दे दो।” । सन्यासी ने पूरा भोजन उसे ही दे दिया। युवक ने जैसे ही भोजन खाया, उसे उल्टियाँ होने लगी और थोड़ी ही देर बाद वह मर गया। यह देखकर सन्यासी आश्चर्यचकित रह गया।

    वास्तव में वह युवक और कोई नहीं उसी वृद्धा का इकलौता पुत्र था। इस प्रकार अपनी दुष्ट प्रवृत्ति के कारण उस वृद्धा ने अपने इकलौते पुत्र को खो दिया। किसी ने ठीक ही कहा है- जैसी करनी वैसी भरनी।

    हठ का परिणाम For Class 6 Short Story In Hindi

    एक ब्राह्मण था। उसके पास सब कुछ था, बस कमी थी तो एक पुत्र की। इसलिए वह सभी सुख-सुविधाएँ होने के बावजूद भी दुखी रहता था। उसने पुत्र-प्राप्ति के लिए भगवान से कई बार प्रार्थना की।

    यहाँ तक कि उसने घर छोड़ दिया और हिमालय पर जाकर कई वर्षों तक तपस्या की। भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले, “पुत्र माँगो, क्या माँगते हो?” ब्राह्मण बोला, “भगवान,

    मैं एक पुत्र चाहता हूँ।” भगवान बोले, “पुत्र, मैं तुम्हारी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकता। कुछ और माँग लो?” ब्राह्मण बोला, “नहीं, मुझे सिर्फ पुत्र ही चाहिए।” भगवान बोले, “मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देता हूँ।

    लेकिन ये हमेशा याद रखना कि अधिक हठ दुख को जन्म देता है।” जल्दी ही ब्राह्मण को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। बड़ा होते-होते वह बहुत ही उदंड हो गया।

    वह झूठा और बेईमान भी था। दुष्ट बेटे की वजह से ब्राह्मण का नाम मिट्टी में मिल गया। तब ब्राह्मण सोचने लगा, ‘भगवान ने सत्य ही कहा था।

    तीन दोस्त Short Story in Hindi For Class 6

    एक बार तीन दोस्त कहीं जा रहे थे रास्ते में उन्होंने एक होटल देखा। उन्होंने उसे खरीदकर एक नया व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया। वे होटल के बाहर उसे खरीदने को लेकर आपस में सलाह-मशवरा करने लगे।

    तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला, “मैं इस होटल का मालिक हूँ। मैंने सुना है कि तुम लोग मेरे होटल को खरीदने की इच्छा रखते हो। तुम लोगों के पास कितने पैसे हैं?” उनमें से एक बोला, “हमारे पास पाँच लाख रुपए हैं।”

    वह बोला, “ठीक है, तुम पैसे मुझे दे दो और ये होटल के कागजात ले लो।” उसने उनसे पैसे लिए और उन्हें कागजात सौंप दिए। कागजात सौंपने के बाद वह बोला, “आज से तुम इस होटल के मालिक हो।”

    तीनों दोस्त खुशी-खुशी होटल के अन्दर गए और भरपेट खाना खाया। वेटर बिल लेकर आया तो वे बोले, “हम इस होटल के नए मालिक हैं।”

    वास्तविक होटल मालिक ने आकर उन कागजों का निरीक्षण किया और उन्हें बताया कि ये कागज फर्जी हैं। अब तीनों दोस्तों को होटल का बिल चुकाने के लिए वहाँ के सारे गंदे बर्तन धोने पड़े।

    तब उन्हें अहसास हुआ कि जल्दबाजी हमेशा हानिकारक होती है। किसी भीकार्य को अच्छी तरह सोच-समझकर करना चाहिए।

    मोनू की याददाश्त Short Story in Hindi For Class 6

    एक दिन मोनू बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने उसे खिचड़ी खाने की सलाह दी। मोनू की याददाश्त बहुत कमजोर थी, इसलिए वह घर जाते हुए रास्ते में ‘खिचड़ी-खिचड़ी’ बोलता हुआ जा रहा था।

    शीघ्र ही वह खिचड़ी शब्द भूल गया और ‘खा चिड़ी, खा चिड़ी’ बोलने लगा। जब वह एक खेत से होकर गुजर रहा था, तो खेत के मालिक ने उसे ‘खा चिड़ी, खा चिड़ी’ कहते सुन लिया।

    उसने मोनू को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया और बोला, “तुम चिड़ियों को मेरी फसल खाने को कह रहे हो। ‘खा चिड़ी’ के बदले ‘उड़ चिड़ी’ बोलो।” . अब मोनू ने ‘उड़ चिड़ी, उड़ चिड़ी’ बोलना शुरू कर दिया।

    रास्ते में एक बहेलिए ने चिड़िया पकड़ने के लिए जाल बिछाया हुआ था। उसने मोनू के शब्द सुने तो उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने मोनू को जोरदार तमाचा मारते हुए कहा, “अरे, ‘उड़ चिड़ी, उड़ चिड़ी’ मत बोलो।

    इससे तो चिड़िया उड़ जाएंगी। तुम ‘फँस चिड़ी, फँस चिड़ी’ बोलो।” अब मोनू ‘फँस चिड़ी, फँस चिड़ी’ बोलते हुए चलने लगा। आगे रास्ते में उसे लुटेरों के एक गिरोह ने पकड़ लिया और पीटना शुरू कर दिया।

    वे बोले, “तुम हमें फँसवाकर पकड़वाना चाहते हो।” इस प्रकार बेचारे मोनू को अपनी कमजोर याददाश्त के कारण बार-बार पिटाई खानी पड़ी।

    पाँच मूर्ख मित्र Short Story in Hindi For Class 6

    एक बार पाँच मूर्ख मित्र एक गाँव जा रहे थे। रास्ते में पड़ने वाली नदी को उन सभी ने तैरकर पार किया। जब वे नदी के दूसरे किनारे पहुंचे तो उनमें से एक मित्र बोला, “दोस्तो, हमें गिनकर देख लेना चाहिए कि हम सभी पूरे तो हैं।

    कहीं ऐसा न हो कि हम में से कोई नदी में डूब गया हो।” सभी दोस्त उसकी बात से सहमत थे। इसलिए उनमें से चार पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो गए और पाँचवे दोस्त ने गिनती शुरू की, “एक, दो, तीन, चार। अरे! हमारा पाचवाँ मित्र कहाँ है?

    वह गायब है।” एक अन्य मित्र ने भी उसी तरह गिनती की और एक मित्र को कम पाया। वह चिल्लाकर बोला, “हमारा पाँचवा मित्र नदी में डूब गया!” बस, फिर क्या था, वे सभी जोर-जोर से रोने लगे। एक राहगीर वहाँ से गुजर रहा था।

    जब उसने उनसे उनके दुख का कारण पूछा तो उन्होंने उसे कारण बता दिया। तब राहगीर ने उन सबको एक पंक्ति में खड़ा कर पाँचों को गिना और बोला, “देखो, तुम पूरे पाँच हो।” ये सुनकर वे सभी बड़े खुश हुए।

    राहगीर, “तुम सभी गिनती करते हुए अपने को छोड़कर बाकी चारों को गिन रहे थे। इसलिए एक कम हो रहा था।” राहगीर की बात सुनकर उन्हें अपनी मूर्खता का एहसास हुआ।

    भगवान बड़ा दयालु है Short Story in Hindi For Class 6

    एक राजा का बहुत बड़ा फलों का बगीचा था। जिसमें विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगे हुए थे। माली रोज विभिन्न पेड़ों के सभी पके हए फलों को एकत्र कर राजा को भेंट करता था।

    एक दिन माली ने कुछ चेरियाँ एकत्र की और उन्हें राजा के लिए ले गया। उस दिन राजा का मिजाज बहुत खराब था। उसने एक चेरी को चखा तो उसका स्वाद बहुत खट्टा पाया। अब तो राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

    उसने गुस्से से वह चेरी माली पर दे मारी। माली को चोट लगी, लेकिन वह बोला,”भगवान बड़ा दयालु है।” माली के शब्द सुनकर राजा आश्चर्यचकित होकर बोला,

    “मैंने तुम्हें मारा और और तुम कह रह रहे हो भगवान बड़ा दयालु है। क्यों?” माली बोला, “महाराज, मैं तरबूज लाने जा रहा था। लेकिन किस्मत से मैंने अपना इरादा बदल लिया।

    मैं तो ये कल्पना कर रहा था कि यदि आप तरबूज फेंककर मुझे पर मारते तो मेरा क्या होता!

     

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