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Top 11 Best Akbar Birbal Story Hindi

    Top 11 Best Akbar Birbal Story Hindi

    गिनती की गिनती Akbar Birbal Story Hindi

    एक रात बादशाह अकबर बीरबल के साथ अपने महल के झरोखे में खड़े हुए थे। आसमान में चाँद खिला हुआ था और सितारे भी चमक रहे थे।

    तभी बादशाह अपनी ही धुन में बीरबल से पूछ बैठे, ‘बीरबल, क्या तुम मुझे आसमान में तारों की सही गिनती बता सकते हो?” “बिल्कुल जहांपनाह,” बीरबल तुरंत बोले, “आसमान में उतने ही तारे हैं,

    जितने एक घोड़े के सिर पर बाल होते हैं।” “लेकिन बीरबल,” बादशाह कुछ सोचते हुए बोले, “घोड़े के सिर पर तो अनगिनत बाल होते हैं।” “हुजूर, वही तो मैं कह रहा हूँ।

    तारे भी आसमान में अनगिनत ही हैं।” बीरबल छूटते ही बोले। बीरबल का सटीक जवाब सुनकर बादशाह भौंचक्के रह गए।   फिर वे हँसते हुए बोले, “बीरबल, हाजिरजवाबी में तुम्हारा कोई सानी नहीं। चिराग लेकर ढूँढने पर भी तुम्हारे जैसा दिमागदार कोई नहीं मिलेगा।”

     

    कितने मोड़? Latest Akbar Birbal Story Hindi

    एक दिन काबुल के बादशाह का दूत बादशाह अकबर के दरबार में आया और उन्हें सलाम करके बोला, “हमारे बादशाह आगरा तशरीफ लाना चाहते हैं।

    आगरा का बाजार देखने और आपसे मिलने की उनके मन में बड़ी ख्वाहिश है। लेकिन यहाँ आने के पहले वे ये जरूर जानना चाहते हैं कि आगरा की गलियों में कितने मोड हैं, ताकि यहाँ आने के बाद वे पशोपेश में न पड़ जाएँ।”

    बादशाह अकबर ने जवाब दिया, “यह पता लगाने में कुछ वक्त लगेगा कि आगरा की गलियों में कितने मोड़ हैं। आप कुछ दिन हमारे यहाँ मेहमान बनकर रहिए। फिर हम आपको जवाब बता देंगे।”

    “नहीं गरीबपरवर, मैं रुक नहीं सकूँगा। मेरे आका ने मुझे यह बात पता करके तुरंत लौटने का हुक्म दिया है। मुझे कल सुबह आगरा छोड़ देना है।” दूत ने बताया।

    उसकी बात सुनकर बादशाह के माथे पर बल पड़ गए।   घोड़ों की गिनती में कुछ वक्त तो लगना ही था। भला इतनी जल्दी आगरा की गलियों में घोड़ों की गिनती कैसे बता दी जाए।

    उन्होंने इस सम्बंध में अपने दरबारियों से भी सलाह-मशविरा किया, लेकिन कोई भी इस समस्या का समाधान उन्हें बता नहीं सका। बादशाह अभी इस चुनौती का हल खोजने में लगे ही थे, तभी बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया।

    बीरबल को देखकर बादशाह ने राहत की साँस ली। उन्होंने बीरबल को बताया, “काबुल के बादशाह ने हमसे एक अजीब बात बताने को कहा है।

    उन्होंने आगरा तशरीफ लाने की ख्वाहिश जाहिर की है,   लेकिन इसके पहले वे ये जानना चाहते हैं कि आगरा की गलियों में कुल मोड़ कितने हैं उन्होंने यह पता करना है।” लगाने के लिए वक्त भी नहीं दिया है।

    उनके दूत को कल सुबह ही आगरा से कूच “यह तो बड़ा आसान सवाल है,   जहांपनाह!” बीरबल बोले, “और मझे लगता है काबुल के बादशाह को पहले से ही इस सवाल का जवाब मालूम होगा।”

    “क्या कह रहे हो तुम? क्या तुम इस सवाल का जवाब जानते हो?” बादशाह ने चौंकते हुए पूछा।   “बिल्कुल जानता हूँ, हुजूर! आगरा ही नहीं, दुनिया की सारी गलियों और सडकों में सिर्फ दो ही मोड़ होते हैं, दायाँ और बायाँ!” बीरबल ने कहा।

    बीरबल की बात सुनकर बादशाह हँसते हुए बोले,   “बीरबल, तुमने अपनी हाजिरजवाबी से एक बार फिर हमारी सल्तनत की लाज रख ली। हम तुम्हें बतौर इनाम पाँच सौ अशर्फियाँ देते हैं।”

     

    बादशाह का नगीना Amazing Akbar Birbal Story in Hindi

    एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में रहने वाले एक विदेशी प्रतिनिधि ने कहा, “जहांपनाह, हमारे मुल्क में कई उस्ताद वैद्य हैं जो रत्नों व मणियों से इलाज करते हैं।

    उनके पास ऐसे-ऐसे पत्थर है जो दुनिया में कहीं और मिलने नामुमकिन हैं।   सोने औरपीतल का अंतर जानने के लिए अक्सर इन पत्थरों का इस्तेमाल होता है।

    क्या आपके मुल्क में भी इस तरह की कोई चीज है?” “बिल्कुल है,” बादशाह बोले, “मेरे पास ऐसा नग है जो इससे भी बड़ी करामात कर सकता है।

    वह सोने और चाँदी में ही नहीं, बल्कि अच्छी और बुरी बात में भी अंतर कर सकता है।” “ऐसी चीज तो निश्चय ही हैरतअंगेज होगी!” वह वैद्य बोला, “क्या आप मुझे वह चीज दिखा सकते हैं?”

    “बिल्कुल दिखा सकता हूँ!” कहते हुए बादशाह ने बीरबल को सामने आने का इशारा किया। सारे दरबारी और वह विदेशी प्रतिनिधि यह सब बड़ी हैरत से देख रहे थे।

    “यही है हमारा करामाती पत्थर!” बादशाह बीरबल की ओर इशारा करते हुए बोले, “यही वह बेशकीमती नगीना है जो सोने और पीतल ही नहीं, बल्कि अच्छी और बुरी बात में अंतर समझने काबिलियत भी रखता है।”

    “आपने हीरे की कद्र कर ली है, बादशाह सलामत,” वह विदेशी प्रतिनिधि बोला, “आपका नगीना वाकई किसी भी कीमती से कीमती नगीने से बढ़कर है। हम सब आपके इस नगीने को सलाम करते हैं।” बादशाह बड़े गर्व से बीरबल की ओर देख रहे थे।

     

    बर्तन में बुद्धि Unique Akbar Birbal Story Hindi

    एक दिन श्रीलंका के राजा का दूत बादशाह अकबर के दरबार में आया। बादशाह का अभिवादन करके वह बोला, “महाबली, हमारे महाराज को पता चला है कि आपके दरबार में एक से बढ़कर एक बुद्धिमान लोग हैं।

    उनका आग्रह है कि आप एक घड़ा बुद्धि उनके लिए भी भेज दें।” श्रीलंका के महाराज का आग्रह सुनकर वहाँ मौजूद सभी दरबारी हक्के-बक्के रह गए और एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।

    वे समझ गए थे कि श्रीलंका का राजा इस प्रकार का आग्रह करके उनकी होशियारी का इम्तहान लेना चाहता है। लेकिन उन्हें इसका कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।

    एक दरबारी ने तो खड़े होकर बोल भी दिया, ‘बादशाह सलामत, यह प्रार्थना पूरी कर पाना मुमकिन नहीं है। भला ये कैसे हो सकता है कि बुद्धि को घड़े में भरकर भेज दिया जाए?”

    तभी बीरबल खड़े होकर बोले, “मैं श्रीलंका के महाराज की इच्छा पूरी सकता हूँ, लेकिन मुझे इस काम के लिए एक हफ्ते का वक्त चाहिए।”   बादशाह ने दूत से कहा,”आप एक सप्ताह के लिए हमारे मेहमानखाने में रहिए।

    तब तक बुद्धि को घड़े में भरने का काम पूरा हो जाएगा। आपको इसमें कोई दिक्कत तो नहीं है न?”   दत को एक सप्ताह का वक्त देने में कोई दिक्कत नहीं लगी, क्योंकि वह सोच रहा था कि बुद्धि को घड़े में भर देना किसी के लिए सम्भव ही नहीं है।

    उसने बादशाह अकबर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।   उधर बीरबल ने घर पहुँचकर अपने नौकर से कहा, “बाजार जाकर कुछ छोटे मुँह वाले घड़े ले आओ।”

    नौकर तुरंत बाजार गया और एक दर्जन घड़े लेकर लौट आया।   बीरबल उन घड़ों को लेकर अपने बगीचे में जा पहुँचे, जहाँ बहुत से कद्दू बोए गए थे।

    उन्होंने कुछ पौधों को घड़ों के अंदर स्थापित कर दिया। फिर उन्होंने नौकर को आदेश दिया कि उनके कहने तक उन घडों को वहाँ से न हटाया जाए।

    एक हफ्ते बाद बीरबल बगीचे में उन कद्दुओं को जाँचने के लिए पहुंचे। उन्होंने पाया कि कद्दू उन घड़ों के अंदर पूरी तरह उग चुके हैं। उन्होंने नौकरों को कदू से भरा हुआ एक घड़ा बड़ी सावधानी से वहाँ से ले चलने का हुक्म दिया।

    थोड़ी ही देर में वे उस नौकर को साथ लिए हुए दरबार में जा पहुंचे। बीरबल के साथ घड़ा देखकर बादशाह के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी। वे समझ गए कि बीरबल ने श्रीलंका के राजा की योजना निष्फल कर देने कीव्यवस्था कर ली है।

    उन्होंने तुरंत एक नौकर को श्रीलंका के दूत को बुला लाने के लिए भेज दिया। थोड़ी ही देर में, श्रीलंका का दूत दरबार में आ पहुँचा। बीरबल को घोड़े के साथ वहाँ मौजूद देखकर वह भौंचक्का रह गया।

    उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि बीरबल उनकी चुनौती को इतनी  आसानी से पूरा कर देंगे। फिर बीरबल दूत को वह घड़ा देते हुए बोले, “मैं आपको मुगल दरवार की ओर से बुद्धि से भरा यह घड़ा दे रहा हूँ।

    आप सोच रहे होंगे कि बुद्धि हमने इस घड़े में कैसे डाली। मैं आपको बताना चाहूँगा कि हम बुद्धि को बहुत ही कीमती समझते हैं और इसीलिए इसे घड़ों में छिपाकर रखते हैं। हम श्रीलंका के महाराज को अपना मित्र समझते हैं।

    यही कारण है कि हम इतनी बहुमूल्य वस्तु उन्हें उपहारस्वरूप दे रहे हैं। बुद्धि को घड़े से निकालते समय आप एक बात अवश्य ध्यान रखिएगा।

    उसे इस घड़े से इतनी सावधानी से निकालना है कि उसे अथवा इस घड़े को किसी किस्म का कोई नुकसान नहीं पहुंचे। अगर आपने बिना घड़े को तोड़े-फोड़े बुद्धि निकाल ली, तो समझ लेना कि आप बुद्धिमान हो गए हैं।”

    दूत को दिया गया घड़ा कपड़े से ढका हुआ था। कपड़ा हटाने पर जब दूत ने उसमें कद्दू पाया, तो वह हैरान रह गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि उस कद को घडे के अंदर घुसेड़ा कैसे गया होगा।

    उसने वहाँ से चुपचाप निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी। वह जल्दी से बादशाह का अभिवादन करके वहाँ से निकल लिया। जब बादशाह अकबर ने घड़े में रखी बुद्धि के बारे में जानना चाहा,   तो बीरबल ने अपने घर से एक और घड़ा मँगवा लिया।

    जब बादशाह ने उसके अंदर रखे कद् को देखा तो हँसते-हँसते लोटपोट हो गए। फिर वे बोले, “श्रीलंका का राजा अब जीवन में कभी बुद्धि के घड़े की माँग नहीं करेगा।”

     

    ईश्वर का प्रेम Famous Akbar Birbal Story Hindi

    बादशाह अकबर सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखते थे। अपनी प्रजा में वे कभी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे। हिंदू धर्मशास्त्रों का तो उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान था।

    उदार और सहिष्णु स्वभाव के होने के साथ वे विनोदी स्वभाव के भी थे और बीरबल के साथ हल्की-फुल्की फुलझड़ियों का आदान-प्रदान करते रहते थे।

    एक दिन उन्होंने हास-परिहास के दौरान बीरबल से पूछा,   “एक बात बताओ, श्रीकृष्ण हर जगह अपने भक्तों की रक्षा करने खुद क्यों भागते थे? उनके पास कोई नौकर-चाकर नहीं थे क्या?” बादशाह की बात सुनकर बीरबल मुस्कुराए।

    वे समझ गए कि बादशाह का मजाक करने का मन है। उधर बादशाह कहते चले गए, “ये देवता बड़े फुर्तीले भी होते हैं। किसी भक्त ने बुलाया नहीं कि दौड़े चले आते हैं, जैसे फुर्सत में ही बैठे हों।’

    बीरबल बोले, “जहांपनाह, आपके सवाल का जवाब तुरंत देना मुमकिन नहीं है। मुझे कुछ वक्त दीजिए। मैं ठीक वक्त पर आपकी वात का माकूल जवाब दूंगा।”

    बादशाह हँस दिए। वैसे भी वे अपनी बात को लेकर गम्भीर नहीं थे।   बीरबल ने बादशाह के सामने अपने बात स्पष्ट करने के लिए एक योजना बनाई।

    वे एक मूर्तिकार के पास पहुंचे और उसे बादशाह के पोते खुर्रम की एक मोम की मूर्ति बनाने को कहा। बादशाह को खुर्रम से बहुत प्रेम था।   मूर्ति तैयार हो जाने पर वे उसे लेकर बादशाह के महल में जा पहुँचे और उनके नौकरों से उस मूर्ति को खुर्रम के कपड़े पहना देने को कहा। नौकरों ने तुरंत बीरबल की आज्ञा पर अमल किया।

    अब कोई भी अगर दूर से खर्रम की उस मूर्ति को देखता, तो उसे असली खुर्रम ही समझता। फिर बीरबल ने नौकरों को कुछ सलाह दी। अगले दिन बीरबल बादशाह के साथ शाही बगीचे में टहलने गए।

    जैसे ही वे झील के पास आए, बीरबल ने नौकर को संकेत किया। उस मूर्ति को लेकर छिपे बैठे नौकर ने तुरंत ही वह मूर्ति झील के पानी में फेंक दी। बादशाह को दूर से देखकर ऐसा लगा, जैसे उनका पोता खुर्रम ही झील में गिर गया हो।

    एक भी पल इंतजार किए बिना बादशाह भागते हुए आगे बढे और उन्होंने झील में छलांग लगा दी। जब वे तेजी से तैरते हुए उस जगह पर पहुंचे, तो पाया कि वह तो एक मूर्ति है।

    तब तक बीरबल भी वहाँ आ गए थे।   बीरबल की मदद से बादशाह झील के बाहर निकल आए। तभी बीरबल उनसे पूछ बैठे, “जहांपनाह, आपके पास नौकरों की कोई कमी तो है नहीं।

    फिर इस मूर्ति को गिरते देखकर आपने पानी में खुद छलांग क्यों लगा दी?   आपको खुद पानी में कूद जाने की क्या जरूरत थी?” “क्या बात कर रहे हो, बीरबल?” बादशाह बोले, “खुर्रम हमारा प्यारा पोता है।

    क्या हम उसे झील में डूबने से बचाने के लिए अपने नौकरों का इंतजार करते?   अगर इसी बीच वह डूब जाता तो? वह तो अच्छा हुआ कि यह बुत ही था!” यह मूर्ति मैंने ही बनवाई थी!” बीरबल ने खुलासा किया। “क्यों?” बादशाह ने बड़ी हैरत से पूछा।

    “आपने खुर्रम को बचाने के लिए नौकरों का इंतजार नहीं किया, क्योंकि आप उससे बहुत मोहब्बत करते हैं। इसी तरह देवता भी अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और उनकी रक्षा के लिए दौड़े आते हैं। भक्तों को बचाने के लिए देवता समय भी नहीं देखते।” बीरबल ने अपनी बात स्पष्ट की।

     

    नकली साधु Awesome Akbar Birbal Story Hindi

    आगरा के पास ही एक साधु अपनी कुटिया बनाकर रहता था। सभी लोग उसे दीन-दुनिया से बेखबर एक संत समझते थे, लेकिन हकीकत में वह बड़ा लालची था।

    एक दिन एक बूढ़ी औरत उसके पास आकर बोली, “साधु बाबा, मैं तीर्थयात्रा पर जा रही हूँ। मेरे पास ताँबे के कुछ सिक्के हैं, जो मेरी जीवन भर की बचत हैं।

    ये सिक्के अपने पास रख लीजिए।   मैं तीर्थयात्रा से लौटकर उन सिक्कों को आपसे ले लूँगी।” “मैं तो सांसारिक माया-मोह से संन्यास ले चुका हूँ।” साधु बोला, “धन से तो मेरा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।

    इसलिए मैं इन सिक्कों को हाथ नहीं लगाऊँगा।   तुम खुद इन सिक्कों को झोंपड़ी के किसी कोने में गाड़ दो।” साधु ने कहा और अपनी आँखें ध्यान के लिए बंद कर लीं।

    उस औरत ने वे सिक्के झोंपड़ी के एक कोने में गाड़ दिए और तीर्थ यात्रा पर चली गई।   कुछ महीनों बाद वह औरत तीर्थयात्रा से लौट आई। वह साधु के पास पहुँचकर बोला, “महाज्ञानी साधु! मैं तीर्थयात्रा से लौट आई हूँ। क्या मैं उन सिक्कों को ले लूँ? उन्हों के बूते तो मैं अपना बुढ़ापा शांति से गुजारने का सपना हूँ।”

    “जहाँ तुमने उन सिक्कों को गाड़ा हो, वहीं से उन्हें निकाल लो। मैं तो सिक्कों को हाथ लगाता नहीं हूँ।” पाखंडी साधु बोला। वह औरत झोंपड़ी के अंदर जाकर उसी जगह खुदाई करने लगी, जहाँ उसने अपने सिक्कों को गाड़ा था।

    लेकिन जब उसने अपने सिक्कों को वहाँ नहीं पाया,तो वह भौचक्की रह गई। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी जीवन भर की कमा इस तरह गायब हो जाएगी।

    उसने तो यही समझकर उन पैसों को साधु के पास छोड़ा  था कि वहाँ वे सुरक्षित रहेंगे। वह भागती हुई उस साधु के पास पहुँची और बोली, “साधु बाबा, मेरे सिक्के वहाँ पर नहीं हैं, जहाँ मैंने उन्हें रखा था।”

    “तो मैं क्या करूं?” पाखंडी साधु झल्लाता हुआ बोला, “तुमने खुद अपने सिक्कों को वहाँ रखा था। मैंने तो उन्हें छुआ तक नहीं था।” वह औरत समझ गई थी कि वह उस लालची साधु का शिकार बन गई है।

    तभी उसके मन में बीरबल की मदद लेने का ख्याल आया। बीरबल बड़े ही बुद्धिमान थे और गरीबों की मदद के लिए जाने जाते थे। वह बीरबल के पास जा पहुँची और उन्हें सारी बात कह सुनाई।

    बीरबल ने ध्यान से उसकी पूरी बात सुनी। कुछ देर सोचकर वे उससे बोले, “चिंता न करो, मैं तुम्हारे सिक्के दिलवा दूंगा। बस, तुम वैसा ही करना, जैसा मैं तुम्हें कह रहा हूँ।”

    फिर उन्होंने उस बुढिया को कुछ समझाया।   पूरी योजना समझकर बुढ़िया की बांछे खिल गई। अगले दिन बीरबल उस साधु के पास पहुँचकर बोले, “महात्मा जी, मैंने आपके विषय में बहुत कुछ सुन रखा है।

    लोगों ने मुझे बताया है कि आप मोह-माया से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं रखते। इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ। दरअसल मुझे अपने चचेरे भाई से मिलने के लिए देहली जाना है।

    वहाँ जाकर लौटने में मुझे एक महीने का वक्त लगेगा। मैं चाहता हूँ कि इतने समय के लिए आप मेरा यह थैला अपने पास रख लें।”   यह कहते हुए बीरबल ने एक थैला निकाला और उसे उस पाखंडी साधु के सामने ही खोल दिया।

    उस थैले में कीमती जवाहरात और मोती रखे हुए थे। इतनी दौलत देखते ही उस लालची साधु की आँखें चमकने लगीं।   वह मन ही मन सोच रहा था, ‘बस थोड़ी ही देर में ये सारी दौलत मेरी हो जाएगी।

    फिर मुझे साधु के वेश में यहाँ रहने की जरूरत ही नहीं रहेगी। मैं कहीं दूर भाग जाऊँगा और अपनी सारी जिंदगी मजे से करूंगा।’   तभी, उसे वह औरत उसी ओर आती दिखाई दी।

    उसने घबराकर सोचा, ‘अगर इस बुढ़िया ने इस मोटे आसामी के सामने कुछ कह दिया, तो फिर मेरे हाथ एक फूटी कौड़ी तक नहीं लगेगी।

    मुझे इस बुढ़िया के चंद सिक्के देकर इसे भगा देना चाहिए।’ उस बुढ़िया के पास आते ही साधु उसके कुछ कहने के पहले ही बोल उठा, “अच्छा हुआ तुम आ गई।

    मैंने ध्यान करने पर पाया कि तुम्हारे सिक्के झोंपड़ी के उत्तर वाले कोने की ओर दबे हुए हैं। तुम जाओ और वहाँ खोदकर सिक्के निकाल लो।” बुढ़िया अंदर जाकर उस जगह पर खोदने लगी।

    थोड़ी ही देर में उसे वहाँ सिक्के दब मिल गए। तभी बीरबल का एक नौकर वहाँ आ पहुँचा और उनसे बोला, “मालिक, आपके देहली वाले भाई आए हुए हैं।

    वे आपसे मुलाकात करना चाहते हैं।” “वाह! यह तो बड़ा अच्छा हुआ।   अब तो मेरे देहली जाने की कोई जरूरत ही नहीं। है।” यह कहते हुए बीरबल अपने महल की ओर लौट पड़े।

    इस तरह उस पाखडा साधु को न बुढ़िया के सिक्के मिल सके और न ही बीरबल की दौलत। उसका तो वहा हाल हुआ कि ‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे ।

     

    तलवार की कीमत Akbar Birbal Story Hindi for Kids

    बीरबल के घर के पास ही एक बुढ़िया का मकान था। एक दिन बीरबल ने बुढ़िया के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी। पता करने पर उन्हें मालूम हुआ कि बुढ़िया का जवान बेटा लड़ाई में मारा गया है।

    दरअसल, बुढ़िया का इकलौता बेटा मुगलिया फौज में सिपाही था और वह एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया था। बेटे के बिना बुढ़िया का अपना जीवन गुजारना भी मुश्किल हो गया था

    बीरबल ने भी उस औरत से मुलाकात करके उसके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की। बुढ़िया बोली, “मेरा बेटा अपनी तनख्वाह का आधा हिस्सा मुझे भेज देता था। उसी से मेरा घर चलता था।

    अब तो मेरे लिए भुखमरी की स्थिति पैदा हो जाएगी।” बीरबल एक क्षण विचार करके उससे बोले, “क्या तुम्हारे पास कोई ऐसी वस्तु है, जो तुम बादशाह सलामत को तोहफे में दे सको?” “मेरे पास तो एक पुरानी तलवार के अलावा कुछ नहीं है।

    वह तलवार भी मेरे बेटे की है।” बुढ़िया ने जवाब दिया। “वह तलवार दरबार में ले जाकर बादशाह सलामत को तोहफे में दे दो। इसके बदले वे जरूर तुम्हें कुछ देंगे।” बीरबल ने सलाह दी।

    बुढ़िया ने वैसा ही किया, जैसा बीरबल ने उसने कहा था। अगले दिन वह दरबार में पहुँची और तलवार को दोनों हाथों पर रखकर बोली, “जहांपनाह, मेरा बेटा आपकी फौज में काम करता था।

    मैं यह तलवार आपको तोहफे में देना चाहती हूँ, जिससे यह फिर आपके काम आ सके।” बादशाह ने वह तलवार अपने हाथ में लेकर गौर से देखते हुए कहा, “इसमें तो जंग लग गई है। अब यह किसी काम की नहीं रही।”

    फिर भी बादशाह ने एक नौकर से उस बुढ़िया को खजाने से कुछ धन दिलवा देने को कहा। बीरबल जानते थे कि वह धन बुढ़िया के लिए काफी नहीं होगा।

    “जहांपनाह, क्या यह तलवार मुझे देखने का एक मौका देंगे?”   यह कहते हुए बीरबल ने वह तलवार बादशाह के हाथों से ले ली और बड़ी हैरत का भाव दर्शाते हुए उसे देखने लगे। “क्या हुआ? तुम्हें इतनी हैरत किस बात से हो रही है?” बादशाह ने बड़े आश्चर्य से पूछा।

    “मैंने सुना है कि बादशाह सलामत के किसी चीज को छ लेने पर वह चीज सोने की बन जाती है। मुझे हैरानी है कि इस बार ऐसा क्यों नहीं हुआ!” बीरबल बोले। बादशाह बीरबल का भावार्थ समझ गए।

    उन्होंने एक नौकर को उस तलवार को सोने। के सिक्कों में तौलने और वे सिक्के उस बुढ़िया को दे देने का हुक्म दिया। सिक्के लेकर बहुत बुढ़िया खुशी-खुशी घर लौट गई।

     

    सबसे चमकीली चीज Best Akbar Birbal Story Hindi

    एक बार बादशाह अकबर दरबार में बैठे-बैठे ऊब रहे थे। दरबार के सभी काम निपटाकर उनके दरबारी भी आराम की मुद्रा में बैठे थे ऐसे में बादशाह अकबर कोई ऐसी बात जरूर छेड़ देते थे,

    जिससे दरबार का माहौल खुशगवार हो गए। इसी इरादे से उन्होंने दरबारियों से एक प्रश्न किया, “वह कौन सी चीज है जो सबसे ज्यादा चमकीली है?” जिसकी समझ में जैसा आया, उसने वैसा ही उत्तर दिया।

    किसी ने कहा कि दूध सबसे अधिक चमकीला होता है। वहीं कुछ लोगों ने कहा कि रुई सबसे ज्यादा चमकीली होती है। सभी लोग अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार उत्तर दे रहे थे।

    आश्चर्य की बात यह थी कि सबसे अधिक बुद्धिमान समझे जाने वाले बीरबल अभी तक चुपचाप अपनी जगह बैठे हुए तमाशा देख रहे थे। जब अकबर की नजर बीरबल पर पड़ी, तो उन्होंने उनसे पूछा,

    “तुम्हारा क्या कहना है, बीरबल? सभी लोग अपनी अपनी बात कह रहे हैं, फिर तुम क्यों चुप हो?” “मेरे ख्याल से सूरज की रोशनी दूसरी सभी चीजों से कहीं ज्यादा चमकीली होती है।”

    बीरबल ने उत्तर दिया। “क्या तुम अपनी बात साबित कर सकते हो?” बादशाह अकबर ने पूछा।  “हाँ, मैं कर सकता हूँ।” बीरबल बोले। दूसरे दिन बीरबल ने अकबर को अपने घर रात भर ठहरने के लिए आमंत्रित किया।

    अकबर बीरबल को अपने घर के सदस्य जैसा ही मानते थे, अत: उन्होंने बीरबल का यह निमंत्रण बेझिझक स्वीकार कर लिया और उनके यहाँ रहने चले गए। खाने के बाद बीरबल अकबर को शयनकक्ष में ले गए।

    शयनकक्ष को शहंशाह के लिए खासतौर पर सजाया गया था। खुशबूदार इत्रों की वजह से कमरा इतना महक रहा था कि अकबर को तुरंत नींद आ गई।

    सुबह जब वे उठे, तो उन्होंने पाया कि शयनकक्ष के सभी दरवाजे व खिड़कियाँ बंद थीं तथा वे घोर अंधकार में खड़े थे। वे अनुमान से द्वार की ओर बढ़े।

    तभी उनका पैर किसी वस्तु से टकराया।   परंतु अंधेरा होने के कारण वे उस वस्तु को देख नहीं पाए। मुश्किल से टटोलते हुए वे दरवाजे तक पहुँच सके।

    उन्होंने जब द्वार खोला तो सूर्य की किरणें कमरे में आने लगीं।   उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि वे एक दूध से भरे कटोरे से टकरा गए थे। पास ही कुछ रुई भी पड़ी थी। अकबर अभी स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे थे कि तभी वहाँ बीरबल ने प्रवेश किया।

    “यह सब क्या हो रहा है? कमरे के सारे दरवाजे और खिड़कियाँ किसने बंद कर दिए थे? अंदर इतना घना अंधेरा छा गया था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।

    मुझे तो दरवाजे तक पहुँचना भी मुश्किल हो गया था।   किसी तरह टटोल-टटोलकर दरवाजे तक आ सका।” बादशाह ने आश्चर्यपूर्वक पूछा। “जहांपनाह, दरवाजे और खिड़कियाँ मैंने बंद किए थे।” बीरबल ने उत्तर दिया।

    बीरबल के इस उत्तर पर बादशाह को कुछ गुस्सा आ गया।   उन्हें बीरबल से ऐसी आशा कदापि न थी। “इस हरकत की वजह?” उन्होंने अपना गुस्सा दबाने की कोशिश करते हुए पूछा।

    “जहांपनाह, जब अंधेरा था, तब आप दूध और रुई के होते हुए भी कमरे में कुछ भी देखने में नाकामयाब रहे थे।   आप तभी देख सके, जब सूरज की रोशनी अंदर आने लगी। अब आप ही बताइए कि सबसे ज्यादा चमकीली चीज कौन सी होती है?”

    अकबर को यह समझते देर नहीं लगी कि बीरबल ने यह नाटक अपनी बात को सिद्ध करने के लिए ही किया है। “मैं तुम्हारी बात समझ गया, बीरबल, कि सूरज की रोशनी से ज्यादा चमकीली चीज दुनिया में दूसरी नहीं है।

    परन्तु यह समझाने के लिए तुमने मुझे बहुत तकलीफ में डाल दिया था। आगे से अपनी बात साबित करने के लिए थोडा सरल रास्ता अपनाना, जिससे ऐसी दिक्कत न हो।” अकबर ने कहा। बीरबल ने मस्कराते हए हामी भर दी।

     

    सर्वोत्तम हथियार Akbar Birbal Story Hindi

    एक दिन बादशाह अकबर शस्त्रागार में अपने अस्त्र-शस्त्रों का निरीक्षण कर रहे थे। पड़ोसी राज्यों के हमले के खतरे के चलते उन्हें सुरक्षा की चिंता सता रही थी, जिस कारण से वे यह जान लेना चाहते थे कि उनके पास कितने अस्त्र-शस्त्र हैं।

    चलते-चलते उन्होंने अपने साथ चल रहे दरबारियों से पूछा, “जंग का सबसे बढ़िया हथियार कौन सा है?” “जहांपनाह, तलवार।” एक ने कहा। “तीर और धनुष, आलमपनाह।”

    दूसरे दरबारी ने अपनी बुद्धि घुमाई। “बीरबल, क्या हुआ भई, तुम्हारे हिसाब से जंग या अपने बचाव के लिए सबसे बढ़िया हथियार क्या होता है?’ बादशाह ने पूछा।

    “मैं समझता हूँ कि सबसे बेहतरीन हथियार वही है,   जो वक्त पर तुरंत हाथ में आ जाए।” बीरबल ने कहा। बीरबल के इस उत्तर पर सभी सोच में पड़ गए, क्योंकि इस उत्तर का अर्थ उनकी समझ में नहीं आया था।

    “तुम्हारी बात का क्या मतलब हुआ, बीरबल?” बादशाह ने भी पूछा।   “इस तरह से बताना मुश्किल होगा, जहांपनाह,” बीरबल बोले, “किसी दिन सही मौका आने पर मैं अपनी बात का मतलब साफ कर दूँगा।” कुछ दिनों बाद बादशाह अकबर बीरबल के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले।

    पैदल इधर-उधर भ्रमण करते हुए वे दोनों सामान्य नागरिकों जैसे जीवन का आनंद उठा रहे थे। उन दोनों ने वेष बदल रखा था ताकि लोग उन्हें पहचान न सकें।

    चलते-चलते अचानक उन्होंने सामने से एक बड़े कुत्ते को आक्रमण की मुद्रा में अपनी ओर आते हुए देखा। सहयोग से अकबर आगे व बीरबल पीछे चल रहे थे।

    कुत्ता इतना निकट आ चुका था कि पीछे मुड़कर भागना सम्भव नहीं था।   वेष बदलकर तलवार भी छुपाए होने के कारण शीघ्रता से उसे निकालना भी सम्भव न हो सका।

    कुत्ता उछलकर आक्रमण करने ही वाला था कि तभी बीरबल ने शीघ्रता से किनारे पडे एक पत्थर को उठाकर कुत्ते की ओर फेंक दिया।   कुत्ता भय से पलटकर वहाँ से भाग गया।

    अब गली में उन दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं था। अकबर अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोले,   “बीरबल, यदि तुमने पत्थर फेंककर उसे भगाया न होता, तो उस पागल कुत्ते ने तो हमारा काम तमाम कर ही दिया था।”

    “जहांपनाह, अब आप ही बताइए कि सबसे बढ़िया हथियार कौन सा है? तलवार या पत्थर?”   बीरबल ने मुस्कुराते हुए पूछा। “अरे! यहाँ तो मुसीबत से बचने को तुरंत हाथ में आया पत्थर ही सबसे बढ़िया हथियार साबित हुआ है। तुमने सही कहा था, बीरबल, मुसीबत के वक्त जो हथियार काम आए, वही सबसे अच्छा होता है।”

     

    मनुष्य कौन गधा कौन Akbar Birbal Story Hindi for Students

    एक दिन बादशाह अकबर सारा कामकाज निपटाने के बाद मनोरंजन की मुद्रा में बैठे हुए थे। लेकिन बीरबल ऐसे वातावरण में भी शांत बैठे थे। उस दिन वे हँसी-मजाक में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे थे।

    बीरबल के बिना बादशाह की महफिल पूरी कैसे होती? इसलिए उन्हें उकसाने की दृष्टि से बादशाह ने उन्हें छेड़ा, “बीरबल, जरा यह बताओ कि तुममें और गधे में कितना अंतर है?”

    ईर्ष्यालु दरवारियों ने बादशाह का सवाल सुनकर ठहाके लगाने शुरू कर दिए। उधर बीरबल कहाँ चुप रहने वाले थे। उन्होंने चुपचाप अपना सिर नीचे झुका लिया जैसे भूमि की ओर देखते हुए कुछ गणना कर रहे हों।

    उनकी मुद्रा बड़ी गम्भीर थी और वे अपने हाथों पर कुछ गिनती कर रहे थे। “क्या गिनती कर रहे हो, बीरबल?” अकबर ने थोड़ी हँसी के साथ पूछा।

    “मैं अपने और गधे के बीच की दूरी पता करने की कोशिश रहा था मैंने गिनती कर ली है,”   बीरबल ने अपनी दृष्टि अकबर की ओर उठाते हुए कहा, “यह कोई सोलह फीट जान पड़ती है।” इस उत्तर पर अकबर अत्यंत लज्जित हो गए और कुछ देर तक दृष्टि ऊपर न कर सके।

    दरअसल बीरबल ने अकबर के सिंहासन के सामने खड़े होकर उनके और अपने बीच की दूरी बताई थी। इस प्रकार बीरबल ने बादशाह द्वारा किए गए मजाक को उन्हीं पर पलट दिया।

     

    मूर्ख दरबारी Interesting Akbar Birbal Story in Hindi

    एक बार बादशाह अकबर के कुछ दरबारी इकट्ठा होकर उनके पास जाकर बोले, “जहांपनाह, हम लोग इस बात से बहुत परेशान हैं कि बीरबल की तुलना में आप हम लोगों को कोई इज्जत नहीं देते।”

    “हाँ, इसमें शक की तो कोई बात ही नहीं है कि बीरबल हमारी हुकूमत के सभी मंत्रियों में सबसे तेज दिमाग है। वह हुकूमत में आने वाली सभी मुश्किलों को बड़ी आसानी और होशियारी से निपटाता है।

    यही वजह है कि मैं बीरबल पर इतना भरोसा करता हूँ।” बादशाह ने पूरे विश्वास के साथ उत्तर दिया। “ऐसा कुछ भी तो नहीं है, जहांपनाह, ने बीरबल कर सकता है और हम नहीं।

    आप बस एक मौका हमें दें, जिससे हम अपनी काबिलियत साबित कर सकें।” “बहुत अच्छा,” बादशाह ने कहा। अकबर के हामी भरने के पीछे उनका यह विचार था कि इससे दरबारियों को पता चल जाएगा कि वे कितने पानी में हैं।

    उसी दिन अकबर ने अपने निजी कक्ष में सभी दरबारियों को बुलाया। उस समय वे बिस्तर पर कम्बल ओढ़कर लेटे थे। उन्होंने कहा, “मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन इस कम्बल से अपने आपको मैं सिर से पाँव तक पूरा नहीं ढक पा रहा हूँ।

    अब तुम लोग कुछ ऐसा करो, जिससे न तो मेरा सिर और न ही मेरे पैर कम्बल के बाहर रहें।”दरबारियों ने तुरंत अपनी बुद्धि का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया।

    परंतु सब बेकार था! बुद्धि जब हो, तभी तो कोई हल निकले।   एक ने आगे बढ़कर कम्बल को बादशाह के सिर तक खींचा। ऐसे में सिर तो कम्बल से ढक गया, परंतु पॉव कम्बल से बाहर हो गए।

    दूसरे दरबारी ने कम्बल को पाँव तक खींच दिया, लेकिन ऐसे में बादशाह का सिर बाहर आ गया।   अंतत: हार मानते हुए उन्होंने एक मत से निर्णय दिया कि इस कम्बल से बादशाह को पूरा-पूरा ढक पाना असम्भव है।

    अकबर मंद-मंद मुस्कुराने लगे। उन्होंने अपने एक सेवक को बुलाकर बीरबल को ले आने को कहा।   जब बीरबल उपस्थित हुए तो बादशाह ने वही समस्या उनके सामने भी रखी।

    बीरबल ने भी निरीक्षण करके यही पाया कि कम्बल बादशाह के शरीर की लम्बाई से कुछ छोटा था।   परन्तु बीरबल के पास तो सभी समस्याओं का समाधान पहले से ही मौजूद रहता था।

    उन्होंने अकबर से अपने पैर कुछ मोड़ने को कहा। अब कम्बल ने बादशाह को पूरा ढक लिया था।   “जहांपनाह, आप अपने पैरों को कम्बल के भीतर ही रखें।”

    बीरबल ने बादशाह से निवेदन किया। इस प्रकार समस्या का समाधान हो चुका था। फिर बीरबल बादशाह से आज्ञा लेकर वहाँ से चले गए।   बीरबल के जाने के बाद बादशाह बिस्तर से उठते हुए दरबारियों से बोले,

    “अब तक तो तुम लोग समझ चुके होगे, या अब भी समझाने की जरूरत रह गई है कि मैंने बीरबल को इतना बड़ा पद क्यों दिया है?” बादशाह की बात सुनकर दरबारियों ने अपने सिर शर्म से झुका लिए।

     

    भाषाओं का विद्वान New Kids Story in Hindi

    एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में एक विद्वान आया। उसका दावा था कि वह भारत की सभी भाषाओं का ज्ञाता है और किसी भी भाषा में बड़ी आसानी से बात कर सकता है।

    उस बादशाह और दरबारियों को विभिन्न भाषाओं में कविताएँ भी सुनाई। उसकी प्रतिभा देखकर दरबार में मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। विद्वान ने बादशाह से कहा, “जहांपनाह,

    आपके सभी दरबारी मुझसे अपनी-अपनी मातृभाषा में कोई भी प्रश्न करें और मैं उनकी भाषा में ही उनके प्रश्न का जवाब दूँगा।” उसकी बात सुनकर बादशाह ने दरबारियों को इशारा किया।

    दरबारी उस विद्वान से अपनी भाषाओं में प्रश्न पूछने में लग गए। वह विद्वान भी दरबारियों के प्रश्नों का उन्हीं की भाषाओं में उत्तर देने लगा।   वह विद्वान सभी भाषाओं में इतना धाराप्रवाह बोल रहा था कि दरबार में मौजूद सभी लोग भौंचक्के रह गए थे।

    तभी, उस विद्वान ने बादशाह से फिर कहा,   “जहांपनाह, मैं आपके सभी दरबारियों को चुनौती देता हूँ कि वे कल सुबह से पहले मेरी मातृभाषा का पता लगा लें। जो व्यक्ति मेरी मातृभाषा का पता लगा लेगा, उसे मैं सार्वजनिक रूप से अपना गुरु स्वीकार कर लँगा।

    लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति इस चुनौती को पूरा न कर पाए, तो मुझे आपकी सल्तनत का सबसे बड़ा विद्वान घोषित कर दिया जाए।” बादशाह ने विद्वान की यह बात मान ली।

    उन्होंने सेवकों को उस विद्वान को उस रात शाही अतिथिगृह में ठहराने का आदेश दिया। जब वह विद्वान दरबार से चला गया तो बादशाह ने अपने दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से कोई उस विद्वान की मातृभाषा बता सकता है?”

    बादशाह की बात सुनकर सभी दरबारी चुप ही रहे। किसी से भी कुछ कहते न बन पडा। सव को चुप देखकर बादशाह बीरबल से बोले, “बीरबल, अब इस दरबार के सम्मान की रक्षा तुम्हारे हाथ में है।

    तुम्हीं इस मामले में कुछ कर सकते हो।” बीरबल बोले, “मैं उस विद्वान की चुनौती का उत्तर कल सुबह भरे दरबार में ही दूँगा।” इसके बाद बादशाह ने उस दिन का दरबार समाप्त कर दिया।

    उस रात,   बीरबल चुपचाप अतिथिगृह के उस कमरे में जा पहुंचे, जहाँ वह विद्वान सो रहा था।   जेब से एक तिनका निकालकर वे उससे विद्वान के कान गुदगुदाने लगे।

    विद्वान ने करवट बदल ली। फिर बीरबल दूसरी ओर से उसके कान में गुदगुदाहट करने लगे। कुछ देर तक तो विद्वान हाथ से उस तिनके को हटाता रहा।

    लेकिन अंत में वह परेशान होकर अपनी मातृभाषा में कह उठा, कौन है?’ वह चौंककर उठ भी बैठा, लेकिन तब तक बीरबल रेंगकर उसके बिस्तर के नीचे छिप गए थे। जब उसने किसी को आसपास नहीं पाया तो फिर सो गया।

    अगली सुबह वह तैयार होकर निश्चित समय पर दरबार में जा पहुँचा। थोड़ी ही देर में बादशाह और सभी दरबारी भी वहाँ आ गए। सभी को यह जानने की उत्सुकता थी कि बीरबल उस विद्वान के प्रश्न का क्या जवाब खोजकर लाए हैं।

    बीरबल के कई दुश्मन मन ही मन सोच रहे थे, ‘खुदा करे, बीरबल इस विद्वान के सवाल का जवाब न दे सके! इससे बीरबल की बड़ी फजीहत होगी और बादशाह की नजरों में उसकी इज्जत खत्म हो जाएगी।

    इससे हमें उसके पद पर काबिज होने में भी सहूलियत हो जाएगी।’ उधर कई दरबारी सोच रहे थे, ‘दरबार के लिए यही अच्छा होगा कि बीरबल इस विद्वान के प्रश्न का जवाब दे दे।’

    विद्वान ने पूछा,   “क्या कोई व्यक्ति मेरी मातृभाषा का पता लगा सका है?” उसके चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान तैर रही थी, जो यह जताती थी कि उसके अपनी चुनौती के पूरा हो पाने की उम्मीद बहुत कम थी।

    बादशाह ने बीरबल की ओर देखा।   बीरबल अपने स्थान पर खड़े होकर बोले, “इतना अभिमान एक विद्वान को शोभा नहीं देता। खैर, मैं आपको बता दूँ कि आपकी मातृभाषा तेलुगू है।”

    बीरबल की बात सुनकर वह विद्वान आश्चर्य से उछल पड़ा।   उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उसके प्रश्न का उत्तर दे दिया जाएगा। उसने चुपचाप बीरबल को अपना गुरु स्वीकार कर लिया और दरबार से चला गया।

    फिर बादशाह ने बीरबल से पूछा,   “आखिर तुमने उसकी मातृभाषा का पता कैसे लगा लिया?” बीरबल बादशाह को पूरी बात बताकर बोले, “हुजूर, आदमी कितनी ही भाषाएँ सीख ले, लेकिन अचानक इस तरह बोलने पर वह अपनी मातृभाषा में ही बोलता है।” बीरबल की बात सुनकर बादशाह और सभी दरबारी खूब हँसे। बीरबल ने अपनी चतुराई से दरबार की लाज रख ली थी।

     

    बीरबल की खिचड़ी Famous Akbar Birbal Kids Story in Hindi

    बादशाह अकबर के राज्य में एक ऐसा गरीब व्यक्ति था, जिसने लगातार अभ्यास करके पूरी रात ठंडे पानी में खड़े रहने की काबिलियत हासिल कर ली थी। जनवरी की ठंड में भी वह पूरी रात ठंडे पानी में खड़ा रह सकता था।

    उसका यह करतब देखकर लोग हैरत से दाँतों तले उंगली दबा लेते थे। एक बार कुछ लोगों ने उसे सुझाव दिया, “तुम अपना यह करतब शहंशाह अकबर को क्यों नहीं दिखाते?

    इसमें कोई शक नहीं कि वे भी तुम्हारे इस करतब की दाद दिए बिना नहीं रह सकेंगे। जब वे तुमसे इनाम माँगने को कहें, तो तुम उनसे सोने की अशर्फियों की एक थैली मांग लेना।

    इससे तुम्हारी गरीबी दूर हो जाएगी और तुम अपना जीवन आराम से बिता सकोगे।” उस व्यक्ति को भी उनकी सलाह पसंद आई। अगले ही दिन वह बादशाह के दरबार में जा पहुँचा और अपने करतब के बारे में उन्हें बताया।

    बादशाह बोले, “सिर्फ सुनकर तुम्हारी बात पर क्या भरोसा किया जाए? एक रात यमुना के पानी में खड़े होकर दिखाओ, तो मैं तुम्हें मुँहमांगा इनाम दूंगा।”

    वह व्यक्ति तो उसके लिए दरबार में आया था। वह तुरंत तैयार हो गया।   उस रात वह यमुना नदी के ठंडे पानी में खड़ा रहा। अगले दिन तड़के ही बादशाह उसे देखने के लिए अपने दरबारियों के साथ वहाँ पहुँचे। जब वह व्यक्ति नदी के पानी से बाहर निकला,

    तो सबने देखा कि ठंड से उसके बदन का निचला हिस्सा नीला पड़ गया है। “तुमने पूरी रात ठंडे पानी में कैसे गुजार ली?” बादशाह ने उससे बड़ी हैरत से पूछा।

    “मैं यहाँ खड़ा आपके महल में जल रहे दीपकों को देखता रहा।   इससे मुझे प्रेरणा मिलती रही।” उस गरीब व्यक्ति ने बताया। बादशाह अकबर के दरबार में कई ऐसे दरबारी भी थे जो किसी को कुछ मिलता देखकर जलने लगते थे।

    इस प्रकार के ईर्ष्यालु दरबारी घुमा-फिराकर कुछ ऐसा कहते,   जिससे बादशाह के मन में इनाम पाने वाले की छवि धूमिल हो जाए। गरीब आदमी की बात सुनकर ऐसा ही एक दरबारी बोल पड़ा, “बंदापरवर, तब तो इसने कोई बड़ा तीर नहीं मार लिया।

    आपके महल में जल रहे दीपकों की गर्मी की वजह से ही यह यहाँ खड़ा रह सका।” बादशाह भी बोले, “तुम हमारे दीपकों की मदद लेकर ही यहाँ ठंडे पानी में खड़े रह सके हो।

    इसलिए तुम्हें इनाम नहीं दिया जा सकता।”   यह कहकर बादशाह दरबारियों के साथ वहाँ से चलते बने। उन्हीं दरबारियों में से एक बीरबल भी थे। उन्हें बादशाह का यह अन्याय बिल्कुल पसंद नहीं आया था।

    वे गरीबों के हमदर्द थे और नहीं चाहते थे कि किसी भी गरीब के साथ अन्याय हो। उन्होंने फैसला कर लिया कि वे उस गरीब व्यक्ति को इंसाफ दिलाकर रहेंगे। अगले दिन बीरबल दरबार में नहीं पहुँचे।

    जब काफी देर के बाद भी बीरबल नहीं आए, तो बादशाह ने एक नौकर को उनका पता लगाने के लिए भेजा। थोड़ी देर बाद वह नौकर लौट आया।

    उसने बादशाह को बताया कि बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और खिचड़ी खाकर ही दरबार में आएंगे। बादशाह ने बीरबल का इंतजार करने का फैसला किया।

    लेकिन काफी देर के बाद भी बीरबल नहीं आए।   बादशाह ने एक नौकर को फिर उन्हें देखने के लिए भेजा। उस नौकर ने भी थोड़ी देर बाद लौटकर वही बताया जो पहले वाले नौकर ने बताया था। तब बादशाह बोले, “मैं खुद जाकर देखता हूँ बीरबल कौन सी खिचड़ी पका रहा है।”

    यह कहकर बादशाह स्वयं बीरबल के घर की ओर चल दिए। बीरबल के घर के पास पहुँचकर उन्होंने देखा कि उन्होंने एक पेड़ की ऊँची शाखा से एक बर्तन लटका रखा है और उसके नीचे जमीन पर आग जल रही है।

    “यह क्या तरीका है, बीरबल?” बादशाह बोले, “क्या तुम्हें लगता है इतने नीचे जल रही आग की गर्मी खिचड़ी के बर्तन तक पहुँच पाएगी। इस तरह तो तुम्हारी खिचड़ी कभी नहीं बनेगी।”

    “क्यों नहीं बनेगी, जहांपनाह?” बीरबल बोले,   “अगर वह गरीब व्यक्ति इतनी दूरी पर मौजूद महल के दीपकों से रोशनी प्राप्त कर सकता है, तो मेरी खिचड़ी का बर्तन तो उनके मुकाबले आग के काफी पास है।

    फिर भला आग की गर्मी मेरे बर्तन तक क्यों नहीं पहुँचेगी?”   बादशाह को अपनी गलती समझ में आ गई। वे यह भी समझ गए कि बीरबल अपनी खिचड़ी इतने अजीब तरीके से क्यों पका रहे थे वे बीरबल से बोले, “बीरबल, मैं तुम्हारी बात का मतलब समझ गया हूँ।

    बेशक मैंने उस गरीब आदमी के साथ नाइंसाफी की है। मैं उस आदमी को फिर दरबार में बुलवाऊँगा और उसे उसकी मेहनत का इनाम दूंगा।

    अब क्या तुम अपनी खिचड़ी जल्दी पकाओगे? दरबार में तुम्हारी जरूरत है।”   बीरबल तुरंत उठ खड़े हुए और बादशाह के साथ दरबार की ओर चल दिए।

    अगले दिन ही उस गरीब व्यक्ति को दरबार में बुलाया गया।   बादशाह ने उसे इतनी दौलत दे दी कि वह अपनी बांकी जिंदगी आराम से बिता सके। इस तरह बीरबल ने एक गरीब आदमी की मदद की।

     

    कबूतरों की संख्या Birds Kids Story in Hindi

    एक दिन पड़ोसी राज्य का एक मंत्री बादशाह अकबर के दरबार में आया। उसके बादशाह ने बीरबल की होशियारी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और उसे बीरबल की बुद्धिमत्ता का इम्तिहान लेने के लिए ही भेजा था।

    मंत्री ने बादशाह अकबर को अपने बादशाह द्वारा भिजवाए गए बेशकीमती तोहफे दिए और फिर बोला, “जहांपनाह, आपके मशहूर दरबारी बीरबल की बुद्धिमानी के किस्से हमारे राज्य में भी पहुंच गए हैं।

    हमारे बादशाह ने उनकी होशियारी की जाँच के लिए मुझे उनसे एक सवाल पूछने का हुक्म दिया है। अगर आपकी इजाजत हो, तो मैं उनसे वह सवाल पूछू?” “जरूर पूछो।

    बीरबल तुम्हारे हर सवाल का जवाब देने की काबिलियत रखता है।” बादशाह हँसते हुए बोले। तब वह मंत्री बीरबल की ओर देखता हुआ बोला, “बीरबल, क्या आप बता सकते हैं कि आपके शहर आगरा में कितने कबूतर रहते हैं?”

    मंत्री का सवाल सुनकर दरबार में मौजूद सभी लोग एक-दूसरे की शक्ल हैरानी से देखने लगे। वे सोच रहे थे, ‘इस अजीबोगरीब सवाल का जवाब तो किसी के भी पास नहीं होगा।

    भला किसी को क्या पता कि शहर में कितने कबूतर रहते हैं?’ लेकिन बीरबल उस मंत्री का सवाल सुनकर तनिक भी नहीं घबराए थे। वे मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले, “मंत्री महोदय,

    अपने बादशाह सलामत को बता दीजिएगा कि आगरा में 88,457 कबूतर रहते हैं।” मंत्री बीरबल की बात सुनकर हैरान रह गया। उसने सोचा कि बीरबल उसे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह बोला,

    “और अगर कबूतरों की संख्या इससे ज्यादा निकली तो?” “तो यह समझ लीजिएगा कि कबूतरों के कुछ रिश्तेदार उनसे मिलने के लिए दूसरे शहरों से आगरा में आए हुए हैं।” बीरबल ने तपाक से जवाब दिया।

    “और अगर कम निकली हो तो?” मंत्री ने फिर सवाल दागा। “तो यह समझ लीजिएगा कि आगरा के कुछ कबूतर अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए दूसरे शहरों में गए हुए हैं।”

    मंत्री बीरबल की बात सुनकर सकपकाया।   वह कोई जवाब सोच ही रहा था कि तभी बीरबल फिर बोल पड़े, “अगर आपको मेरी गिनती पर भरोसा न हो, तो आप खुद गिनती करके देख सकते हैं।

    आप भी इसी नतीजे पर पहुंचेंगे।” बीरबल की बात सुनकर सभी दरबारी हँसने लगे।   वह मंत्री संकोच के कारण बगलें झाँकने लगा। बीरबल ने उसे लाजवाब कर दिया था।

    फिर बादशाह अकबर ने भी उसे दूसरे बादशाह के लिए कीमती तोहफे देकर विदा कर दिया।   जब उसने अपने राज्य में पहुँचकर बादशाह को बीरबल की चतुराई के बारे में बताया, तो वह भी उसकी होशियारी की तारीफ किए बिना नहीं रह सका।

     

    मुर्गा नहीं देता अंडा Amazing Kids Story in Hindi

    एक बार बादशाह अकबर की बेगम ने उन्हें बीरबल को मजाक ही मजाक में मात देने की एक तरकीब सुझाई। तरकीब बादशाह को बेहद पसंद आई और उन्होंने तुरंत उस पर अमल करने का मन बना लिया।

    उस दिन बीरबल के दरबार में आने के पहले ही उन्होंने सभी दरबारियों में एक-एक अंडा बाँट दिया और उन्हें उन अंडों को अपने कपड़ों में छिपा लेने का निर्देश दिया।

    जब बीरबल आ गए तो बादशाह ने कहा,   “कल मैंने सपने में देखा कि मेरे दरबार में एक हैरतअंगेज कारनामा होने वाला है। जो दरबारी मेरे लिए वफादार हैं, आज वे अंडे देंगे।

    इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी दरवारी आज दरबार में अंडा देकर मेरे लिए अपनी जाएगा।”   वफादारी साबित करें। जो अंडा नहीं दे सका, उसे अपने फर्ज से डिगा हुआ समझा बादशाह की बात सुनते ही सभी दरबारी अपने कपड़ों से अंडे निकालकर खड़े हो गए।

    बीरबल यह देखकर बड़ी हैरत में थे।   वे समझ गए थे कि बादशाह ने उन्हें मजाक में उन्नीस करने के लिए ही यह सब स्वांग रचा है वे तुरंत बोले, “जहांपनाह, मुझे यह बताते हुए बड़ा अफसोस है कि मैं अंडा नहीं दे सकूँगा।

    इसका कारण यही है कि सिर्फ मुर्गियाँ ही अंडे दे सकती हैं, मुर्गे नहीं। आप मुझे मुर्गा मान लीजिए।” बीरबल की बात सुनकर वहाँ मौजूद हाथ में अंडा लिए खड़े दरबारी शर्मिदा हो गए और बगलें झाँकने लगे। बादशाह भी हँसने लगे थे।

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