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Top 12 Stories In Hindi With Moral For Class 7 रोचक कहानियाँ हिंदी में

    Top 12 Stories In Hindi With Moral For Class 7 हिंदी में

    Stories In Hindi With Moral For Class 7:- Here I’m sharing the top 12 Stories In Hindi With Moral For Class 7 which are very valuable and teach your kids life lessons, which help your children to understand the people & world that’s why I’m sharing with you.

    यहां मैं बच्चों के लिए हिंदी में नैतिक के लिए शीर्ष कहानी साझा कर रहा हूं जो बहुत मूल्यवान हैं और अपने बच्चों को जीवन के सबक सिखाते हैं, जो आपके बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने में मदद करते हैं इसलिए मैं आपके साथ हिंदी में नैतिक के लिए कहानी साझा कर रहा हूं।

    1. दांत और गोरंभ Moral Stories in Hindi for Students

    वर्धमान नामक नगर में दन्तिल नाम का एक आभूषणों का व्यापारी रहता था। दन्तिल ने अपनी व्यवहार कुशलता से न केवल नगरवासियों का मन जीत लिया या, अपितु वहां के राजा को भी प्रसन्न कर रखा था।

    नगर में उसके समान कोई चतर व्यक्ति नहीं था। वैसे तो कहावत यही है कि जो व्यक्ति राजा का हित करता है, वह समाज की दृष्टि में हीन होता है, और जो समाज का हितैषी होता है,

    राजा उससे द्वेष करता है परंतु दन्तिल इसका अपवाद था। इस प्रकार समय बीत रहा था कि दन्तिल की कन्या का विवाह निश्चित हो गया। उस अवसर पर सेठ ने सारी प्रजा और राजकर्मचारियों को आमंत्रित कर उनका आदर-सत्कार किया।

    उस विवाह में राजा और रानी के साथ-साथ राजभवन के कर्मचारी भी आए थे। उनमें राजभवन में झाडू देने वाला गोरंभ भी था। उस अवसर पर गोरंभ किसी ऐसे उच्च आसन पर बैठ गया जो उसके लिए नहीं था।

    नगर सेठ ने यह देखा तो उसे अपमानित कर वहां से निकाल दिया गोरंभ के लिए यह अपमान असह्य हो गया। उसने मन-ही-मन निश्चय कर लिया कि वह सेठ से इस अपमान का बदला अवश्य चुकाएगा और उसे राजा की नजरों में गिराकर ही दम लेगा।

    एक दिन प्रभात के समय राजा के शयनकक्ष में झाडू लगाते समय गोरंभ यूं बड़बड़ाने लगा, जैसे वह स्वयं से ही बातें कर रहा हो-‘देखो दन्तिल कितना भ्रष्ट हो गया है कि अब महारानी तक का आलिंगन करने लगा है राजा ने जब यह सुना तो हड़बड़ाकर उठ बैठा।

    उसने गोरंभ से पूछा-‘गोरंभ! क्या सचमुच दन्तिल ने महारानी का आलिंगन किया था ?’ गोरंभ बोला-‘महाराज। मैं रात-भर जुआ खेलता रहा था, इस कारण अब मुझे बड़ी नींद आ रही है।

    उस नींद के झोंके में मैं क्या कुछ बड़बड़ा गया,   मुझे स्वयं इसकी याद नहीं है।’ राजा विचार करने लगा कि गोरंभ की तरह दन्तिल भी महल में निर्बाध रूप से आता-जाता रहता है।

    हो सकता है गोरंभ ने कभी महारानी को दन्तिल के साथ आलिंगनबद्ध होते देख लिया हो,   अन्यथा उसके मुंह से ऐसी बात क्यों निकलती! वह सोचने लगा कि स्त्रियों के विषय में तो संदेह की कोई बात ही नहीं।

    वे एक ही समय में एक व्यक्ति से बातचीत करती है तो उसी समय उनके मन में दूसरा व्यक्ति समाया हुआ होता है।   स्त्रियों के हृदय का भाव जानना बहुत कठिन है।

    इस प्रकार राजा के मन में स्त्रियों के विषय में अनेक प्रकार के भाव उठने लगे। जिसका परिणाम यह निकला कि राजा ने दन्तिल का महल में आना-जाना निषिद्ध कर दिया।

    राजा के इस व्यवहार से दन्तिल को बड़ी चिन्ता हुई। वह विचार करने लगा तो उसने पाया कि कौए में पवित्रता, जुआरी में सत्यता, सर्प में क्षमा, स्त्रियों में काम-शांति, कातर में धैर्य,   नशेबाज में विवेक और राजा में मैत्री भाव किसने देखा या सुना है।

    ‘मैंने इसके अथवा इसके किसी प्रिय का कभी कोई अनिष्ट तो किया नहीं, फिर भी यह राजा मुझ पर अप्रसन्न क्यों हुआ ?”   दन्तिल राजा को प्रसन्न करने के उद्देश्य से एक बार राजभवन की ओर गया तो द्वारपाल ने उसे रोक दिया।

    गोरंभ ने जब यह देखा तो उसने कहा-‘भाई। ध्यान रखना, यह सेठ तो राजा का विशेष कृपापात्र है।   कहीं इसे नाराज करके तुम भी मेरी तरह ही धक्के मारकर न निकाल दिए जाओ।’

    दन्तिल ने सुना तो उसका माथा ठनका। उसे विश्वास हो गया कि राजा को गोरंभ ने ही भड़काया है।   वह सोचने लगा कि राजा की सेवा में नियुक्त व्यक्ति चाहे कितना ही कुलहीन, मूर्ख और राजा द्वारा सम्मानित क्यों न हो, लोक में उसका आदर होता है।

    उसे गोरंभ का अपने द्वारा किया गया अपमान याद हो आया। दन्तिल राजभवन के द्वार से वापस आ गया।   रात को उसने गोरंभ को आदरपूर्वक अपने घर बुलवाया और उसका खूब स्वागत-सत्कार किया।

    विदा करते समय उससे अपने पिछले व्यवहार की क्षमा मांगी तो गोरंभ बोला-‘आप चिन्ता न कीजिए सेठ।   राजा किस प्रकार आपको अनुगृहीत करता है, यह आप अब मेरी बुद्धि के चमत्कार से देखेंगे।’

    किसी ने ठीक ही कहा है कि तराजू की डंडी की भांति ही क्रूर व्यक्तियों का स्वभाव होता है।   वे तनिक-से भार से कभी ऊपर हो जाते हैं तो कभी नीचे।

    इस प्रकार दूसरे दिन जब गोरंभ प्रातःकाल के समय राजा के शयनकक्ष में सफाई करने गया तो पहले की भांति ही बड़बड़ाने लगा—’हमारे महाराज भी बड़े विचित्र हैं,   मलत्याग करते वक्त भी ककड़ी खाते रहते हैं।’

    राजा ने सुना तो वह गुस्से से बोला- ‘गोरी ! यह क्या बकवास कर रहा है ? तूने कभी मुझको ऐसा करते देखा था ?’ गोरंभ ने फिर उसी प्रकार कह दिया कि वह रात-भर जुआ खेलता,   जागता रहा है इसलिए नींद में वह क्या कुछ बड़बड़ा गया, उसे कुछ मालूम नहीं।

    तब राजा ने विचार किया कि उसने कभी ऐसा कृत्य नहीं किया फिर भी इस मूर्ख ने इस प्रकार की बात मुख से निकाली,   तब निश्चय ही दन्तिल के बारे में भी इसने इसी प्रकार कहा होगा।

    यह विचार आते ही उसको पश्चात्ताप होने लगा। उसने दन्तिल को सम्मान पूर्वक राजभवन में बुलवाया और उसका खूब स्वागत-सत्कार किया।   दन्तिल का राजभवन में पुनः आवागमन होने लगा।

    यह कथा सुनाकर दमनक ने संजीवक से कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि गर्व के कारण जो छोटे-बड़े सभी राजसेवकों का सत्कार नहीं करता उसे दन्तिल की तरह पदच्युत होकर अपमान सहन करना पड़ता है।

    संजीवक बोला—’मित्र ! तुम ठीक कहते हो। मैं तुम्हारे कथनानुसार ही कार्य करूंगा।’ तदन्तर दमनक संजीवक को लेकर पिंगलक के समक्ष उपस्थित हुआ और उसे प्रणाम करके कहने लगा—’महाराज ! संजीवक आपकी सेवा में उपस्थित है।

    अब आप जो उचित समझें, कीजिए।’ संजीवक ने भी पिंगलक को प्रणाम किया और उसके सम्मुख खड़ा हो गया। पिंगलक ने उसे अपने समीप बैठाते हुए कहा-‘कहिए मित्र ! आप कुशल से तो हैं ? आप कहां से पधारे हैं ?’

    पिंगलक से आश्वासन पाकर संजीवक ने अपनी आद्योपान्त कया उसको सुना दी। पिंगलक ने उसकी कथा सुनकर उसे आश्वस्त कर दिया। फिर अपना राजकाज दमनक और करटक के जिम्मे सौंपकर स्वयं संजीवक के साथ रहकर मौजमस्ती करने लगा।

    इसका परिणाम यह निकला कि सिंह शिकार करने में लापरवाही बरतने लगा। वह अपनी आवश्यकता-भर के लिए शिकार करता। उस पर आश्रित मांसभोजी प्राणी भूखे रहने लगे जो उनके लिए एक चिन्ता का विषय बन गया।

    कहते हैं कि जो राजा अपने सेवकों को वेतन देने में कभी देर नहीं करता, उसके सेवक डांटने-फटकारने पर भी कभी उसको छोड़कर नहीं जाते। किंतु पिंगलक तो इसके विपरीत आचरण कर रहा था।

    अतः भूख से पीड़ित दमनक और करटक ने परस्पर विचार-विमर्श किया। वे सोचने लगे कि जब भगवान शंकर के गले में लिपटा सर्प गणेशजी के वाहन चूहे को खाना चाहता है और जब सर्प मारकर खाने वाले मोर को पार्वती का वाहन सिंह खाने की इच्छा करता है तो फिर वे ही यह अहिंसा का नाटक क्यों कर रहे हैं ?

    दमनक कहने लगा—’भाई करटक ! राजा की दृष्टि में हम तो कुछ रहे ही नहीं। उसके लिए अब बस संजीवक ही है। भोजन न मिलने के कारण शेष सेवक तो राजा का साथ छोड़ ही चुके हैं। मैं समझता हूं, हमें राजा को समझाना चाहिए। इस समय यही हमारा कर्तव्य है।’

     

    1. मित्र सम्प्राप्ति Best Moral Stories in Hindi for Kids

    दक्षिण दिशा में महिलारोप्य नामक एक नगर था। उसके निकट ही एक ऊंचा और विशाल बरगद का पेड़ था। अनेक पक्षी उसके फल खाते थे। उसके कोटर (खोखल) में अनेक छोटे-छोटे जीव-जन्तु रहते थे। यात्री उसकी छाया में विश्राम करते थे। उसी वृक्ष पर एक कौा रहता था।

    उसका नाम लघुपतनक या एक बार भोजन की तलाश में छह नगर और उड़कर जा रहा था । सस्ते में उसने एक ऐसा ्यकत देखा जो यमदूत की तरह राबणा या ।

    वह हाय मे जाल लिए उसी बरगद के वृक्ष की ओर जा रहा या कौए ने सोचा कि यह वधिक निश्चय ही जाल फेंककर और चावलों के दाने बिखेरकर उस वृक्ष के पक्षियों का शिकार करेगा।

    यह सोचकर वह कौआ अपने वृक्ष पर वापस लौट आया। उसने सब पक्षियों को शिकारी, जाल और चावल के विषय में सावधान कर दिया। यधिक उस वृक्ष के निकट पहुंचा। उसने अपना जाल विणया और चावल के दाने विल दिए।

    पक्षियों ने लघुपतनक की बात याद रखी, थे उस जाल में नहीं फंसे । तभी कबूतरों का एक विशाल झुंड यहां आया। इस झुंड का स्वामी था चित्रग्रीव ।

    लघुपतनक ने उसे भी समझाया,   किंतु कौए के समझाने पर भी वह और उसका परिवार चावलों के लालच में जाल में फंस गया। इतने सारे कबूतरों को अपने जाल में फंसा देखकर शिकारी हर्षित हो गया।

    अपना इंडा लिए वह उन्हें मारने के लिए आगे लपका। मृत्यु को अपने निकट आते देखकर भी चित्रग्रीव ने अपना धैर्य न खोया। उसने अपने साथी कबूतरों से कहा-‘हमें भयभीत नहीं होना चाहिए।

    हम सबको एक साय उड़कर जाल को ऊपर ले जाना चाहिए, तभी हमारी मुक्ति हो सकती है।   अपने राजा का आदेश सुनते ही सभी कबूतर जाल को लेकर आकाश में उड़ गए।

    शिकारी यह सोचता हुआ उनके पीछे भागा कि अभी तो इन पक्षियों में आपस में सहयोग है, जब ये आपस में लड़ेंगे, तभी इनका पतन होगा।   लघुपतनक उत्सुकता से यह सब देख रहा था।

    जाल समेत कबूतर उड़ते चले गए। शिकारी निराश होकर सोचने लगा कि पक्षी तो मिले नहीं, जीविका का साधन जाल भी चाय से जाता रहा।   कुछ आगे जाने पर चित्रग्रीव ने जब यह देखा कि शिकारी बहुत पीछे छूट गया है,

    तो उसने अपने साथियों से कहा-‘हम लोगों का नगर की पूर्वोत्तर दिशा की ओर बढ़ना है। वहां जंगल के बीच मेरा एक मित्र चूहा रहता है। उसका नाम हिरण्यक है।

    वह इस जाल को काटकर हम मुक्त कर देगा। वे सब हिरण्यक के पास पहुंचे।   बिल के पास पहुंचकर चित्रग्रीव ने हिरण्यक को पुकारा-मित्र हिरण्यक ! शीघ्र आओ, मैं बहुत संकट में हूं।’

    अपने मित्र की आवाज पहचानकर हिरण्यक बिना किसी भय के अपने बिल से बाहर निकल आया।   जाल में फंसे अपने मित्र पर निगाह पड़ते ही उसने चिंतित स्वर में पूछा-‘यह सब कैसे हो गया मित्र?” ‘बस कुछ न पूछो।’

    चित्रग्रीव बोला-‘जीभ के स्वाद के लालच में यह सहन करना पड़ा। अब तुम शीघ्रता से हमारे बंधन काट दो।’   हिरण्यक कहने लगा—’वैसे तो पक्षी सौ-सवा सौ योजन से भी मांस को देख लिया करते हैं,

    किंतु भाग्य के प्रतिकूल होने के कारण समीप ही बिछाए जाल को भी आप लोग देख नहीं पाए।’   यह कहकर हिरण्यक चित्रग्रीव के बंधन काटने के लिए उसके समीप पहुंचा तो चित्रग्रीव बोला-‘नहीं मित्र ! पहले मेरे अनुचरों के बंधन काट दो।

    उसके बाद मेरे बंधन काट देना।’ हिरण्यक को कुछ रोष आ गया। उसने कहा—’नहीं, यह ठीक नहीं। स्वामी के बाद ही सेवकों का स्थान आता है।’

    चित्रग्रीव बोला-‘नहीं मित्र ! ऐसा सोचना उचित नहीं है।   ये सभी मेरे आश्रित हैं। ये सब अपने-अपने परिवारों को छोड़कर मेरे साथ आए हैं। मेरा कर्तव्य यह है कि मैं पहले इनको मुक्त कराऊं।

    जो राजा अपने अनुचरों का सम्मान करता है, उसके अनुचर विपत्ति पड़ने पर भी उसका साथ नहीं छोड़ते और फिर ईश्वर न करे,   मेरे बंधन काटते समय तुम्हारा दांत टूट गया या तब तक शिकारी ही यहां आ पहुंचा, तब इनके बंधे रह जाने से तो मुझे नरक में भी स्थान नहीं मिलेगा।’

    चित्रग्रीव की बात सुनकर हिरण्यक बोला—’मित्र ! राजधर्म तो मैं भी जानता हूं।   मैं तो आपकी परीक्षा ले रहा था। अब मैं पहले आपके साथियों के ही बंधन करेंगे। अपने इस आचरण से आपका यश हमेशा बढ़ता ही रहेगा।’

    कुछ ही प्रयास के बाद हिरण्यक ने सभी कबूतरों के बंधन काट डाले,   फिर वह चित्रग्रीव से बोला-‘अब तुम स्वतंत्र हो मित्र । अपने साथियों के साथ जहां जाना चाहो, जा सकते हो।

    जब भी इस प्रकार की कोई मुसीबत तुम्हारे ऊपर आए, मेरा स्मरण कर लेना।’   चित्रग्रीव ने अपने मित्र को धन्यवाद दिया और अपने झुंड सहित अपने गंतव्य की ओर उड़ गया।

    हिरण्यक भी फिर से अपने बिल में घुस गया। लघुपतनक नाम का वह कौआ यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो उठा।   उसने साचा-‘यह चूहा तो बहुत बुद्धिमान है।

    इसने सौ द्वार वाला अपना बिल भी किलेनुमा बनाया हुआ है, ताकि शत्रु यदि एक ओर से हमला करे तो यह किसी अन्य द्वार से निकलकर सुरक्षित स्थान पर पलायन कर सके।

    यद्यपि मेरा स्वभाव किसी पर सहसा हा विश्वास कर लेने का नहीं, तथापि मैं इस चूहे को अपना मित्र अवश्य बनाऊंगा।’ यह सोचकर वह वृक्ष से उतरा और हिरण्यक के बिल के पास पहुंचा।

    उसने अपनी वाणी में मधुरता घोलते हुए आवाज लगाई-मित्र हिरण्यक, बाहर आ जाओ।। हिरण्यक सोचने लगा कि क्या किसी कबूतर का बंधन रह गया है ? उसने बिल के अंदर से ही पूछा-‘आप कौन हैं ? ‘मैं लघुपतनक नाम का कौआ हूं।’

    हिरण्यक बिल के अंदर से बोला-‘मैं तुमसे नहीं मिलना चाहता। तुम यहां से चले जाओ।’ लघुपतनक बोला-‘हिरण्यक ! मुझसे डरो मत मित्र। मैंने तुमको चित्रमीव और उसके साथियों को बंधनमुक्त करते देखा है।

    इसी प्रकार तुम मेरी भी सहायता कर सकते हो। मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूं भाई।’ ‘पर तुम तो भक्षक हो और मैं तुम्हारा भोजन हूं। हमारी-तुम्हारी मित्रता संभव नहीं है।’ इस बार अपने विल में से थोड़ा-सा मुंह निकालकर हिरण्यक ने कहा।

    कौआ बोला-‘देखो, अगर तुम मेरे साय मित्रता नहीं करोगे तो मैं तम्हारे बिल के द्वार पर ही अपनी जान दे दूंगा।’   ‘लेकिन तुम तो मेरे शत्रु हो।’ हिरण्यक बोला-‘शत्रु के साय कोई कैसे मित्रता कर सकता है ?

    इस पर कौआ बोला-‘पर अभी तो मुझे आपका दर्शन भी नहीं मिला, अभी वैर कहां से आ गया ! यह सुनकर हिरण्यक चूहा बोला-‘वैर दो प्रकार का होता है कृत्रिम और स्वाभाविक। तुम तो मेरे स्वाभाविक वैरियों में से हो।’

    ‘कृपया दोनों प्रकार के वैरों के लक्षण तो बताइए ? हिरण्यक ने बताया-‘जो वैर किसी कारण से उत्पन्न होता है, वह कृत्रिम कहलाता है। वह समाप्त होने योग्य उपकार से समाप्त हो जाता है।

    किंतु जो स्वाभाविक वैर है, वह तो कभी भी समाप्त नहीं होता।   जिस प्रकार नेवले और सर्प का, घास चरने वाले व मांसाहारी जीवों का, जल और अग्नि का, देव और दैत्यों का, कुत्तों और बिल्लियों का, धनिकों और दरिद्रों का, पली और सहपलियों का, सिंहों और हाथियों का, बाघ एवं हिरणों का, सज्जनों एवं दुर्जनों का। इनका वैर स्वाभाविक वैर कहलाता है।’

    इस पर लघुपतनक बोला-‘मैं इसे ठीक नहीं मानता। किसी के साय मित्रता और शत्रुता तो कारण से ही की जाती है, अतः किसी से अकारण शत्रुता नहीं करनी चाहिए।

    यदि संभव हो तो इस संसार में सभी के साथ मित्रता की जानी चाहिए।   अतः मेरे साथ मित्रता करने के लिए आप एक बार बाहर निकलकर मर साय भेंट तो कर लीजिए।’

    ‘इसकी आवश्यकता ही क्या है ? नीतिशास्त्र में कहा है कि एक बार भी मित्रता केट जाने के बाद जो व्यक्ति पुनः संधि के द्वारा उसे जोड़ने की इच्छा रखता है, वह गर्भ धारण करने वाली खच्चरी की भांति स्वयं ही विनष्ट हो जाता है।

    किसी को यह व्याकरण शास्त्र के प्रणेता पाणिनि को एक सिंह ने मार डाला था। मीमांसा शास्त्र के प्रवर्तक जैमिनि मुनि को सहसा एक हाथी ने कुचल डाला था।

    छंद-शास्त्र के प्रवर्तक आचार्य पिंगल को समुद्र के किनारे किसी ग्राह ने निगल लिया था। अज्ञानी और क्रूर को किसी के गुणों से कोई मतलब नहीं होता।’

    ‘यह तो ठीक है, परंतु आपस में एक-दूसरे के उपकार से ही मनुष्यों में संधि होती है। मृगों और पक्षियों की मित्रता भी किसी कारण से हो जाती है। मूर्खो की मित्रता भय और लोभ के कारण होती है,   किंतु सज्जनों की मित्रता तो दर्शन मात्र से ही हो जाती है।

    अतः मेरा विश्वास करो मित्र ! मैं सज्जन हूं और चाहो तो शपय आदि से तुम्हें विश्वास दिला सकता हूं।’ इस पर हिरण्यक बोला-‘आपकी शपय पर मुझे विश्वास नहीं।

    कहा जाता है कि शपथ खाकर मित्रता करने वाले शत्रु पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। देवराज इन्द्र ने शपथ लेने के बाद ही वृत्रासुर का वध किया था विश्वास के कारण उत्पन्न होने वाला भय मनुष्य के मूल को भी नष्ट कर देता है।’

    हिरण्यक की दात सुनकर लघुपतनक को विश्वास हो गया कि यह चूहा नीति शास्त्र को बहुत गहरी जानकारी रखता है। अतः वह बोला-‘मित्र ! विद्वानों ने कहा है कि साय-साय सात कदम चलने या आपस में सात वाक्य बोलने पर भी मित्रता हो जाती है, फिर हम तो इतनी देर से वार्तालाप कर रहे हैं, अतः मित्र तो हम बन ही चुके ।

    रही बात तुम्हारे भय की,   तो मैं पहले ही विश्वास दिला चुका हूं कि मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं। तुम अगर अपने दुर्ग से बाहर नहीं आना चाहते तो न सही, भीतर से ही मेरे साथ वार्तालाप अथवा गोष्ठी कर लिया करना।

    हिरण्यक सोचने लगा कि यह लघुपतनक कौआ बहुत ही भाषणपटु और चतुर है। इसके साथ मैत्री करने में कोई नुकसान नहीं होगा।   उसने कहा-‘यदि तुम मझसे मैत्री करना ही चाहते हो तो मेरी एक बात तुम्हें माननी होगी।

    वह यह कि कभी मेरे दुर्ग के भीतर प्रविष्ट होने की चेय न करना। नहीं सोचना चाहिए कि मैं भगवान हूं, अतः कोई मेरा अनिष्ट नहीं कर सकता।   लघुपतनक ने उसकी यह बात सहर्ष मान ली। उस दिन से दोनों में मैत्री हो गई।

    कभी लघुपतनक अपने मित्र हिरण्यक के लिए कोई भोज्य पदार्थ ले आता तो कभी हिरण्यक उसे अपने द्वारा इकट्ठा किया हुआ भोज्य पदार्थ खिलाता।

    हिरण्यक अब निःशंक होकर बिल के बाहर बैठकर अपने मित्र से वार्तालाप करने लगा। एक दिन कौए ने आंखों में आंसू भरते हुए अपने मित्र चूहे से कहा-‘मित्र! मुझे इस देश से विरक्ति हो गई है अब मैं कहीं अन्यत्र जाना चाहता हूं।’

    चूहे ने कारण पूछा तो कौआ बोला-‘बात यह है कि वर्षा न होने के कारण इस देश में अकाल पड़ गया है अकाल के कारण जब लोग स्वयं ही भूखे रहते हैं तो हमें भोजन कहां से मिले।

    लोगों की भूख इतनी बढ़ गई है कि अब पर-घर में पक्षियों को फंसाने के लिए लोगों ने जाल फैला दिए हैं वह तो मेरी आयु के कुछ दिन शेष रहे होंगे तभी मैं उनसे बचकर निकल आया हूं, अन्यया आज तो मेरा पकड़ा जाना भी निश्चित था।

    बस मेरी विरक्ति का यही कारण है अपने घर से तो मैं विदेश के लिए निकलकर आ गया हूँ|”   ‘कहां जाना चाहते हो?’ ‘दक्षिण देश के एक दुर्गम वन में एक सरोवर है। वहां मेरा मित्र मंथरक नाम का कछुआ रहता है यह अपने परिवार से मुझे मछली आदि ला दिया करेगा। इस तरह से मेरे दुर्दिन अच्छी तरह से कट जाएंगे।’

    ‘तथ तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा।’ हिरण्यक बोला—’मुझे भी यहां बड़ा कए है।” ‘तुम्हें क्या कर है मित्र ?’ ‘यह एक लम्बी कहानी है। वहीं पहुंचने पर सुनाऊंगा।’

    ‘किंतु मैं तो उड़ने वाला जीव हूं। तुम मेरे साथ किस प्रकार चल पाओगे ?   ‘तुम मुझे अपना मित्र समझते हो तो मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर ले चलो। अन्यथा मेरी कोई दूसरी गति नहीं है।’

    कौए ने प्रसन्न होकर कहा-‘वाह ! यह तो मेरा सौभाग्य है। वहां रहकर आपके साथ सुख के दिन व्यतीत होंगे।   बस तुम मेरी पीठ पर आराम से बैठ जाना।

    मैं तुम्हें आराम से वहां तक पहुंचा दूंगा।’ ‘पर क्या तुम्हें उड़ने की सभी नदियों का ज्ञान है? कहीं ऐसा न हो कि रास्ते में ही मुझे गिरा दो और भूमि पर ऊंचाई से गिरने के कारण मेरा प्राणान्त हो जाए।

    इस पर कौआ बोला-‘तुम्हारी आशंका निराधार है पुत्र। सुनो, उड़ने की गतिया आठ प्रकार की होती हैं-सम्पात, विपात, महापात, अनुपात, वक्र गति, तिर्यक गति, ऊर्ध्वगति एवं लघुगति। और मुझे इन सभी गतियों का अच्छी तरह से ज्ञान है।’

    कौए की बात सुन हिरण्यक की चिंता दूर हो गई। वह खुशी-खुशी कौए की पीठ पर चढ़ गया। कौआ धीरे-धीरे उड़कर उसे सरोवर के पास ले गया।

    मंथरक ने उसको इस प्रकार आते देखकर सोचा-‘यह तो कोई असाधारण प्रकार का कौआ लगता है।’ वह डर गया और सरोवर में जाकर छिप गया।

    लघुपतनक ने हिरण्यक को सरोवर के तट पर स्थित एक वृक्ष के कोटर में बैठा दिया और स्वयं उसी की शाखा पर बैठकर अपने मित्र मंथरक को पुकारना आरंभ कर दिया।

    अपने मित्र की आवाज पहचान कर कछुआ जल से बाहर आया।   दोनों मित्र एक-दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। हिरण्यक भी कोटर से निकलकर उनके समीप आ बैठा।

    उसे देखकर मयंक ने पूछा-‘मित्र ! यह कौन है ? तुम्हारा भक्ष्य होने पर तुम इसे अपनी पीठ पर बैठाकर लाए हो,   इसका क्या रहस्य है ?’ कौए ने बताया-‘मित्र मेरा ! यह मेरा परम मित्र है।

    यूं समझ लो, हम दोनों दो तन एक प्राण हैं। हिरण्यक नाम है इसका। इसमें असंख्य गुण हैं। किसी कारण से अपने स्थान से हमें विरक्ति हो गई है, इसलिए अब आपके पास चले आए हैं।’

    1. गधे का भाग्य (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    काफी समय पहले की बात है। एक माली के पास एक गधा था। माली गधे पर फूल लादकर शहर ले जाता था। एक दिन गधे ने सोचा, ‘यह माली मुझसे बहुत मेहनत कराता है।

    क्यों न मैं विधाता के पास जाकर अपने लिए किसी नए मालिक की मांग करूँ!’ यह सोचकर वह विधाता के पास पहुँच गया और उनसे बोला, “माली सारा दिन मुझसे बहुत मेहनत कराता है।

    मैं उसके साथ खुश नहीं हूँ। कृपा करके आप मुझे कोई और मालिक दे दीजिए।’ विधाता ने उसे एक कुम्हार के पास भेज दिया। यहाँ उसकी हालत और भी खराब थी।

    कुम्हार सारा दिन उस पर ढेर सारे बर्तन रखकर बेचने जाता। थोड़े दिनों बाद गधा फिर विधाता के पास गया और बोला, “मुझे कोई और मालिक दे दीजिए।”

    विधाता को गधे पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसे एक कसाई के हाथ बिकवा दिया। उसे देखते ही कसाई बोला, “इस गधे की खाल से तो अच्छा चमड़ा बनेगा।” यह सुनकर गधा अपनी मूर्खता पर आँसू बहाने लगा।

    शिक्षा: संतोषी व्यक्ति कभी सुखी नहीं रहता।

    1. कुएँ के मेंढक (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    एक बार भीषण गर्मी पड़ी। महीनों तक वर्षा नहीं हुई। बारिश न होने से सभी नदी-नाले, तालाब आदि सूख गए। पानी में रहने वाले जीव-जन्तु पानी की तलाश में जहाँ-तहाँ मारे-मारे भटकने लगे।

    पानी की खोज में बेहाल दो मेंढक एक कुएँ के पास आए। आगे चलने वाले मेंढक ने दूसरे मेंढक से हैरानी से पूछा, “देखो! यह कैसा गड्ढा है?” दूसरे मेंढक ने पास आकर देखा तो खुशी से बोला,

    “अरे ! यह तो कुआँ है। देखो, इसके अंदर कितना पानी है। चलो, इसके अंदर चलते हैं।” दूसरा मेंढक थोड़ा समझदार था। वह बोला, “मित्र! पानी के लालच में जल्दबाजी न करो।

    जरा सोचो कि हम लोग कुएँ में चले तो जाएंगे पर बाहर कैसे निकलेंगे। हमें हमेशा कुएँ में ही रहना पड़ेगा।” पहले मेंढक को दूसरे मेंढक की बात सही लगी। इसलिए उसने कुएँ में कूदने का विचार छोड़ दिया और दोनों वहाँ से चल पड़े।

    शिक्षा : कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार करना चाहिए।

    1. बच्चा (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    एक चरवाहे के पास काफी सारी बकरियाँ थीं। उसने बकरियों की रखवाली के लिए कुत्ते पाले हुए थे। उनमें एक नन्हा बकरी का बच्चा भी था। उसकी माँ उसे हमेशा अपने पास रखती।

    एक दिन जब चरवाहा उन्हें चराने के लिए जंगलले गया तो नन्हा बकरी का बच्चा अपने झुंड से अलग होने की कोशिश करने लगा। उसकी माँ ने उसे समझाया, ” अपने झुंड के साथ रहो। वरना भेड़िए तुम्हें अकेले पाकर खा जाएंगे।

    कहीं मत जाना, मेरे साथ ही रहना।” । बच्चे ने सिर हिला दिया, लेकिन वह सबसे नजर बचाता हुआ दूर निकल गया। एक भेड़िया उस पर नजर गड़ाए बैठा था। भेड़िया तुरंत बकरी के बच्चे को खाने के लिए आगे बढ़ा।

    बकरी का बच्चा डर से कांपने लगा। वह पछता रहा था कि उसने अपनी माँ का कहना क्यों नहीं माना। बचने का उपाय सोचकर वह बोला,

    “भेड़िए भाई! मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा गाते हो। मेरी इच्छा है कि मरने से पहले तुम्हारा गाना सुनूँ।” भेड़िया जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

    उसकी आवाज सुनकर कुत्ते वहाँ आ गए और वह भाग खड़ा हुआ।बकरी के बच्चे की जान बच गई और उसने उस दिन से सदा अपनी माँ की बात मानने की शपथ ली।

    शिक्षा: हमें हमेशा अपने से बड़ों की बात माननी चाहिए।

    1. मालिक और नौकर (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    एक बार एक हिरन शिकारियों से बचते-बचाते घोड़ों के अस्तबल में जाकर छिप गया। अस्तबल के नौकर ने उसे नहीं देखा। जब शिकारियों ने उससे हिरन के बारे में पूछा तो नौकर ने मना कर दिया।

    शिकारी चले गए। नौकर ने अस्तबल में जाकर देखा तो उसे हिरन दिखाई नहीं दिया। वह घास के पीछे छिपा था। कुछ समय बाद मालिक आया। उसने नौकर से पूछा, “यहाँ पर सब ठीक है न?” नौकर ने हामी भर दी।

    तब मालिक स्वयं अस्तबल में गया और अच्छी तरह से अस्तबल का निरीक्षण करने लगा। उसे देखकर हिरन डर के मारे काँपने लगा, जिससे घास हिलने लगी।

    मालिक ने उसे देख लिया और नौकर को बुलाकर पूछा, “क्या यहाँ कोई आया था?” “हाँ मालिक ! एक हिरन को ढूँढते हुए शिकारी आए थे।” नौकर ने बताया। “वहाँ देखो।” मालिक ने इशारा किया।

    अस्तबल में घास के पीछे छिपे हिरन को देखकर नौकर हैरान रह गया कि वह कब आया। हिरन ने आव देखा न ताव और वहाँ से तेजी से भाग निकला।

    शिक्षा: हमें हर काम पूरी सावधानी व लगन के साथ करना चाहिए।

    Stories in Hindi with Moral for Class 7 Video:-

    1. बच्चे की धमकी (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    एक किसान ने अपने फार्म हाउस में बकरियाँ, मुर्गियाँ, गाएँ आदि पाली हुई थीं। सभी के लिए वहाँ पर अलग-अलग जगह थी। एक दिन किसान गलती से एक बकरी के बच्चे को बाड़े में बंद करना भूल गया।

    किसान उस दिन घर पर नहीं था। किसान की अनुपस्थिति में बकरी का बच्चा आजादी का पूरा मजा लेने लगा। वह फार्म हाउस की छत पर जा चढ़ा और खूब धमा-चौकड़ी मचाने लगा।

    तभी उसने देखा कि एक भेड़िया उधर ही चला आ रहा है। वह चिल्लाकर बोला, “दुष्ट भेड़िए! तुम्हारी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई?

    तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम यहाँ से चले जाओ। हमारे फार्म हाउस की तरफ फिर कभी नजर उठाकर भी मत देखना।” यह सुनकर भेड़िया बोला,

    “वाह! अभी तो बड़े बहादुर बन रहे हो। यह बहादुरी तुम छत पर खड़े होकर दिखा रहे हो? हिम्मत है तो सामने आओ।” बकरी का बच्चा चुप हो गया।

    शिक्षा : अनुकूल परिस्थितियां निर्बल में भी ताकत भर देते हैं।

    1. किसान और उसके चार बेटे (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    एक किसान था। उसके चार बेटे थे। वे चारों हर समय आपस में लड़ते रहते थे। किसान उनके इस व्यवहार से बड़ा दुखी था। एक दिन उसने उन्हें समझाने का एक उपाय सोचा।

    उसने चारों को अपने कमरे में बुलाया और उन्हें एक-एक लकड़ी की छड़ तोड़ने को दी। चारों ने झट से तोड़ दी। फिर किसान ने उन्हें एक-एक कर लकड़ी का गट्ठर तोड़ने के लिए दिया।

    चारों ने उसे तोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन नहीं तोड़ पाए। तब किसान उन्हें समझाते हुए बोला, “देखा तुमने? तुमने एक-एक लकड़ी कितनी आसानी से तोड़ दी, जबकि लकड़ी के गट्ठर को हिला भी नहीं पाए।

    इसी तरह यदि तुम चारों एक साथ रहोगे तो कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। लेकिन यदि तुम आपस में ही लड़ते रहोगे तो कोई भी बाहर वाला तुम्हें आसानी से हरा सकता है।” किसान के बेटे समझ गए कि एकता में ही शक्ति है।

    शिक्षा: हमें मिल-जुलकर रहना चाहिए।

    1. दुष्टों का स्वभाव (Stories In Hindi With Moral For Class 7)

    सर्दियों की बात है। खूब कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। ठंड से बचने के लिए जीव-जंतु सूरज के छिपते ही अपने-अपने घरों में आश्रय ले लेते थे। एक दिन एक लकड़हारा शाम को अपने घर लौट रहा था।

    रास्ते में उसे एक साँप बेहोशी की हालत में मिला। वह ठंड के कारण बेहोश हो गया था। लकड़हारे को साँप पर दया आ गई। उसने साँप को उठा लिया और अपनी कमीज के अंदर रख लिया।

    फिर वह अपने घर की ओर चल पड़ा। कुछ देर बाद बदन की गर्मी पाकर जब साँप की ठंड दूर हुई तो वह होश में आया। उसने जब स्वयं को कमीज के अंदर पाया तो उसे लगा कि कोई शत्र उसे मारने के लिए ले जा रहा है।

    अतः होश में आते ही उसने लकड़हारे को डस लिया। लकड़हारे की तुरंत मौत हो गई। बेचारे लकड़हारे को बेवजह अपनी जान गंवानी पड़ी।

    शिक्षा : दुष्ट कभी भी अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते। हमें उनसे सावधान रहना चाहिए।

    1. भगवान हर्मिज तथा एक इंसान (In Hindi Stories With Moral For Class 7)

    एक आदमी समुद्र तट पर खड़े होकर प्रकृति की सुंदरता को निहार रहा था। समुद्र, उसमें चल रहे पोत, पहाड़ और ठंडी हवाएँ उसके मन में खुशियाँ भर रही थीं।

    अचानक उसे दिखाई दिया कि सवारियों से भरा एक पोत समुद्र में डूब गया। उस आदमी को बेहद दुख हुआ। उसने मन-ही-मन कहा कि भगवान का बर्ताव अन्यायपूर्ण है,

    क्योंकि उन्होंने किसी एक अपराधी को सजा देने के लिए इतने सारे निर्दोष लोगों को मार दिया है। जिस स्थान पर वह खड़ा था वहाँ चीटियाँ भरी हुई थीं। जब वह भगवान को कोस रहा था तब एक चींटी ने उसे काट लिया।

    उसे मारने के लिए वह आगे बढ़ा तो उसके पैर बहुत सारी चींटियों पर पड़ गए जिससे वे सभी कुचलकर मर गईं। तभी भगवान हर्मिज प्रकट हुए और बोले,

    “मुझे आशा है कि अब तुम समझ चुके हो कि भगवान इंसानों को ठीक उसी तरह से आँकता है जिस तरह से तुमने चींटियों को आँका है।”

    शिक्षाः दूसरों को दोष मत दीजिए, बल्कि अपनी कमियों पर ध्यान दीजिए।

    1. डरपोक व्यक्ति In Hindi Stories For Class 7 With Moral

    एक बार एक राजा ने पड़ोसी राजा से युद्ध की घोषणा कर दी। वह युद्ध के लिए अपनी सेना को सशक्त बनाना चाहता था। इसलिए उसने युवकों से सेना में भर्ती होने को कहा। गाँव,

    नगर, शहर से युवा सेना में भर्ती होने के लिए आने लगे। एक गाँव में एक डरपोक व्यक्ति रहता था। राजा के आह्वान पर वह भी सेना में भर्ती होने चल दिया।

    वह रास्ते में इसी उधेड़बुन में था कि सेना में भर्ती हो या लौट जाए। तभी उसे कौओं का शोर सुनाई दिया। वह डर के मारे रुक गया और इधर-उधर देखने लगा। उसने देखा कि एक पेड़ पर बहुत सारे कौए बैठे हुए हैं।

    वह डर के मारे चिल्लाकर बोला,”अरे दुष्टों! चुप करो। तुम मुझे मारकर खाना चाहते हो। पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।” कौए और जोर-जोर से काँव-काँव करने लगे। कौओं का बढ़ता शोर सुनकर वह डरपोक व्यक्ति उल्टे पाँव लौट गया।

    शिक्षा: हमें अपने डर पर विजय प्राप्त करनी चाहिए न की उससे डर कर भागना चाहिए।

    1. लोमड़ी और साँप For Class 7 Stories In Hindi With Moral Stories

    एक दिन एक लोमड़ी जंगल में घूम रही थी। घूमते-घूमते उसे एक पेड़ के नीचे एक सांप लेटा हुआ मिला। साँप अपना पूरा शरीर लंबा करके लेटा हुआ था। यह एक लंबा साँप था। लोमड़ी वहीं रुक गई और उसे ध्यान से देखा।

    फिर वह सोचने लगी, ‘इसका शरीर कितना लंबा है। क्यों न मैं भी अपने शरीर को खींचकर साँप जितना लंबा कर लूँ!’ यह सोचकर लोमड़ी झटपट से साँप की बगल में लेट गई और अपने शरीर को खींचकर लंबा करने लगी।

    उसने अपने शरीर को पूरी ताकत से खींचा। साँप ने उसे देखा तो बोला, “अरे! यह तुम क्या कर रही हो? शरीर को इस प्रकार खींचने से तुम्हें नुकसान होगा।”

    “चुप करो! तुम्हें जलन हो रही है कि कहीं मैं भी तुम्हारी जितनी लंबी हो गई तो तुम्हें कौन पूछेगा!” कहकर लोमड़ी ने अपना शरीर इतना खींचा कि उसका पेट ही फट गया और तत्काल उसकी मौत हो गई।

    शिक्षा: हमें अनावश्यक रूप से दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए।

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