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स्वस्तिका राजपूत की शायरी कविता, Swastika Rajput shayari,poetry,status

    स्वस्तिका राजपूत की शायरी कविता, Swastika Rajput shayari,poetry,status
    हिन्दी में सर्वश्रेष्ठ 35 स्वस्तिक राजपूत कविता

    यु तो दुनिया भर में मेरे प्यार के किस्से मशहूर हो गए ,
    मैं जुबां पे उनका नाम भी न ले सकू फिर ये कैसी मोहब्बत
    वो घर से लड़कर आये मेरे महफ़िल में मुझे सुनने
    फिर मैं उन्हें गले भी न लग सकी फिर ये कैसी सोहरत

    ये ताशबुर की आँखे ये झुकती निगाहें
    ये पूछे ये हमसे की खता क्या है मेरी
    तुम्ही अब बता दो सजा क्या है मेरी
    अगर कर ही लिया है बिछड़ने का इरादा
    तो ये घबराना कैसे ये गमे उल्फत मनाना कैसा
    अगर रजा है तुम्हारी तो ख़त्म करे ये कहानी
    आँखों में अब आस्क न लाना जाने वफ़ा
    तुम्हारी सजा भी अब जजा है हमारी ,

    गुजरू मैं उनके गलियों से
    की कहि दिख जाय बस मुझे एक नजर
    दरवाजे पर उसकी नामौजूदगी देख
    उदास हो जाती है मेरी निगाहें
    वो मुझे खिड़कियों से झाँका करते थे
    थी मैं इससे बेखबर।

    स्वस्तिक राजपूत की कविता</he >

    रोये अगर सकस कोई
    तो वो कमजोर कहलाता है ,
    कोन जाने इस दुनिया में
    कोई किसी के लिए क्यों रोता है
    अगर इतना ही आसान होता है रोना
    तो कभी किसी सख्स का दिल न टूटता
    बुरे लगने और रोने में फर्क होता है ज़नाब
    यु अस्क हर किसी पे बहाया नहीं जाता।

    सर्द हवाएं और धुंधली रात
    मुझसे एक सवाल पूछती है
    आज फिर से अकेले खड़े हो यंहा
    किसी के इन्तजार में हो क्या
    आज फिर से उनके प्यार में हो न
    तुम्हे कितनी बार यंहा बिलखते आँशुओ के साथ
    तुम्हारे टूटे हुए दिल को देखा है।
    तुम थकते नहीं हो क्या।

    तुम्हारा दुपट्टा किसी के घडी में
    जाकर अटक जाता है ,
    कोई तुमसे बाते शुरू करने के लिए
    पतंगे तुम्हारे छत पे गिराता है
    या कोई तुम्हे अपने दोस्तों के सहारे
    तुम्हे लवलेटर भेजाया करता है ,

    नींद उड़ा के वो बेख़वर
    खुद चैन से सोता रहा
    मैं आधी रात जागकर
    पन्नो पर आँशु बिखेड़ने लगा
    उसकी बातों को मैं सोचकर
    लास्ट मैसेज मैं उसका तकता रहा ,
    चादर ओढ़े मैं रातभर
    तकियो को भिंगोता रहा

    प्यार पर स्वस्तिक राजपूत शायरी

    हर बार मैं ही बोलू क्या
    कभी तुम भी तो समझो
    मेरी दिल की जुबाँ
    ये राह बिखड़ी सी है
    कभी खुद से तो कभी जहां से उलझी सी है
    आँखों में समंदर लिए चेहरे पर मुस्कान तने
    सह के कट रही है ज़िंदगी जैसे
    भीड़ में तनहा सी है
    यंहा शिकायत करें भी तो किस्से हम
    जब लड़ाई ही अपनों से है।
    चलो माना हम ही गलत तुम ही सही
    तुम अपना हक मुझपे जताते क्यों नहीं
    डांट के फिर मुझे प्यार से समझाते क्यों नहीं
    मेरे सामने तो खामोश रहते हो

    बिछड़े थे जबसे तुम मुझसे
    तुमने सोचा की मोहब्बत खो गयी है ,
    देखा था जबसे उसको
    तुमने जाना की वो मोहब्बत है
    उसकी नजरो से तुम बन सवर रहे थे ,
    और तुमने माना की वो मोहब्बत है ,
    लेकिन वो जो अब नजरें बदली
    तो तुमने सोचा की तुमने खुद को खो दिया है।

    दिल में आकर फिर से लगा
    जब दास्तान अपने यार का
    किसी और से उनको मोहब्बत है
    इस बात को मैंने कबुल किया
    अपने दिल को इजहार करने से
    मैंने न इंकार किया।
    हमे उनसे मोहब्बत है
    ये खबर शायद उनको भी थी
    न उन्होंने कभी कुछ शुरुआत की
    न मैंने कभी इजहार किया।
    मोहब्बत को मैंने इकतरफा ही सही
    मुकब्बल इसक किया।

    स्वस्तिक राजपूत ब्रेकअप शायरी

    अगर मेरे हर बात दिल दुखा देने पर
    तेरा रूठ जाना गलत था
    तो तुम्हारा हर बार मुझसे नाराज हो जाने पर
    तो मेरा तुम्हे मनाना सही कैसे
    की हम रिश्ते हो एक मौका नहीं देते।
    क्यों हम अपने घमंड में ही चूर
    अपनों के ख़ुशी ही नहीं देख पाते
    क्यों प्यार को पाना इतना मुश्किल सा हो जाता है ,
    क्यों यार को मानना खुद की ईगो
    गिराने जैसा लग जाता है क्यों
    क्यों हम प्यार करते हैं मगर जता नहीं पाते ,

    हमसे न पूछो हमारी मशरूफियत की वजह
    तुमने किसी एक सकस को
    वक्त देने के चक्कर में
    अपने हरेक पल गिरवी रखा है
    वो हमे जिसे एक से थी मुनाफे की उम्मीद
    बस उसी एक ने मुझे कर्जदार बना रखा है।
    उनसे मिलने के बहाने तो बहुत थे
    उनसे बिछड़ने के बहाने ने मुझे रोक रखा है ,
    होने के दूर हो जाउंगी पर
    उन्ही कम्वख्त दूरियों ने मुझे नजदीक कर रखा है ,

    की उनके हर छोटी छोटी बातों को
    पूरी ध्यान से सुनना ,
    उनसे कहि गयी प्यार भरी मुझे
    एक लाइन को ,दिन में सौबार रटना।
    और फिर उनका यह कह देना की
    तुम मुझे नहीं समझते मेरे प्यार को
    नहीं समझते ,कहना तो बहुत कुछ चाहता था
    ये दिल उनसे ये सोचकर की कहि उन्हें
    कोई दर्द न पहुंच जाए ,
    अकसर अपने जज्बातो को अपने
    दिल में ही वसा लिया करती थी
    हाँ सायद मैं भी उनसे प्यार करती थी ,
    पर वैसा नहीं जैसा वो मुझसे किया करते थे।

    प्रेमी के लिए स्वास्तिका राजपूत शायरी

    अगर दिल के पास दिमाग होता तो
    वो कभी टूटता ही नहीं ,
    अगर दिल के पास दिमाग होता
    तो वो कभी प्यार करता ही नहीं।
    खास ऐसी मोहब्बत जिस मोहब्बत
    के बदले मोहब्बत ही न मिले।

    ऐसे नहीं थे की चाहने वालो की कमी थी
    पर जिसे हमने चाहा वो हमे चाहा ही नहीं
    आसमान में बहुत से रंग बिखड़े थे मगर
    जिस रंग में मुझे घुलना था
    वो रंग मुझसे मिला ही नहीं।

    तेरी मैसेज का इंतज़ार करते रहना
    तेरे नाम से जब मेरे फ़ोन की रिंग बजे
    साथ साथ मेरे दिल का जोड़ो से धरकना
    गुजरो जब तुम इन आँखों के सामने से
    तुम वही आके रुक जाना
    तुम्हे मुझे देखकर बस मुस्कुरा जाने से
    मेरे दिल का धडक जाना
    हां सायद मुझे भी तुमसे प्यार था
    पर वैसा नहीं जैसा तुम मुझसे किया करते थे।

    मैं कोन हु मैं क्या हु
    मुझे हुआ किया मैं कैसे कहूं
    मैं बर्वाद हु पर आवद हु
    मैं हारा हु पर किसी का शहरा हु
    मैं अधूरा सा पर वो सक्स मुझमे पूरा है
    मैं ढलती शाम सा वो उगता हुआ सवेरा है।
    मैं भटकता मुसाफिर वो रहते मंजिल
    मैं हु अगर दर्द तो वो मेरा दवा है
    मैं हु अगर इवादत तो वो मेरे खुदा है
    मेरे दर्द की कोई वजह नहीं
    मैं खुद से थोड़ी खफा हु
    हर चीज की शुरुआत की
    पर कभी उसे ख़तम नहीं
    मैं हारा हु ये कैसे कहु
    उसके बिना अधूरा हु ये बात उन्हें कैसे समझाऊ
    ज़िन्द्की की अधूरी किताब सी हु उनके बिना

    स्वस्तिक राजपूत शायरी स्थिति

    वो कहतें हैं की तुम्हे क्या फर्क परता है
    मैंने कहा कभी खुद के अंदर
    मुझको समां के देखना
    जब तुम मेरा रहेगा न
    तब आँशु तुम्हारे भी आएंगे
    मेरे अंदर तुम वस्ते हो जाना
    खुद के चोट पर इतना दर्द नहीं होता
    जितना तुम्हारे दर्द पर ये दिल रोता है।

    हाँ माना मैंने कभी किसी से दोस्ती नहीं की
    किसी के साथ मिलकर किसी की बजती नहीं की।
    ये जश्न येसाथ ये मौज तुम्हे मुबारक हो दोस्त
    मुझे मेरी तन्हाई बेहतर लगती है
    क्योकि मेरी तन्हाई ने मेरे पीठ पीछे बातें नहीं की

    दिल मेरे मेरे गीले सिकवे हैं
    ऐसा जहन में न लाना कभी
    तुम मेरी मोहब्बत हो जाना
    मेरी मोहब्बत कभी गलत हो ही नहीं सकती।
    है कुछ नाराजगी है तुमसे भी और खुद से भी
    हम इस रिश्ते कोई एक और मौका दे ना पाए
    प्यार होते हुए भी इस रिश्ते को बचा भी नहीं पाए
    अपने गुरुर को इसक के सामने गिरा न पाए
    कह तो रहें हैं अलविदा तुम्हे
    तुम्हारी हालात पे छोड़के

    ये अनकही बातें ये सुनी रातें
    पूछती है मुझसे खता क्या है मेरी
    तुम्ही अब बता दो सज़ा क्या है मेरी।

    वक्त ने यंहा है सब को बाँटें
    थोड़ी धुप है किसी का हिस्सा
    तो थोड़ी छाँव है किसी का किस्सा ,
    तू ही बता कभी एक मौषम पूरी साल रहा है क

    क्या हुआ जो तू गिर जाएगा
    की जब तू गिरेगा तो चोट भी गहरा आएगा ,
    उस गहरे चोट से तुझे दर्द भी बड़ा होगा ,
    तू ही बता अगर गिरेगा ही नहीं तो
    उठने का मजा कैसे आएगा ,
    अरे गिरने से डरता है तू उठ के तो देख
    अरे तो जलने से डरता है तो
    खुद के अंदर चिंगारी लगा के तो देख
    अरे तू किस वात से घबराता है

    स्वस्तिका राजपूत की पोएट्री

    कमजोर था सायद प्यार मेरा
    हालातो से वो लड़ पाया नहीं
    कितनी आसानी से कह दिया की उसने
    अब मुझे प्यार नहीं आदत थी सायद
    क्योकि प्यार तो ऐसे ख़तम होता नहीं ,

    वो किसी बेखबर सी सपने के
    अधूरी खुवाईश सी लगते हैं
    जिसे पाना ज़रूरी है ज़िंदगी सवारने के लिए
    और खोना मज़बूरी है ज़िंदगी बनाने के लिए ,

    ये राह बहुत आसान नहीं
    जिस राह पे हाथ छुड़ा के तुम
    तन तनहा निकले चले हो
    इस खाब से सायद राह भटक न जाउ कहि
    हर मोड़ पे मैंने नज्म खड़ी कर रखी है ,
    थक जाओ अगर तुमको ज़रूरत पर जाए
    एक नज्म की अंगुली थाम के
    वापस आ जाना एक नज्म की अंगुली थाम के।

    ठहर जाते तो मिल जाते हम तुम्हे
    इसक में इंतज़ार करते हैं
    जल्द वाज़ी नहीं।

    अपनी कहानी को बेचता वो सक्स
    कितना और कितना अजीब था
    आँखों पे अस्क रख
    होठो से मुस्कुराया करता था
    न कभी खुले दिल से मुस्कुराया
    न कभी खुले दिल से रो पाया था।
    अपनी कहानी को बेचता वो सकस
    कितना और कितना अजीब था।

    स्वस्तिका राजपूत की कविता

    खुदी को ढूंढ़ती हु खुदी में
    भीड़ से बच के चलु तन्हा कोने में
    खुद ही गिरू मैं खुद ही संभलूँ मैं
    ये राह आसान नहीं है जानती हु मगर
    रखती हु गुरुर खुद पेयु की
    तनहा चलना बस की बात नहीं हर किसी में
    खुदी को ढूंढ़ती हु खुदी में

    कैसे रोके तुम्हारे खुवाब को
    खयालो में आने से ,
    नींद भी मेरी थी ज़हन भी मेरा था
    पर अफ़सोस दिल ही मेरा नहीं रहा।

    गम लेकर मुस्कुराना कैसा है
    साथ खोकर साथ पाना कैसा है
    हुए अपने दूर सभी
    अजनवी से मोहब्बत हो जाना जैसा है ,
    ये जो हर बात पे मुस्कुरा देते हो
    आंशुओ को अंगारो के पीछे छुपा देना कैसा है
    न मंजर है न कोई एक ठिकाना
    बंजारों से घूमना कैसा है

    ये अवध वक्ताओं में नहीं हैं
    दिले नासाद में होगी
    मोहब्बत अब नहीं होगी
    ये कुछ दिन बाद में होगी
    गुजर जाएंगे जब ये दिन
    ये उनकी याद में होगी
    मोहब्बत अब नहीं होगी
    ये कुछ दिन बाद में होगी

    स्वास्तिका राजपूत दिल को छू लेने वाली शायरी

    ज़िंदगी अगर आ जाय समझ
    तो फिर समझना क्या
    सबकुछ अगर हो जाए हांसिल
    तो चाहना क्या
    इन सवाल जबाब से परे है दुनिया
    क्या सही क्या गले ये बस है एक नजरिया
    बहाना ज़माना सुनता नहीं है
    आसानी से कुछ भी मिलता नहीं है
    मिलेगा वो सब जो चाहेगा तू
    आवाजे है सबकी सुनता कोई
    सपनो को अपने बार बार तू दोहरा
    एकबार तो कदम सफर के लिए भी उठा

    मैं दरिया से भी डरती हु
    तुम दरिया से भी गहरे हो
    कोन सी बात है तुममे ऐसी
    तुम इतनी अच्छे क्यों लगते हो

    वो नाराज रहते हैं हमसे
    हमारी बात नहीं होती
    पर वो ये नहीं जानते
    बात न होने से किसी की
    याद कम नहीं होतीं
    वो कहते हैं बीतते वक्त के साथ
    मोहब्बत ख़तम हो जाया करती है
    पर वो ये नहीं जानते जो ख़तम हो जाए
    वो मोहब्बत नहीं होती ,

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