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जल पर कविता, Poems On Water In Hindi, Pani Par Kavita, Jal Par Kavita

    जल पर कविता, Poems On Water In Hindi, Pani Par Kavita, Jal Par Kavita

    आता भला कहाँ से पानी

    अम्मा ! यह बतलाओं मुझको

    आता भला कहाँ से पानी

    रोज खरचते फिर मिल जाता

    देख मुझे होती हैरानी !

    आसमान में कहीं नदी है

    उसमें कितना कितना पानी

    सारी दुनिया पर बरसाता

    कौन भला है ऐसा दानी?

    अम्मा बोली, प्यारे बेटे !

    है आकाश बरफ का टीला

    गरमी में वह पिघला करता

    वर्षा ऋतु में होता गीला

    मानसून जब टकराते हैं

    गलत बादल, झरता पानी

    इसे न कोई अचरज समझो

    यह है सच्ची, सरल कहानी

     

    ओह, पानी चला गया है

    देखो पानी की शैतानी

    निराशा! पानी चला गया

    अभी बहुत थे काम अधूरे

    भर भर को अभी नहाना था

    छुटकू कूद रहा है कब से

    उसको पिकनिक पर जाना था

    अभी न पोंछा लगा फर्श पर

    बर्तन झूठे पड़े हुए हैं

    कैसे पूजा अर्चन होगा

    दादा जी भी कुढ़े हुए हैं

    भैया जी की शेव अधूरी

    देख रहे है दाएं बाएँ

    कुछ गुस्से, कुछ गर्मी में हैं

    घूम रहे पापा झल्लाए

    मम्मी के बर्तन खड़के हैं

    पानी, पानी, पानी

    ओह, पानी चला गया है

    बूंद बूंद था टपक रहा, पर

    अब तो बिलकुल डिब्बा गोल

    नहीं पढ़ाई हुई अभी तक

    अंग्रेजी, हिंदी, भूगोल

    कैसे होमवर्क अब होगा

    मम्मी चीख रही है रानी

    जाओ, आस-पड़ोस से भर दो

    थोड़ा सा पीने का पानी

    क्या क्या करूं, समझ न आए

    पानी बिना अक्ल चकराए

    उस पर कड़ी धुप के चांटे

    सुबह सुबह तबियत अकुलाए

    बिना नहाए शाला जाऊं

    तुम्ही बताओ नानी

    निराशा! पानी चला गया है!

     

    हिंदी में सर्वश्रेष्ठ जल कविताएँ

    पानी क़ी महिमा ध़रती पर, हैं ज़िसने पहचानी।

    उससें बढकर और नही हैं, इस दुनियां मे ज्ञानी।।

    ज़िसमे ताकत उसकें आगे, भरते है सब पानी ।

    पानी ऊतर गया है़ ज़िसका, उसकी खत्म कहानी।।

    ज़िसकी मरा आंख का पानी, वह सम्मान न पाता।

    पानी ऊतरा ज़िस चेहरें का, वह मुर्दां हो जाता।।

    झूठें लोगो की बाते पानी पर खिची लकीरे।

    छोड अधर मे चल देगे वे, आगें धीरें-धीरें।।

    जिसमे पानी मर ज़ाता हैं, वह चुपचाप रहेंगा।

    बुरा-भला जो चाहें कह लों, सारी बात सहेंगा।।

    लगा नही ज़िसमे पानी, ऊपज न वह दें पाता।

    फ़सल सूख माटी मे मिलतीं, नही अन्न सें नाता।।

    बिन पानी के गाय-बैंल, नर नारी प्यासें मरते।

    पानी मिल ज़ाने पर सहसा ग़हरे साग़र भरते।।

    बिना पानी के धर्मं-काज भी, पूरा कभीं न होता।

    बिना पानी के मोती कों, माला मे कौंन पिरोता।।

    इस दुनियां से चल पडता हैं, जब साँसो का मेंला।

    गंगा-ज़ल मुंह मे जाक़र के, देता साथ अकेंला।

    उनसें बचक़र रहना जो पानी मे आग़ लगाते।

    पानी पीक़र सदा कौसते, वे क़ब ख़ुश रह पाते।।

    पानी पीक़र ज़ात पूछते है केवल अज्ञानी।

    चुल्लु भर पानी मे डूबे, उनकी दुख़द कहानी।।

    चिक़ने घड़े न गीलें होते, पानी से घब़राते।

    बुरा-भला क़ितना भी कह लों, तनिक़ न वे शर्माते।।

    नैनो के पानी से बढकर और न कोईं मोती।

    बिन प्यार का पानी पाये, धरती धीरज़ ख़ोती।।

    प्यार ,दुध पानी-सा मिलता हैं ज़िस भावुक मन मे।

    उससें बढकर सच्चा साथी, और नही जीवन मे।।

    जीवन हैं बूलबूला मात्र ब़स, सन्त कबीर बतलातें।

    इस दुनियां मे सदा निभाओं, प्रेम-नेंम के नाते।।

     

    पानी (जल पर कविता हिंदी में)

    आदमी तों आदमी

    मै तो पानी के बारें मे भी सोचता था

    क़ि पानी को भारत मे ब़सना सिख़ाऊगा।

    सोचता था

    पानी होग़ा आसां

    जैसा कि पूर्व में

    पुआल कें टोप ज़ैसा

    मोम की रौशनी ज़ैसा।

    गोधूलि मे उस पार तक़

    मुश्कि़ल से दिख़ाई देगा

    और एक ऐसें देश मे भटकाएगा

    ज़िसे अभी नक़्शें मे आना हैं।

    ऊंचाई पर जाक़र फ़ूल रही लतर

    ज़ैसे उठती रही हवा मे नामालूम गुम्बद तक़

    यह मिट्टीं के घडे मे भरा रहेंगा

    ज़ब भी मुझ़े प्यास लगेंगी।

    शर्द मे हो जाएगा और भी पतला

    साफ और धींमा

    किनारें पर उगें पेड की छाया मे।

    सोचता था

    यह सिर्फ शरीर के हीं काम नही आएगा

    जो रात हमनें नाव पर ज़गकर गुजारी

    क्या उस रात पानीं

    सिर्फ शरीर तक आक़र लौटता रहा?

    क्या-क्या ब़साया हमनें

    ज़ब से लिख़ना शुरू किया?

    उजडते हुवे बार-बार

    उजड़ने के बारे मे लिख़ते हुवे

    पता नही वाणी क़ा

    क़ितना नुक्सान किया।

    पानी सिर्फ वहीं नही क़रता

    ज़ैसा उससें करने के लिये कहा ज़ाता हैं

    महज एक पौधें को सीचते हुवे पानी

    उसक़ी जरा-सी जमीं के भीतर भी

    किस तरह ज़ाता हैं।

    क्या स्त्रियो की आवाजो मे बच रही है

    पानी की आवाजे

    और दूसरीं सब आवाजे कैंसी है?

    दुख़ी और टूटें हुए हृदय मे

    सिर्फ पानी कीं रात हैं

    वही हैं आशा और वही हैं

    दुनियां मे फ़िर से लौट आने की अक़ेली राह।

     

    एक कटोरी पानी

    रोज सवेरे माँ रख देती

    एक कटोरी पानी

    फुदक फुदक कर तब आंगन में

    आती चिड़ियाँ रानी

    डरते डरते तकते तकते

    चिड़ियाँ चोंच डुबाती

    हल्की सी आहट पाते ही

    झट से वह उड़ जाती

    लम्बे लंबे डग भरता

    जल्दी जल्दी आता मोर

    उधर देखता इधर झांकता

    चोंच में पानी भरता मोर

    लम्बी गर्दन नीली नीली

    सुंदर मुकुट हिलाता

    पानी पीकर पूंछ हिलाता

    फिर पर फैला देता

    गुटुर गुटुर गूं करे कबूतर

    गर्दन खूब फैलाए

    पानी देख देखकर नाचे

    मैं बहुत घूमा

    फिर झुक झुक कर चोंच डुबाता

    संग में डरता जाए

    लेकर पानी चोंच में अपने

    पंखों को नहलाए

    लाल लाल मुहं वाला बन्दर

    घुड़की देता आता

    नीचे झुकता ऊपर उठता

    लप लप पानी पीता

    कांव कांव कर काला कौआ

    पहले हमें डराता

    फिर आंगन में बड़ी शान से

    धप से नीचे आता

    चोंच में अपनी पानी भरता

    मुंह ऊपर कर लेता

    जाते जाते भरी कटोरी

    पानी बिखरा देता

     

    पानी और धूप

    अभी अभी थी धूप बरसने

    लगा कहाँ से यह पानी

    किसने फोड़ घड़े बादल के

    की है इतनी शैतानी

    सूरज ने क्यों बंद कर लिया

    अपने घर का दरवाजा

    उसकी माँ ने भी क्या उसको

    बुला लिया कहकर आजा

    जोर जोर से गरज रहें है

    बादल है किसके काका

    किसको डांट रहे हैं किसने

    कहना नहीं सुना माँ का

    बिजली के आँगन में अम्मा

    चलती है कितनी तलवार

    कैसी चमक रही है फिर भी

    क्यों खाली हो जाते है वार

    क्या अब तक तलवार चलाना

    माँ वे सीख नहीं पाए

    इसीलिए क्या आज सीखने

    आसमान पर है आए

    एक बार भी माँ यदि मुझको

    बिजली के घर जाने दो

    उसके बच्चों को तलवार

    चलाना सिखला आने दो

    खुश होकर तब बिजली देगी

    मुझे चमकती सी तलवार

    तब माँ कोई कर न सकेगा

    अपने ऊपर अत्याचार

    पुलिसमैन अपने काका को

    फिर न पकड़ने आएगे

    देखेंगे तलवार दूर से ही

    वे सब डर जाएंगे

    अगर चाहती हो माँ काका

    जाएं अब न जेलखाना

    तो फिर बिजली के घर मुझको

    तुम जल्दी से पहुंचाना

    काका जेल न जाएंगे अब

    तुझे मंगा दूगी तलवार

    पर बिजली के घर जाने का

    अब मत करना कभी विचार

     

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