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उतना ही सोचो जितनी ओकात हो कहानी, Motivational Story Hindi

    उतना ही सोचो जितनी ओकात हो कहानी, Motivational Story Hindi

    एक बच्चा था सरकारी स्कूल में पढ़ता था जाहिर सी बात है

    उसके पिता गरीब थे उसको प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ा सकते
    थे एक दिन उस बच्चे के दिमाग में आया कि मैं देखना चाहता हूं

    कि मेरे पिताजी कैसी नौकरी करते हैं और कहां जाते हैं ??

    यही बात उसने अपने पिता को बताई उसके पिता ने उसको जवाब दिया

    कि ठीक है तुम कल मेरे साथ चल सकते हो

    अगले दिन सुबह बच्चा अपने पिता के साथ चला गया
    जैसे ही वहां पहुंचा तो कुछ देर बाद उसने देखा कि
    उसके पिता बड़ी-बड़ी आलीशान गाड़ियों की सफाई करते हैं

    यानी कि उसके पिता का काम महंगी महंगी
    गाड़ियों को साफ करना है तो उसके दिमाग में एक सपने का जन्म हुआ

    एक दिन मैं भी अपने पिताजी को बड़ी बड़ी गाड़ियों में बैठाना चाहता हूं
    मैं नहीं चाहता कि यह जिंदगी भर इन गाड़ियों की सफाई करते रहे

    कुछ टाइम बीत गया अब वह बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ता था

    एक दिन उनकी मैडम ने अपने सपनों के बारे में निबंध

    लिखने को कहा सभी बच्चों ने निबंध लिखे
    इस बच्चे की निबंध लिखने की बारी आई तो उसके दिमाग में सपना

    चल रहा था उसी के बारे में लिख दिया अब जब परिणाम की बारी आई तो

    सभी बच्चों को पास कर दिया गया लेकिन इस बच्चे को मैडम में फेल कर दिया

    अपने पास बुला कर कहा कि

    जितनी तुम्हारी औकात हो तो उतना ही लिखो

    जो चीज तुम्हारे बस में है ही नहीं

    जो चीज तुम कभी कर ही नहीं सकते
    उसे लिखने से क्या फायदा हो सकता है

    तुम्हे इसके बारे में जानकारी नहीं हो मैं तुम्हें एक मौका और देती हूं

    आज रात को तुम निबंध फिर से लिखो
    और अगले दिन मुझे वापस बताना

    वह  बच्चा रात भर सोचता रहा कि मेरी क्या गलती है
    मैंने कहीं कोई गलती तो नहीं की वगैरा-वगैरा लेकिन
    अगले दिन सुबह उसने वही निबंध अपनी मैडम को दे  दिया

    क्योंकि उसका दिल नहीं मान रहा था आखिरकार मैडम ने

    उसको विफल कर दिया और यह कहा कि अपनी औकात से बाहर निकलने की कोशिश मत करो
    जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारो
    दोस्तों वक्त बीत गया साल गुजर गए
    लेकिन वक्त पलट के जरूर लोट के आता  है
    और समय बड़ा बलवान होता है

    एक मोटिवेशनल स्पीच को कोई ऑर्गेनाइज कर रहा था और जहां पर

    जो मोटिवेशनल स्पीकर बोल रहा था वही लड़का था वह अपनी दास्तां सुना रहा था कि किस तरीके से 1 सरकारी स्कूल की मैडम ने मुझे बड़े सपने देखने के लिए रोका और

    आज मैं यह कर पाया जो आप सोच सकते वो आप
    कर सकते हो और यहा  वह मैडम भी वहीं बैठी हुई थी उनकी उम्र ढल चुकी थी

    वह अपनी मैडम के पास जाता है और उनके चरण स्पर्श करता है कि

    मैडम आपने मुझसे कहा था कि जितनी औकात हो उतना ही सोचो

    मैडम मैं आपको बताना चाहता हूं कि आप गलत थी और मैं सही था सोच मेरी हमेशा बड़ी थी

    आप सोच सकते हो कि मैडम ने क्या जवाब दिया मैडम के पास जवाब देने लायक कुछ था ही नहीं

    लेकिन मैडम की सोच कुएं के मेंढक की जैसी थी

    जिसको आसमान भी उतना ही देता है जितना कुए के भीतर से नजर आता है

    तो कुएं के मेंढक जैसी सोच ना रखिये
    दोस्तों समुद्र की मछली जैसी सोच हमें रखनी चाहिए

    कुल मिलाकर इस कहानी का मर्म यही है
    बड़ा सोचना चाहिए जो हम सोच सकते हैं
    वह हम कर सकते हैं इसमें कोई दो राय नहीं है

    नाकामयाबी का रोना वह लोग रोते हैं जिनको अपने सपनों पर भरोसा नहीं होता है

    जिनको अपने खुद के ऊपर भरोसा नहीं होता

     

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