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खेल पर कविता,Poem on Sports in Hindi

    खेल पर कविता,Poem on Sports in Hindi

     

    आओ खेलें खेल नया

    हाथ में लकड़ी, आँख पे चश्मा गोल लगा

    आधी धोती पैरों में है, आधी से है बदन ढँका

    चरखा अहिंसा, सत्याग्रह से, लेकर आया आजादी

    राष्ट्रपिता वह कहलाता

    क्या नाम तुम्हें उसका आता?

    श्वेत कबूतर के पंखों सी पहनी जिसने है अचकन

    बच्चों के साथ खेलना किस बचपन में आता है

    लाल गुलाब सा कोमल दिल हैं, प्यार की उसमें है धडकन

    शांति, अहिंसा, पंचशील से बना हुआ जिसका जीवन

    बच्चों का चाचा कहलाता

    क्या नाम तुम्हें उसका आता?

    कद छोटा था मगर हिमालय जैसा अडिग इरादा

    देश की जनता का प्यारा था, लगता सीधा सादा

    अठारह महीने गीता के, अठारह अध्याय बने

    ताशकंद से दिल्ली तक, जब रोते रोते लोग चले

    जो सदा बहादुर कहलाता

    क्या तुम्हें उसका आता?

     

    हँस हँस मारें छक्का “राकेश चक्र”

    खेल खेल में चुन्नू मुन्नी

    करते है तकरार

    चुन्नू भैया रूठ गये तो

    दिल में पड़ी दरार

    बने मूर्ति ऐसे वह तो

    फूल के हो गये कुप्पा

    करी गुदगुदी मुन्नी ने तब

    हँस हँस मारें छक्का

    इधर उधर को दोनों दौड़े

    हंसते-हंसते काका को देखा

    कोई किसी के हाथ न आए

    हो रही धक्कम धक्का

     

    समझ न आता “मंजु महिमा”

    रोज होंठ अपने रंगती

    दादी खाकर पान

    पर मैं तो झट कहती

    बच्चों को करता नुक्सान

    दादाजी ने हमेशा शतरंज खेला

    चलते तरह तरह की चाल

    पर मैं चलती तो कहते

    चलना चाल बुरी है बात

    चाचा क्रिकेट खेल सदा ही

    जीतते ट्रॉफी सम्मान

    पर मैं खेलूँ तो कहते

    नहीं तुम्हारे बस की बात

    पापा बैठ दोस्तों के संग

    हँस हँस पीते और पिलाते

    पर मैं पिउं तो झट कहते

    यह है बड़ी गंदी बात

    मम्मी कहती कर नकल बड़ों की

    देख बड़ों के काम

    पर जब करती चपत लगातीं

    आफत आ जाती राम

    नहीं समझ में मेरे आता

    जरा बताओ तो तुम भैया

    ये बड़े करके मना हमें

    क्यों करते है ऐसे काम??

     

    कहाँ खेलें क्रिकेट “शील कौशिक”

    लो जी हम तो हैं तैयार

    आए नहीं बाकी के चार

    कब से खड़े सजाकर हैट

    हाथों में पकड़े हैं बैट

    सोनू मोनू सोच रहे हैं

    कहाँ पर मिलें खुले मैदान

    कंक्रीट के जंगल हैं अब

    कारण से हम नहीं अनजान

    छक्के जब जब दूर गए

    घरों के शीशे टूट गए

    कान पकड़ कर आंटी लाए

    मम्मी को ये बात न भाए

    हमको बात समझ में आई

    स्टेडियम में खेलो भाई

     

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