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सुभाष चंद्र बोस पर निबंध, Subhash Chandra Bose Par Nibandh

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    सुभाष चंद्र बोस पर निबंध, Subhash Chandra Bose Par Nibandh

    सुभाष चंद्र बोस का भारतीय स्वतंत्रता में अमूल्य योगदान के कारण हर साल 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाया जाता है। इस दिन विद्यालय में बच्चों को सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर निबंध लिखने दिया जाता है। इसीलिए आज के इस लेख में हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में (subhash chandra bose essay in hindi) 250, 300, 500 और 800 शब्दों में लेकर आए हैं।

    सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 250 शब्दों में (Essay on Subhash Chandra Bose in 250 Words)

    बोस को महान नेता के रूप में माना जाता है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था और इनका निधन 18 अगस्त 1945 को हो गया था। उन्होंने अपनी 48 वर्ष की उम्र देश के लिए कुर्बान कर दी थी। भारत के एक महान और राष्ट्रवादी नेता के रूप में सुभाष चंद्र बोस को पहचाना जाता है। सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अपना मुख्य योगदान दिया था।

    द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने हिम्मत के साथ विश्व युद्ध की लड़ाई में अपना योगदान दिया था।

    सुभाष चंद्र बोस ने सन 1920 से 1930 की अवधि के दौरान राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंद भाव और ईमानदार नेता के रूप में भी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। सुभाष चंद्र बोस को भारत का क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भी माना जाता है। क्योंकि उन्होंने बहुत संघर्ष करके देश की आबादी को स्वतंत्रता के खिलाफ जागरूक किया था।

    स्वतंत्रता सेनानी के रूप में माने जाने वाले सुभाष चंद्र बोस जिनको इतिहास का बहादुर स्वतंत्रता सेनानी या बहादुर नेता के रूप में आज भी याद किया जाता है। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता की संगत में सबसे महत्वपूर्ण योगदान सुभाष चंद्र बोस का रहा, जिसको भूलना असंभव है।

    सुभाष चंद्र बोस की जन्म की बात करें तो इनका जन्म उड़ीसा के कटक जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम नाथ बोस था, जो एक सफल बेस्टर थे। इनकी माता का नाम प्रभावती देवी था, जो ग्रहणी का काम करती थी।

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 300 शब्दों में (Essay on Subhash Chandra Bose in 300 Words)

    सुभाष चंद्र बोस को नेताजी के नाम से जाना जाता है। वे एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे और बेहतरीन नेतृत्वकर्ता थे। नेताजी एक महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्र सेनानी थे, जिनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में एक हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था।

    इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, जो कटक के जिला न्यायालय में एक लोकप्रिय और सफल वकील थे। इनकी माता का नाम प्रतिभा देवी था, जो धार्मिक महिला थी। सुभाष चंद्र बोस के सात भाई और 6 बहनें थी, जिनमें ये नौवें थे।

    सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई इन्होंने एग अल्लू इंडियन स्कूल और कोलकाता की प्रेसिडेंट से विश्वविद्यालय से पूरी की। इन्होंने दर्शन शास्त्र विषय में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद इनके पिता की इच्छा थी कि ये प्रशासनिक अधिकारी बने।

    लेकिन उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन होने के कारण भारतीयों का सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होना इतना आसान नहीं था। जिस कारण इनके पिता ने इन्हें इंग्लैंड भेज दिया और वहां पर कढ़ी मेहनत करने के पश्चात सिविल सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

    इस तरीके से वे एक प्रशासनिक अधिकारी बने लेकिन देश भक्ति की भावना इनके मन में हमेशा से ही थी। इसलिए वे अपने देश की आजादी की दृढ इच्छा लिए इन्होनें प्रशासनिक अधिकारी से इस्तीफा दे दिया और फिर भारत लौट आएं।

    गांधी जी के विचारों से यह काफी ज्यादा प्रभावित हुए, जिसके कारण इन्होंने भारत की कांग्रेस में शामिल हो गए। यहां पर चितरंजन दास के नेतृत्व में इन्होंने काम किया। बाद में चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानने लगे।

    हालांकि कुछ समय के बाद नेताजी का कांग्रेस के प्रति मोहभंग होने लगा, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और फिर आगे देश को आजादी दिलाने के लिए युवाओं को संगठित करने में लग गए। आगे चलकर 5 जुलाई 1943 को आजाद हिंद फौज का गठन किया।

    जापान भी गए और जापान के सहयोग को प्राप्त कर अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भी आजाद करवाया। 1945 में जापान से लौटते हुए विमान क्रैश के कारण इनके मृत्यु की खबर आई।

    हालांकि इनका शव तो नहीं मिला लेकिन सरकार ने इन्हें मृत घोषित कर दिया। इस तरीके से एक महान और बहादुर क्रांतिकारी ने देश को अलविदा कह दिया। देश की आजादी में सुभाष चंद्र बोस का योगदान हमेशा ही स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्दों में

    प्रस्तावना

    सुभाष चंद्र बोस भारत देश के ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश को आजादी दिलाने में समर्पित कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम में से कुछ लोग ऐसे थे, जो विदेशी ताकतों की मदद से भारत को आजाद करवाना चाहते थे।

    उन्हीं में से एक सुभाष चंद्र बोस भी थे, जिन्होंने भारत की पहली फौज आजाद हिंद फौज का निर्माण किया था। स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस के योगदान को इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं।

    सुभाष चंद्र बोस का प्रारंभिक जीवन

    सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा राज्य के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र अपने माता पिता के नौवीं संतान थे, इनके सात भाई और 6 बहने थी। लेकिन उनमें वे अपने भाई शरतचंद्र के काफी ज्यादा करीब थे।

    इनके पिता का नाम जानकीनाथ था, जो पैसे से कटक शहर के एक मशहूर और सफल व्यक्ति थे। जिस कारण इनके पिता को राय बहादुर के नाम से जाना जाता था। उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था, जो एक धार्मिक महिला थी।

    सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा

    सुभाष चंद्र बोस बचपन से पढ़ाई में काफी ज्यादा रुचि रखते थे। हालांकि उन्हें खेलकूद में ज्यादा लगाव नहीं था। वे अपने गुरू के हर बातों को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनते थे, उनकी आज्ञा का पालन करते थे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में ही पूरी की।

    उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता चले गए, जहां पर प्रेसीडेंसी कॉलेज से इन्होंने फिलॉसफी विषय में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान कॉलेज में प्रोफेसर के द्वारा भारतीयों को बहुत सताया जाता था, जिसका विरोध नेताजी अक्सर करते रहते थे।

    यहां जातिवाद का मुद्दा काफी ज्यादा उभर कर सामने आया तब पहली बार नेताजी के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग की भावना उत्पन्न हुई। सन 1919 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रथम श्रेणी से बीए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की।

    उसके बाद सुभाष चंद्र बोस सिविल सर्विस करना चाहते थे लेकिन उस समय अंग्रेजों के कारण भारतीयों का सिविल सर्विस में जाना काफी कठिन था, जिस कारण उनके पिता ने उन्हें सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया, जिसके बाद सुभाष चंद्र बोस जी ने कड़ी मेहनत की और परीक्षा में चौथे स्थान पर आए।

    अंग्रेजी में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर प्राप्त किया। उन में अपने देश के प्रति काफी प्रेम था, जिस कारण भारत की आजादी के लिए काफी ज्यादा चिंतित थे। इसी कारण 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस को छोड़ दिया और फिर भारत लौट आए।

    आजाद हिंद फौज का गठन

    भारत लौटते ही सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से इतना ज्यादा प्रभावित हुए स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गए। उसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और कोलकाता में कांग्रेस पार्टी के नेता बने। इस दौरान इन्होंने चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया और बाद में उन्हें अपना राजनीतिक गुरु भी बनाया।

    लेकिन चितरंजन दास कुछ समय के बाद मोतीलाल नेहरू के साथ कांग्रेस को छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी स्वराज्य पार्टी का निर्माण किए और अपने पार्टी के साथ मिलकर देश आजादी के लिए रणनीति बनाने में लग गए।

    इस बीच कोलकाता के नौजवानों और छात्रों के बीच सुभाष चंद्र बोस भी काफी ज्यादा लोकप्रिय हो चुके थे। हालांकि बाद में धीरे-धीरे सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस से मोह भंग होने लगा, जिसके पश्चात 16 मार्च 1940 को उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

    फिर 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में भारत के स्वाधीनता सम्मेलन में भाग लिया और फिर आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने के प्रयास में पूरी निष्ठा से लग गए। इसी उद्देश्य से 5 जुलाई 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया।

    इतना ही नहीं वे स्वतंत्रता संग्राम में 11 बार जेल भी गए। जर्मनी में हिटलर से भी मिले। हिटलर ने इन्हें नेताजी की उपाधि दी थी। बाद में उन्होंने जापान की मदद से अंडमान निकोबार दीप समूह को भी आजाद करवाया।

    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु जब 1945 में जापान जाते समय ताइवान के पास विमान क्रेश होने के कारण हो गई। इस दौरान उनकी बॉडी भी नहीं मिली, जिसके बाद भारत सरकार ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

    उसके बाद भारत सरकार ने इस दुर्घटना की जांच कमेटी भी बिठाई। लेकिन आज तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विमान क्रैश से हुई थी या नहीं।

    सुभाष चंद्र बोस जयंती

    भारत की आजादी में सुभाष चंद्र बोस के अमूल्य योगदान को कोई नहीं भूल पाएगा। इस योगदान को देखते हुए हर वर्ष 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाई जाती है। इस दिन विद्यालय कॉलेजों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर निबंध लेखन, भाषण और चित्रकला जैसे स्पर्धा होती है।

    यहां तक कि रैली भी निकाली जाती है। पश्चिम बंगाल में इस दिन भव्य कार्यक्रम होता है। इस दिन कई तरह के स्वास्थ्य शिविर, निशुल्क भोजन शिविर और प्रशिक्षण शिविर का भी आयोजन होता है।

    निष्कर्ष

    सुभाष चंद्र बोस एक वीर सैनिक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही एक कुशल नेतृत्वकरता भी थे। नेतृत्व करने में एक श्रेष्ठ वक्ता थे। आज भले ही यह हमारे बीच नहीं है लेकिन हम भारतीयों को इन पर गर्व होता है।

    देश की आजादी के लिए अपना जान न्योछावर करने की भावना रखने वाले ऐसे महान नेता इतिहास के पन्नों में हमेशा ही अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए रखेंगे। इनके द्वारा दिया गया नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा और दिल्ली चलो तथा जय हिंद आज भी देशवासियों में राष्ट्रवाद की भावना को जीवंत रखती है।

    सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 800 शब्दों में

    प्रस्तावना

    सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ। उनका निधन 18 अगस्त 1945 को हुआ था। जब इनकी मृत्यु हुई तब यह केवल 48 वर्ष के थे। वह एक राष्ट्रवादी नेता थे।

    उन्होंने भारत के आजादी के लिए द्वितीय विश्व युद्ध अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ा। नेताजी 1920 और 1930 में कांग्रेस के युवा नेता थे। 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1939 में यह इस पद से हट गये।

    स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सुभाष चंद्र बोस

    नेताजी भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने भारत की आधे से ज्यादा आबादी को स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए प्रेरित किया। उनका जन्म एक समृद्ध हिंदू परिवार में हुआ था। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था।

    उनके पिता जानकी नाथ बोस एक सफल बैरिस्टर थे। माता प्रभावती देवी एक ग्रहणी थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गृहनगर में ही हुई। कोलकता के प्रेसिडेंट कॉलेज से मैट्रिक की। कोलकाता के विश्वविद्यालय स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में ग्रेजुएशन पूरा किया।

    बाद मे वह इंग्लैंड गए और चौथे स्थान के साथ भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की परीक्षा प्रतिभाशाली ढंग से उत्तीर्ण की थी। अंग्रेजों के क्रूर व बुरे व्यवहार करण अपने देशवासियों की बुरी हालत से भी बहुत दुखी थे।

    अंग्रेजो के खिलाफ सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन

    भारत की आजादी के लिए वह सिविल सेवा से जुड़ने के बजाय वह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ना चाहते थे। इसलिए वह असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। नेता जी ने चितरंजन दास के साथ मिलकर काम किया। चितरंजन दास बंगाल के राजनीतिक नेता तथा शिक्षक पत्रकार थे। बाद में वह बंगाल कांग्रेस वॉलिंटियर् नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल कोलकाता के मैयर बने।

    वह बहुत ही ज्यादा महत्वकांक्षी व्यक्ति थे। उन्हें अपने राष्ट्रवादी क्रियाकलापों के लिए कई बार जेल जाना पड़ा। परंतु वे कभी इससे निराश नहीं हुए। उन्होंने हार नहीं मानी। उन्हें कांग्रेस में अध्यक्ष बनाया गया। परंतु गांधी जी के साथ हुए कुछ मतभेदों की वजह से उन्हें इस पद से हटा दिया गया। भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी एक आजाद हिंद फौज बनाई।

    भारत की स्वतंत्रता में सुभाष चंद्र बोस का योगदान

    सुभाष चंद्र बोस पूरे भारत में नेताजी के नाम से प्रसिद्ध थे। उनका भारत की स्वतंत्रता में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान रहा। वह भारत की आजादी के लिए लगातार हिंसात्मक आंदोलन लड़ते रहे। गांधी जी के साथ कुछ मतभेद होने की वजह से कांग्रेस में अध्यक्ष होने के बावजूद इन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया।

    उन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए और ब्रिटिश शासन का सफाया करने के लिए आजाद हिंद फौज तैयार की। उनका मानना था भारत को आजादी गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन से नहीं प्राप्त होने वाली। वह जर्मनी गए, वहां उन्होंने भारत के युद्ध बंधुओं अन्य नागरिकों साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय सेना का निर्माण किया।

    सुभाष चंद्र बोस के जीवन की घटनाएं

    सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने हर समय अपने खुद पर विश्वास रखा। लोगों की बातों में ना आकर देश को आजादी दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दुर्भाग्यवश नेताजी और अन्य लोगों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

    बाद में वह टोक्यो के लिए रवाना होने वाले हवाई जहाज में छोड़े गये और वह हवाई जहाज फारमोसा के आंतरिक क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ऐसे रिपोर्ट किया गया कि नेताजी की इस दुर्घटना में मृत्यु हो गई। नेताजी के साहसिक कार्य आज भी युवाओं को देश के लिए कुछ कर गुजरने की सीख देते हैं।

    नेता जी बहुत ही साहसी व्यक्ति थे। वह अहिंसक साधनों व आंदोलनों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति में विश्वास नहीं करते थे। वह गरम दल के नेता थे। वह हिंसक साधनों व आंदोलनों के द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाने में विश्वास रखते थे।

    उन्होंने अपने 48 वर्ष की आयु में बहुत सारे कार्य किये। बहुत सारे युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया सुभाष चंद्र बोस भारत के महान देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे। सुभाष चंद्र बोस ने अपने छोटे से जीवन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ कर अपने आप को महान नेताओं की सूची में ला दिया, क्योंकि सुभाष चंद्र बोस द्वारा इतनी कम उम्र में जो आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ किए गए थे।

    सुभाष चंद्र बोस का देश के स्वतंत्रता में मुख्य योगदान रहा। सुभाष चंद्र बोस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया और अपना पूरा जीवन स्वतंत्रता के पीछे बलिदान कर दिया। मात्र 48 वर्ष की उम्र में सुभाष चंद्र बोस जिनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। लेकिन इस 48 वर्ष की उम्र में भी इनका योगदान देश के लिए खूब रहा था।

    निष्कर्ष

    सुभाष चंद्र बोस को महान नेता माना जाता है। क्योंकि इन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना मुख्य योगदान दिया स्वतंत्रता की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस का योगदान प्रशंसनीय रहा।

    सुभाष चंद्र बोस ने 48 साल की उम्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई प्रकार के आंदोलन और लड़ाइयां लड़ी। सुभाष चंद्र बोस को आज भी लोग स्वतंत्रता सेनानी और महान देशभक्त के रूप में मानते हैं। स्वतंत्रता के लिए सुभाष चंद्र बोस ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया था।

    अंतिम शब्द

    सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने देश में स्वतंत्रता की क्रांति को बढ़ावा दिया था और लोगों में जागरूकता फैलाई थी। लोगों में स्वतंत्रता के लिए भावना को उजागर किया था। आज का यह आर्टिकल जिसमें हमने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध (essay on subhash chandra bose in hindi) के बारे में जानकारी आप तक पहुंचाई है।

    हमें उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई। यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

     

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