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हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता,Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi

    हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता,Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi

     

    कसम खाओ “स्नेह लता”

    था शहर जापान का हिरोशिमा

    नाज था जापान का हिरोशिमा

    प्रगति का वरदान था हिरोशिमा

    आंख का काँटा बना हिरोशिमा

    छः अगस्त सन पैंतालीस का प्रात था

    फूल कलियाँ मलय सुरभित वात था

    रोजमर्रा की तरह थी जिंदगी

    फिजाँ में बिखरी हुई थी ताजगी

    आठ बज पन्द्रह मिनट पर टिबेट ने

    लिटिल बाय बम को गिरा हाय कहा

    मात्र तैंतालीस सेकंड अंतराल में

    वह गगन से धरती पर लगा

    चीख उठा गगन धरती हिल गई

    धुंआ धूल गुबार से वह भर गई

    ढह गई मीनार बस्ती मिट गई

    चमन सी दुनिया पलों में लुट गई

    अलविदा कहकर न कोई जा सका

    आँख से आँसू कोई न गिरा सका

    मात्र पल भर में न कुछ भी शेष था

    मुस्कराता शहर अब अवशेष था

    हो गई वीरान बस्ती लुट गई

    थी सजाने में जिसे सदिय गई

    क्या यही विज्ञान का वरदान था

    क्या यही इंसान पर एहसान था

    चित्र थे दीवार पर परछाई के

    मिट सके ना वे वहीं जड़ हो गये

    चित्र थे यह आदमी के दम्भ के

    चित्र थे परमाणु आविष्कार के

    थी यह किसकी जीत किसकी हार थी

    किस कदर हैवानियत सवार थी

    देखकर हर और मंजर मौत का

    जिंदगी खुद से यूँ शर्मसार थी

    वक्त था बढ़ता गया चलता गया

    भर न पाएं जख्म जो बम से लगे

    देखकर लूली अपाहिज नस्ल को

    शाप जैसा झेलता हिरोशिमा

    खो दिया मैंने मुझे क्या मिला हैं

    किन चमत्कारों का मुझको सिला है

    तुम मुझे देखो जरा सोचो जरा सीखो

    कसम खाओ फिर कभी हिरोशिमा न हो

     

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