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Top मुनव्वर फारूकी शायरी, Munawar Faruqui Shayari in hindi मुनव्वर फारुखी पोएट्री।

    Top मुनव्वर फारूकी शायरी, Munawar Faruqui Shayari in hindi मुनव्वर फारुखी पोएट्री।
    प्यार पर मुनव्वर फारूकी शायरी

    कितने दिल दुखाओगे बस करो
    ये काला काजल लगाना बस करो
    एकबार अगर देख ली जुल्फे खुली किसी ने
    मर जाएंगे कई सुनो बाल बाँध लो।

    बादशाहो ने सिखाया कलंदर होना
    तुम आसान समझते हो क्या मुनव्वर होना ,
    दिन भर हंसती सकल लेकर चलना
    रोते सजदों में और गीले तकियो में सोना।

    मेरा ज़िक्र बंद करो मैं कोई आयत नहीं हु ,
    दुनिया फरेबी मैं खुद वफ़ा के लायक नहीं हु बन ,
    सवाल चलेंगे तो हाथ इनके काँपेगे।

    वो था तूफ़ान जो दस्तक देकर आया था
    अकेला था लगा था लस्कर लेकर आया था ,
    वो पूछेंगे किसकी है ये लोहे जैसी लेगेसी
    कहना वो डोंगरी वाला आग लेकर आया था।

    मेरे दर्दो का गुनाह तेरे पे है
    उल्फत का मलाल उसके चेहरे पर है ,
    बदल दिया था रास्ता मुझे देखकर
    आज दुनिया भर की निगाह मेरे पर है।

    अपने बचपन को सिक्को में ही तोल आया ,
    अपनी राहतो को पीछे कहि छोड़ आये ,
    खुशबु सब में थी मैं पहचानता नसल कैसे
    गया फूल लेने कांटे सारे तोड़ आये।
    सर पर ज़िम्मेदारी खुवाईसो को अपने मारा
    जताके कहके सब तो लिया न शहारा।

    बिन बताये उसने क्यों ये दूरी कर दी ,
    बिछड़कर उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी ,
    मेरे मुकद्दर में गम आये तो क्या हुआ ,
    खुदा ने उसकी खुवाईश तो पूरी कर दी।

    नहीं कोई वाकिफ कितना दर्द लिए चलता हु ,
    टूटता हर सुबह जब आईना देखता हु
    मैं आनंद से चलता हूं, मैं हंसी से मिलता हूं
    मैं रोज ऐसे कितनो को दगा देता हु ,

    कभी मिलो तो सुनाऊँ
    तेरी सीरत साफ़ शीशे की तरह
    मेरे दामन में दाग हजारो हैं ,
    तू नायब किसी पत्थर की तरह
    मेरा उठना बैठना बाजारों में है।
    तेरी मौजूदगी का अहतराम कर भी लू ,
    जब तू होगा रु बरु मेरी ज़ज़्बात कहाँ छुपाऊ

    मेरा खुवाब इन पहाड़ो से बड़े हैं ,
    तूफ़ान में कागज़ की कस्ती लिए खड़े हैं ,
    ये कैसे रोकेंगे आसमान से आनेवाले मेरे रिस्क को ,
    मैं ज़मीं पर हु और ये पर काटने चले हैं।

    बता दो बाजार कोई जहां मुझे वफ़ा मिले
    यंहा मैं बेचू खुशु और गम साला नफ़ा मिले।
    बेचता नहीं ज़मीर खुदा के खौफ से
    वर्णा सौदे करने वाले कई दफा मिले।

    एक उम्र लेकर आना
    मै खाली किताबे ले आऊंगा ,
    तोड़कर लाने ले वादे नहीं
    मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा
    इस ज़मी पे कोई ख़ास नहीं है मेरा
    आप एक बार कबूल करें
    मैं अपने गाँव आसमान से महगाउंगा

    मेरे सब्र की इंतिहा पे सक कैसा
    मैंने तेरे आने पर ताउम्र लिखी है ,
    कई रात से सोया हु अंधेरो में
    तुम ज़रा सा नूर ले आओगे
    मेरे तकिये गीले हैं आंशुओ से
    क्या तू मुझे अपनी गोद में सुलाओगे ,
    सुना है बाग़ है तेरे आँगन में
    मेरे ला हसल बचपन को वो झूला दिखाओगे
    मैंने खोया है अपने हर प्यारी चीज़ को
    मैं अपनी किस्मत फिर भी आज़माऊँगा।

    वो मुझे दूर करने की ज़िद लिए बैठा है ,
    साथ चलना नहीं है मंजिल का वादा कर बैठा है ,
    मुझे मोहब्बत है समंदर की उन लहरों से ,
    और मेरा महबूब पहाड़ो को दिल दिया बैठा है।

    वो जुल्फों से दिन में रातें करती है ,
    उनकी आँखे ताउम्र की वादे करती है ,
    भरती है आहे हमारी आवाज़ को छूकर
    वो बस मुस्कुरा के बरसा के करती है।

    मैंने गफलत में अपने
    सपने जलाये हैं ,
    दर्दो को जैसे
    मैंने यंहा दावत पे बुलायें हैं।
    खुदा सुकून दे मेरे जहन को
    मैंने गैर हँसाकर अपने रुलाये हैं ,

    मौत मुकम्बल मैं डरने वाला नहीं हु
    हक है मैं लड़ने वाला नहीं हु
    तालियों से जब मैं भर न दू स्टेडियम
    कसम खुदा की मैं मरने वाला नहीं हु।

    तू बैचैन नहीं मुझे चैन नहीं
    तुझे ज़रूरत नहीं मुझे कोई और ज़रूरत नहीं
    एक आरसे के वाद की है मोहब्बत किसी से
    तुझे कदर नहीं मुझे सबर नहीं।
    मशरूफ हो तुम भी
    मशरूफ हैं हम भी
    तुम्हे खुद से फुर्सत नहीं
    हमे तुम से फुर्सत नहीं

    सपने देखता पर चैन से मैं सोया कब था
    हँसा के भुला मैं आखड़ी बार कब था
    आ जाती महफ़िलो में रौनक मेरे नाम से ही
    इतना नायब हु आज दाम कोई लगा नहीं सकता ,
    मेरी बचपन से ही लगा एक सर्त है
    फरीद सबसे हु आवाज़ में ही तर्क है
    फर्क है चढ़ता नहीं मैं भीड़ लेके
    अकेला हक लेके पैदा हुआ रिड लेके
    वाकिफ है सब तो फ़साने दर्द का गाउ क्या ,
    ज़हन में ग़ालिब तो फ़साना दिल का लाऊँ क्या
    वो कहते चुभते मेरे लफ्ज़ उनको बहुत
    चीर देगी खामोशी चुप हो जाऊं क्या।

    सुखी ज़मीन कहती मुझसे कब बरसोगे,
    पर मेरा वादा कर मिलने को तरसोगे
    देते भीख बिछा मेरे पैरो में मखमल
    मैं रोकू ये कहके जुड़ा हु मैं फरसे से।

    इतना कुछ मिला है खुदा का लाख सुक्रिया
    अमल कुछ ख़ास नहीं मेरा आखिर फिक्र क्यों करू ,
    मुझे लगता है उसे पसंद है मेरा टूटना
    मुसिवते भेजता है ताकि मैं उसका ज़िक्र करू।

    कुछ तो तू भी कह दे
    खामोशी तेरी आती है तूफ़ान लेके ,
    कश्ती को किनारे दो या फिर डुबो दो,
    तो मुझे तेरी पनाह मिले ,
    जब लौटेगी तो इंतज़ार देदे ,
    राते कटती नहीं दिन भी
    इम्तिहान लेते हैं ,
    ये मेरे हाल दिल की मुझे ज़िम्मेदार कहते हैं ,
    ओ बेखबर मैं तेरी आस में जिन्दा हूँ।

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