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दीर्घ संधि की परिभाषा और उदाहरण, Dirth Sandhi Kise Kahte Hai

    दीर्घ संधि की परिभाषा और उदाहरण, Dirth Sandhi Kise Kahte Hai


    Dirgh Sandhi Kise Kahte Hai: भाषा यूँ तो विचारों के आदान-प्रदान का एक माध्यम है, परन्तु इसे यदि आभूषणों से सजा दिया जाए तो यह कर्णप्रिय भी लगने लगती है। हिंदी भाषा को कईं व्यवहारों के माध्यम से या कईं भाषायी उपकरणों के माध्यम से सजाया जाता है व आकर्षक व कर्णप्रिय बनाया जाता है जैसे: समास, अलंकार, रस आदि।

    अतः संधि भी एक ऐसा ही भाषायी व्यवहार है, जो कि ना सिर्फ भाषा को कर्णप्रिय बनाता है बल्कि उसमें संक्षिप्तीकरण भी लाता है। संधि का प्रयोग गद्य में ही नहीं वरन पद्य में भी किया जाता है।

    यहाँ पर हम स्वर संधि के भेद दीर्घ संधि के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिसमें दीर्घ संधि किसे कहते हैं (dirgha sandhi kise kahate hain), दीर्घ संधि के उदाहरण (Dirgh Sandhi Ke Udaharan) आदि मुख्य रूप से जानेंगे।

    हिंदी व्याकरण के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।

    संधि के बारे में

    संधि से तात्पर्य जानने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि संधि का अर्थ क्या है। संधि शब्द को हमने पहले कईं बार सुना है, कभी दो देशों की संधि के लिए, कभी दो नायकों या दो व्यक्तियों की संधि के लिए, कभी दो नदियों की संधि कि लिए, कभी दो देशों की सीमाओं की संधि के लिए और कभी दो मौसमों की संधि के लिए तो कभी दिन के दो पहरों की संधि के लिए आदि।

    संधि का अर्थ होता है जुड़ाव, मिलाप, बंध, एकात्मकता या संविलयन आदि। भाषा में संधि दो शब्दों के तकनीकी जुड़ाव को कहते हैं। जब दो शब्दों को जोड़कर एक बनाया जाता है तो इन दोनों शब्दों के संधि स्थलों पर जो कि वर्ण हैं अब नव निर्मित शब्द में एक परिवर्तन विद्यमान होता है।

    संधि की परिभाषा

    जब दो शब्दों का मेल होता है, तब उन दोनों शब्दों के संधि स्थल पर एक विकार उत्पन्न होता है, जो नवीन शब्द के उच्चारण में कुछ न कुछ परिवर्तन लाता है। अब ये समझते हैं कि ऐसे कैसे होता है।

    जब दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तो प्रारंभिक शब्द का अंतिम वर्ण तथा अंतिम शब्द का प्रारंभिक वर्ण आपस में मिलकर एक भिन्न ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जिसके कारन नवीन शब्द के उच्चारण में एक चमत्कार या परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है, इसे ही संधि कहते हैं।

    संधि की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।

    दीर्घ-संधि के बारे में

    संधि के मुख्य रूप से तीन प्रकार हैं: स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि। दीर्घ संधि, स्वर संधि के ही प्रकारों में से एक प्रकार है तथा इसे दीर्घ स्वर संधि कहा जाता है।

    जैसा कि दीर्घ स्वर संधि नाम से ही स्पष्ट है कि इस तरह कि संधि में दीर्घ स्वर की विशेष भूमिका होती है। तकनीकी रूप से जब दो शब्द आपस में मिलते हैं तो उनकी संधि से होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप दीर्घ स्वर की उत्पत्ति होती है।

    दीर्घ-संधि की परिभाषा

    दो शब्दों के मेल के दौरान जब प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण किसी अमुक स्वर का ही लघु या दीर्घ रूप हो तथा द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण उसी अमुक स्वर का लघु या दीर्घ स्वर हो तो उन दोनों के मेल के परिणामस्वरूप उस अमुक स्वर का ही दीर्घ स्वर उच्चारित होता है।

    अ, इ, उ, ओ आदि लघु स्वर होते हैं तथा इन्हीं स्वरों के दीर्घ स्वरुप हैं क्रमशः आ, ई, ऊ, औ। अतः

    • (अ/आ)+(अ/आ) = आ
    • (इ/ई)+(इ/ई) = ई
    • (उ/ऊ)+(उ/ऊ) = ऊ
    • (ओ/औ)+(ओ/औ) = औ

    दीर्घ संधि के उदाहरण

    सर्वप्रथम हम एक उदहारण की व्याख्या करेंगे, फिर अन्य उदाहरणों से दीर्घ स्वर संधि को समझेंगे।

    आ दीर्घ स्वर संधि

    • मेघ + आलय = मेघालय

    प्रथम शब्द मेघ में अंतिम वर्ण है ‘अ’ (घ = घ् + अ) तथा द्वितीय शब्द आलय में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘आ’ है। अतः अ + आ = आ। अतः संधि होने पर घ और आ जुड़ कर घा बने।

    • दशम + अंश = दशमांश

    प्रथम शब्द दशम में अंतिम वर्ण है ‘अ’ (म = म् + अ) तथा द्वितीय शब्द अंश में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘अ’ है। अतः अ + अ = आ। अतः संधि होने पर मैं और ए जुड़ कर में बने।

    • कृ + पा = कृपार्थ

    प्रथम शब्द कृपा में अंतिम वर्ण है ‘आ’ (पा = प् + आ) तथा द्वितीय शब्द अर्थ में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘अ’ है। अतः आ + अ = आ। अतः संधि होने पर पा और ए जुड़ कर पा बने।

    • विद्या + आलय = विद्यालय

    प्रथम शब्द विद्या में अंतिम वर्ण है ‘आ’ (द्या = य + आ) तथा द्वितीय शब्द आलय में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘आ’ है। अतः आ + आ = आ। अतः संधि होने पर देना और आ जुड़ कर देना बने।

    ई दीर्घ स्वर संधि

    • मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र

    पहले शब्द मुनि का अंतिम अक्षर ‘i’ (ni = n + i) है और दूसरे शब्द इंद्र का पहला अक्षर स्पष्ट रूप से ‘i’ है इसलिए, मैं + मैं = ई। अत: जब सन्धि होती है नि और एन जुड़ कर नीं बने।

    • मुनि + ईश = मुनीश

    पहले शब्द मुनि का अंतिम अक्षर ‘i’ (ni = n + i) है और दूसरे शब्द इश का पहला अक्षर स्पष्ट रूप से ‘e’ है इसलिए, मैं + ई = ई। अत: जब सन्धि होती है नि और ई जुड़ कर नी बने।

    • कृषि + ईर्ष्या = कृषि ईर्ष्या

    प्रथम शब्द कृषी में अंतिम वर्ण है ‘ई’ (षी = ष् + ई) तथा द्वितीय शब्द ईर्ष्या में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘ई’ है। अतः ई + ई = ई। अतः संधि होने पर शी और ई जुड़ कर शी बने।

    • सती + इति = सती

    पहले शब्द सती का अंतिम अक्षर ‘ई’ (ति = टी + ई) है और दूसरे शब्द इति का पहला अक्षर स्पष्ट रूप से ‘ई’ है तो ई + आई = ई। अत: जब सन्धि होती है वह और आदि जुड़ कर वह बने।

    ऊ दीर्घ स्वर संधि

    1. भानु + उदय = भानूदय

    पहले शब्द भानु का अंतिम अक्षर ‘उ’ (नु = एन + यू) है और दूसरे शब्द उदय का पहला अक्षर स्पष्ट रूप से ‘यू’ है तो यू + यू = यू। अत: जब सन्धि होती है नु और उ जुड़ कर नू बने।

    • भू + उदय = भूदय

    प्रथम शब्द भू में अंतिम वर्ण है ‘ऊ’ (भू = भ् + ऊ) तथा द्वितीय शब्द उदय में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘उ’ है। अतः ऊ + उ = ऊ। अतः संधि होने पर भू और उ जुड़ कर भू बने।

    • भू + ऊर्जा = भूर्जा

    प्रथम शब्द भू में अंतिम वर्ण है ‘ऊ’ (भू = भ् + ऊ) तथा द्वितीय शब्द ऊर्जा में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘ऊ’ है। अतः ऊ + ऊ = ऊ। अतः संधि होने पर भू और वह जुड़ कर भू बने।

    • भानु + ऊर्जा  = भानूर्जा

    प्रथम शब्द भानु में अंतिम वर्ण है ‘उ’ (नु = न् + उ) तथा द्वितीय शब्द ऊर्जा में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘ऊ’ है। अतः ऊ + ऊ = ऊ। अतः संधि होने पर नु और वह जुड़ कर नू बने।

    यह भी पढ़े: संस्कृत में संधि, संधि विच्छेद (संस्कृत व्याकरण)

    औ दीर्घ स्वर संधि

    1. चारों + ओर = चारौर

    प्रथम शब्द चारों में अंतिम वर्ण है ‘ओ’ (रों = र् + ओ) तथा द्वितीय शब्द ओर में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘ओ’ है। अतः ओ + ओ = औ। अतः संधि होने पर रों और ओ जुड़ कर रौ बने।

    • चारों + औषधि = चारौषधि

    प्रथम शब्द चारों में अंतिम वर्ण है ‘ओ’ (रों = र् + ओ) तथा द्वितीय शब्द औषधि में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘औ’ है। अतः ओ + औ = औ। अतः संधि होने पर रों और ओह जुड़ कर रौ बने।

    • गौ + ओठ = गौठ

    प्रथम शब्द गौ में अंतिम वर्ण है ‘औ’ (गौ = ग् + औ) तथा द्वितीय शब्द ओठ में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘ओ’ है। अतः औ + ओ = औ। अतः संधि होने पर गौ और ओ जुड़ कर गौ बने।

    • गौ + औषधि = गौषधि

    प्रथम शब्द गौ में अंतिम वर्ण है ‘औ’ (गौ = ग् + औ) तथा द्वितीय शब्द औषधि में प्रथम वर्ण स्पष्तः ‘औ’ है। अतः औ + औ = औ। अतः संधि होने पर गौ और ओह जुड़ कर गौ बने।

    निष्कर्ष

    इस पूरी व्याख्या में हमने देखा कि किस तरह दो शब्दों के मेल होने पर प्रथम शब्द की अतिम ध्वनि तथा द्वितीय शब्द की प्रारंभिक या प्रथम ध्वनि मिल कर परिवर्तानस्वरूप एक चमत्कार या विकार उत्पन्न करते हैं, जो कि उच्चारण के माध्यम से प्रकट होता है।

    दीर्घ स्वर संधि; एक ही समूह के दो सामान या भिन्न-भिन्न स्वर आपस में मिल कर दीर्घ स्वर की ही उत्पत्ति करते हैं। इसीलिए इसे दीर्घ स्वर संधी कहते हैं। इसे हमने उदाहरणों के माध्यम से भी समझने का प्रयास किया।

     

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