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मिट्टी पर कविताएं, Poem On Soil In Hindi, Mitti Par Kavita

    मिट्टी पर कविताएं, Poem On Soil In Hindi, Mitti Par Kavita

     

    मिट्टी कितने काम की

    मिट्टी कितने काम की

    बिन पैसे बिन दाम की

    बड़े सजीले पंछी बनते

    उड़ते गिरते और सम्भलते

    रंग बिरंगे खेल खिलौने

    चक्की चूल्हा घड़े सलोने

    जीवित सी मूरत बन जाती

    जोड़ी सीता राम की

    मिट्टी कितने काम की

    कहीं ईंट बन महल बनाती

    कहीं खेत में फसल उगाती

    सुंदर सुंदर फूल खिलाती

    कभी धूल कीचड़ बन जाती

    तरह तरह की होती है यह

    कई रूप कई नाम की

    मिट्टी कितने काम की

     

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