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सर्दी पर कविता, Poem on Winter Season in Hindi, Sardi Par Kavita

    सर्दी पर कविता, Poem on Winter Season in Hindi, Sardi Par Kavita

    यह जाड़े की धूप

    नानी की

    लोरी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    दुआ मधुर

    दादी की लगती

    यह जाड़े की धूप

    गिफ्ट बड़ा

    दादू नानू का

    यह जाड़े की धूप

    जादू की

    गुल्लक सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    ऋतुओं में

    ठुल्लक सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    सपनों की

    रानी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    बिन माँ की

    नानी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    मक्के की

    रोटी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    मक्खन, घी

    मिश्री सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    निर्धन के

    चूल्हे सी जगती

    यह जाड़े की धूप

    पापा की

    पप्पी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

    भली नींद

    झप्पी सी लगती

    यह जाड़े की धूप

     

    हमको लगी रजाई धूप

    जाड़े में जब आई धूप

    हमको लगी रजाई धूप

    सूरज दादा ने ऊपर से

    गरम गरम पहुंचाई धूप

    उजली उजली चाँदी जैसी

    सबके मन को भाई धूप

    चार दिनों के बाद आज फिर

    निकली है अलसाई धूप

    बच्चों जैसी अंदर बाहर

    घर घर में इठलाई धूप

    कभी निकलती फीकी फीकी

    मुरझाई मुरझाई धूप

    थर थर थर थर काँप रही खुद

    सकुचाई सकुचाई धूप

    बर्फीली ठंडी में लगती

    भली भली सुखदाई धूप

     

    जाड़ा दूर भगा !

    अरे बिसम्बर

    लगा दिसंबर

    सिलगा ले सिगड़ी

    सर्दी आई

    बिना रजाई

    हालत है बिगड़ी!

    दांत बज रहे

    राम भज रहे

    पड़ने लगी ठिरन

    सर्दी से डर

    किरने लेकर

    सूरज हुआ हिरण

    धूप सुनहली

    अभी न निकली

    छाया है कुहरा

    सिकुड़ सिकुड़कर

    ठिठुर ठिठुरकर

    यों मत हो दुहरा

    दिखा न सुस्ती

    ला कुछ चुस्ती

    फुर्ती नई जगा

    गरम चाय का

    उड़ा जायका

    जाड़ा दूर भगा

     

    जाड़े की धूप

    आती, फुर्र हो जाती

    मम्मी के गुस्से सी

    जाड़े की धूप

    राहत सा देती है

    पापा की हंसी सी

    जाड़े की धूप

    बड़ी भली लगती है

    टीचर के प्यार सी

    जाड़े की धूप

    गरमाहट देती है

    दोस्त के हाथ सी

    जाड़े की धूप

     

    मत न सताओ अब इतना

    पास नहीं है उसके कंबल

    और न है कोई ऊनी शाल

    उकडू बैठा आंच सेकता

    सड़क किनारे दीनदयाल

    शीत लहर का साथ दें

    घना कोहरा झोली में

    मंगू ठिठुरा बैठा है जी

    तुमसे डरकर खोली में

    दांत पीसकर कांपने लगे

    नंगे पाँव खड़ किसना

    ओ सर्दी कुछ रहम करो तुम

    नहीं सताओ अब इतना

     

    सर्दी आई

    सर्दी आई छाया कोहरा

    छिपा लिया सूरज ने चेहरा

    दादी बैठी दांत बजाएं

    हर घंटे बस चाय मंगाएं

    दादाजी के दांत नहीं

    पर देखों मूंगफली मंगवाएं

    गोलू जी तो मस्त घूमते

    पूरे घर में उधम मचाते

    ठंड बढ़ी तो बढ़ गई छुट्टी

    बाथरूम से कर ली कुट्टी

    चार दिनों से मुंह न धोया

    बात करें तो गंध आए

    फिर मम्मी को गुस्सा आया

    गोलू जी को दे धमकाया

    गोलू बोले ठंड बड़ी है

    मम्मी बोली देख छड़ी है

    गोलू जी गुस्से में आए

    स्वेटर पहनके खूब नहाएं

     

    सर्दी “संध्या गोयल सुगम्या”

    खूब सारी छुट्टियाँ लेकर आती

    सर्दी मुझको खूब है भाती

    स्वेटर हमको खूब रिझाते

    रजाई कम्बल पास बुलाते

    धूप में बैठ मूंगफली खाते

    स्कूल को कुछ दिन भूल ही जाते

    अम्मा चटपट स्वेटर बुनती

    मटर की फलियाँ झटपट छीलती

    गोद में बैठकर बाबा की

    बात बनाते दुनिया भर की

    क्यों आती साल में एक बार

    आओ न सर्दी बारम्बार

     

    आई ओढ़ दुशाला

    सर्दी आई ओढ़ दुशाला

    सूरज ने भी मफलर डाला

    धूप जरा सकुचाई लगती

    चढ़े देर से जल्दीढलती

    दिन लगते हैं सिकुड़े सिकुड़े

    रातों की लंबाई खलती

    इतराता है कंबल काला

    सर्दी आई ओढ़ दुशाला

    दांतों की किट किट भारी है

    पानी से दुनिया हारी है

    डर लगता है छूने में भी

    रोज नहाना लाचारी है

    यह कैसा है गडबडझाला

    सर्दी आई ओढ़ दुशाला

    लगती हवा तीर सी तीखी

    चुभना बता कहाँ तू सीखी

    जब तू हाड़ गलाती आई

    दादा चीखे दादी चीखी

    काम आज का कल पे टाला

    सर्दी आई ओढ़ दुशाला

     

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