Skip to content

महादेवी वर्मा कविता,Mahadevi Verma Poems in Hindi

    महादेवी वर्मा कविता,Mahadevi Verma Poems in Hindi

    Mahadevi Verma Poems – कौन है? – महादेवी वर्मा

    कुमुद-दल से वेदना के दाग़ को,

    पोंछती जब आंसुवों से रश्मियां;

    चौंक उठतीं अनिल के निश्वास छू,

    तारिकायें चकित सी अनजान सी;

    तब बुला जाता मुझे उस पार जो,

    दूर के संगीत सा वह कौन है?

    शून्य नभ पर उमड़ जब दुख भार सी,

    नैश तम में, सघन छा जाती घटा;

    बिखर जाती जुगनुओं की पांति भी,

    जब सुनहले आँसुवों के हार सी;

    तब चमक जो लोचनों को मूंदता,

    तड़ित की मुस्कान में वह कौन है?

    अवनि-अम्बर की रुपहली सीप में,

    तरल मोती सा जलधि जब काँपता;

    तैरते घन मृदुल हिम के पुंज से,

    ज्योत्सना के रजत पारावार में

    सुरभि वन जो थपकियां देता मुझे,

    नींद के उच्छवास सा, वह कौन है?

    जब कपोलगुलाब पर शिशु प्रात के

    सूखते नक्षत्र जल के बिन्दु से;

    रश्मियों की कनक धारा में नहा,

    मुकुल हँसते मोतियों का अर्घ्य दे;

    सपनों के शेड में पर्दा लगाएं

    तब दृगों को खोलता वह कौन है?

    Mahadevi Verma Poems – बाँच ली मैंने व्यथा – महादेवी वर्मा

    बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में !

    मिट गए पदचिह्न जिन पर हार छालों ने लिखी थी,

    खो गए संकल्प जिन पर राख सपनों की बिछी थी,

    आज जिस आलोक ने सबको मुखर चित्रित किया है,

    जल उठा वह कौन-सा दीपक बिना बाती नयन में !

    कौन पन्थी खो गया अपनी स्वयं परछाइयों में,

    कौन डूबा है स्वयं कल्पित पराजय खाइयों में,

    लोक जय-रथ की इसे तुम हार जीवन की न मानो

    कौंध कर यह सुधि किसी की आज कह जाती नयन में।

    सिन्धु जिस को माँगता है आज बड़वानल बनाने,

    मेघ जिस को माँगता आलोक प्राणों में जलाने,

    यह तिमिर का ज्वार भी जिसको डुबा पाता नहीं है,

    रख गया है कौन जल में ज्वाल की थाती नयन में ?

    अब नहीं दिन की प्रतीक्षा है, न माँगा है उजाला,

    श्वास ही जब लिख रही चिनगारियों की वर्णमाला !

    अश्रु की लघु बूँद में अवतार शतशत सूर्य के हैं,

    आ दबे पैरों उषाएँ लौट अब जातीं नयन में !

    आँच ली मैंने व्यथा की अनलिखी पाती नयन में !

    Mahadevi Verma Poems – शेष कितनी रात? – महादेवी वर्मा

    पूछता क्यों शेष कितनी रात ?

    अमर सम्पुट में ढला तू,

    छू नखों की कांति चिर संकेत पर जिन के जला तू,

    स्निग्ध सुधि जिन की लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू !

    परिधि बन घेरे तुझे वे उँगलियाँ अवदात !

    झर गए खद्योग सारे;

    अँधेरे और आँधी में सारे अनमोल सितारे पिस गए,

    बुझ गई पवि के हृदय में काँप कर विद्युत-शिखा रे !

    साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात !

    व्यंगमय है क्षितिज-घेरा

    प्रश्नमय हर क्षण निठुर-सा पूछता परिचय बसेरा,

    आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा !

    छीजता है इधर तू उस ओर बढ़ता प्रात !

    प्रणत लौ की आरती ले,

    धूम-लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले,

    मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्ज्वल भारती ले,

    मिल अरे बढ़, रहे यदि प्रलय झंझावात !

    कौन भय की बात ?

    पूछता क्यों शेष कितनी रात ?

    Mahadevi Verma Poems – बुझे दीपक जला लूँ – महादेवी वर्मा

    सब बुझे दीपक जला लूँ!

    घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

    क्षितिज-कारा तोड़ कर अब

    गा उठी उन्मत आँधी,

    अब घटाओं में न रुकती

    लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,

    धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!

    भीत तारक मूँदते दृग

    भ्रान्त मारुत पथ न पाता

    छोड़ उल्का अंक नभ में

    ध्वंस आता हरहराता,

    उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!

    लय बनी मृदु वर्त्तिका

    हर स्वर जला बन लौ सजीली,

    फैलती आलोक-सी

    झंकार मेरी स्नेह गीली,

    इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!

    देख कर कोमल व्यथा को

    आँसुओं के सजल रथ में,

    मोम-सी साधें बिछा दी

    थीं इसी अंगार-पथ में

    स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!

    अब तरी पतवार ला कर

    तुम दिखा मत पार देना,

    आज गर्जन में मुझे बस

    एक बार पुकार लेना !

    ज्वार को तरणी बना मैं; इस प्रलय का पार पा लूँ!

    आज दीपक राग गा लूँ !

    Mahadevi Verma Poems – दीप मेरे – महादेवी वर्मा

    दीप मेरे जल अकम्पित,

    धुल अचंचल !

    सिन्धु का उच्छ्वास घन है,

    तड़ित् तम का विकल मन है,

    भीति क्या नभ है व्यथा का

    आँसुओं से सिक्त अंचल !

    स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,

    मीड़ सब भू की शिराएँ,

    गा रहे आँधी-प्रलय

    तेरे लिए ही आज मंगल।

    मोह क्या निशि के वरों का,

    शलभ के झुलसे परों का,

    साथ अक्षय ज्वाल का

    तू ले चला अनमोल सम्बल !

    पथ न भूले, एक पग भी,

    घर न खोये, लघु विहग भी,

    स्निग्ध लौ की तूलिका से

    आँक सब की छाँह उज्ज्वल !

    हो लिये सब साथ अपने,

    मृदुल आहटहीन सपने,

    तू इन्हें पाथेय बिन, चिर

    प्यास के मरु में न खो, चल !

    धूम में अब बोलना क्या,

    क्षार में अब तोलना क्या !

    प्रात हँस-रोकर गिनेगा,

    स्वर्ण कितने हो चुके पल !

    दीप रे तू गल अकम्पित,

    चल अचंचल!

    Mahadevi Verma Poems – मुरझाया फूल – महादेवी वर्मा

    था कली के रूप शैशव-

    में अहो सूखे सुमन,

    मुस्कराता था, खिलाती

    अंक में तुझको पवन !

    खिल गया जब पूर्ण तू-

    मंजुल सुकोमल पुष्पवर,

    लालची शहद के लिए मँडरा

    लगे आने भ्रमर !

    स्निग्ध किरणें चन्द्र की-

    तुझको हँसाती थीं सदा,

    रात तुझ पर वारती थी

    मोतियों की सम्पदा!

    Mahadevi Verma Poems – हुई विद्रुम बेला नीली – महादेवी वर्मा

    मेरी चितवन खींच गगन के कितने रँग लाई !

    शतरंगों के इन्द्रधनुष-सी स्मृति उर में छाई;

    राग-विरागों के दोनों तट मेरे प्राणों में,

    छूती हैं सांसें एक, छूती हैं तो सांसें!

    अधर सस्मित पलकें गीली !

    भाती तम की मुक्ति नहीं, प्रिय रोगों का बन्धन;

    उड़ कर फिर लौट रहे हैं लघु उर में स्पन्दन;

    क्या जीने का मर्म यहाँ मिट मिट सब ने जाना ?

    तर जाने को मृत्यु कहा क्यों बहने को जीवन ?

    Mahadevi Verma Poems – नये घन – महादेवी वर्मा

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    अम्बर गर्वित

    हो आया नत,

    चिर निस्पन्द हृदय में उसके

    उमड़े री पलकों के सावन !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    चौंकी निद्रित,

    रजनी अलसित

    श्यामल पुलकित कम्पित कर में

    दमक उठे विद्युत् के कंकण !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    दिशि का चंचल,

    परिमल- अंचल,

    छिन्न हार से बिखर पड़े सखि !

    जुगनू के लघु हीरक के कण !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    जड़ जग स्पन्दित,

    निश्चल कम्पित,

    फट अवनी का जम गया

    सपने मृदुतम अंकुर बन बन !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    रोया चातक,

    सकुचाया पिक,

    मत्त मयूरों ने सूने में

    झड़ियों का दुहराया नर्तन !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    सुख-दुख से भर,

    आया लघु उर,

    मोती से उजले जलकण से

    छाये मेरे विस्मित लोचन !

    लाये कौन सँदेश नये घन !

    Mahadevi Verma Poems – अश्रु-नीर – महादेवी वर्मा

    प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर !

    दुख से अविल और खुशी से दागदार

    बुद्बुद से स्वप्नों से फेनिल,

    बहता है युग युग से अधीर

    जीवन-पथ का दुर्गमतम तल,

    अपनी गति से कर सजल सरल,

    उम्र का प्यासा तीर ठंडा करता है!

    इसमें उपजा यह नीरज सित,

    कोमल-कोमल लज्जित मीलित;

    सौरभ-सी लेकर मधुर पीर !

    इसमें न पंक का चिह्न शेष,

    इसमें न ठहरता सलिल-लेश,

    इसको न जगाती मधुप-भीर !

    तेरे करुणा-कण से विलसित,

    हो तेरी चितवन से विकसित,

    छू तेरी श्वासों का समीर !

    Mahadevi Verma Poems – आना – महादेवी वर्मा

    जो मुखरित कर जाती थी

    मेरा नीरव आवाहन,

    मैं ने दुर्बल प्राणों की

    वह आज सुला दी कम्पन!

    थिरकन अपनी पुतली की

    भारी पलकों में बाँधी,

    निस्पन्द पड़ी हैं आँखें

    बरसाने वाली आँखी।

    जिसके निष्फल जीवन ने

    जल जल कर देखीं राहें!

    निर्वाण हुआ है देखो

    वह दीप लुटा कर चाहें!

    निर्घोष घटाओं में छिप

    तड़पन चपला की सोती,

    झंझा के उन्मादों में

    घुलती जाती बेहोशी।

    करुणामय को भाता है

    तम के परदों में आना,

    हे नभ की दीपावलियों!

    तुम पल भर को बुझ जाना!

    Mahadevi Verma Poems – निश्चय – महादेवी वर्मा

    कितनी रातों की मैंने

    नहलाई है अंधियारी,

    धो ड़ाली है संध्या के

    पीले सेंदुर से लाली;

    नभ के धुँधले कर ड़ाले

    अपलक चमकीले तारे,

    इन आहों पर तैरा कर

    रजनीकर पार उतारे।

    वह गई क्षितिज की रेखा

    मिलती है कहीं न हेरे,

    भूला सा मत्त समीरण

    पागल सा देता फेरे!

    अपने उस पर सोने से

    लिखकर कुछ प्रेम कहानी,

    सहते हैं रोते बादल

    तूफानों की मनमानी।

    इन बूदों के दर्पण में

    करुणा क्या झाँक रही है?

    क्या सागर की धड़कन में

    लहरें बढ आँक रहीं हैं?

    पीड़ा मेरे मानस से

    भीगे पट सी लिपटी है,

    ये सांसें डूब गईं

    ओठों में आ सिमटीं हैं।

    मुझ में विक्षिप्त झकोरे!

    उन्माद मिला दो अपना,

    हाँ नाच उठे जिसको छू

    मेरा नन्हा सा सपना!!

    पीड़ा टकराकर फूटे

    घुमे उदास होकर आराम करो;

    तम बढे मिटा ड़ाले सब

    जीवन काँपे दलदल सा।

    फिर भी इस पार न आवे

    जो मेरा नाविक निर्मम,

    सपनों से बाँध ड़ुबाना

    मेरा छोटा सा जीवन!

    Mahadevi Verma Poems – स्वप्न – महादेवी वर्मा

    इन हीरक से तारों को

    कर चूर बनाया प्याला,

    पीड़ा का सार मिलाकर

    प्राणों का आसव ढाला।

    मलयानिल के झोंको से

    अपना उपहार लपेटे,

    मैं सूने तट पर आयी

    बिखरे उद्गार समेटे।

    काले रजनी अंचल में

    लिपटीं लहरें सोती थीं,

    मधु मानस का बरसाती

    वारिदमाला रोती थी।

    नीरव तम की छाया में

    छिप सौरभ की अलकों में,

    गायक वह गान तुम्हारा

    आ मंड़राया पलकों में!

    Mahadevi Verma Poems – मेरी साध – महादेवी वर्मा

    थकीं पलकें सपनों पर ड़ाल

    व्यथा में सोता हो आकाश,

    छलकता जाता हो चुपचाप

    बादलों के उर से अवसाद;

    वेदना की वीणा पर देव

    शुन्या मौन राग गाती है,

    मिलाकर निश्वासों के तार

    गूँथती हो जब तारे रात;

    उन्हीं तारक फूलों में देव

    गूँथना मेरे पागल प्राण

    हठीले मेरे छोटे प्राण!

    किसी जीवन की मीठी याद

    लुटाता हो मतवाला प्रात,

    कली अलसायी आँखें खोल

    सुनाती हो सपने की बात;

    खोजते हों खोया उन्माद

    मन्द मलयानिल के उच्छवास,

    माँगती हो आँसू के बिन्दु

    मूक फूलों की सोती प्यास;

    पेय धीरे-धीरे दें

    उसे मेरे आँसू सुकुमार

    सजीले ये आँसू के हार!

    मचलते उद्गारों से खेल

    उलझते हों किरणों के जाल,

    किसी की छूकर ठंढी सांस

    सिहर जाती हों लहरें बाल;

    अचंभित रेगिस्तान में दुनिया

    गिन रहा हो प्राणों के दाग,

    सुनहली प्याली में दिनमान

    किसी का पीता हो अनुराग;

    ढाल देना उसमें अनजान

    देव मेरा चिर संचित राग

    अरे यह मेरा मादक राग!

    मत्त हो स्वप्निल हाला ढाल

    महानिद्रा में पारावार,

    उसी की धड़कन में तूफान

    मिलाता हो अपनी झंकार;

    झकोरों से मोहक सन्देश

    कह रहा हो छाया का मौन,

    सुप्त आहों का दीन विषाद

    पूछता हो आता है कौन?

    बहा देना आकर चुपचाप

    तभी यह मेरा जीवन फूल

    सुभग मेरा मुरझाया फूल!

    Mahadevi Verma Poems – अभिमान – महादेवी वर्मा

    छाया की आँखमिचौनी

    मेघों का मतवालापन,

    रजनी के श्याम कपोलों

    पर ढरकीले श्रम के कन,

    फूलों की मीठी चितवन

    नभ की ये दीपावलियाँ,

    पीले मुख पर संध्या के

    वे किरणों की फुलझड़ियाँ।

    विधु की चाँदी की थाली

    मादक अमृत से भरपूर,

    जिस में उजियारी रातें

    लुटतीं घुलतीं मिसरी सी;

    भिक्षुक से फिर जाओगे

    जब लेकर यह अपना धन,

    करुणामय तब समझोगे

    इन प्राणों का मंहगापन!

    क्यों आज दिये जाते हो

    अपना मरकत सिंहासन?

    यह है मेरे चरुमानस

    का चमकीला सिकताकन।

    आलोक जहाँ लुटता है

    बुझ जाते हैं तारा गण,

    अविराम जला करता है

    पर मेरा दीपक सा मन!

    जिसकी विशाल छाया में

    जग बालक सा सोता है,

    मेरी आँखों में वह दु:ख

    आँसू बन कर खोता है!

    जग हँसकर कह देता है

    मेरी आँखें हैं निर्धन,

    इनके बरसाये मोती

    क्या वह अब तक पाया गिन?

    मेरी लघुता पर आती

    जिस दिव्य लोक को व्रीड़ा,

    उसके प्राणों से पूछो

    वे पाल सकेंगे पीड़ा?

    उनसे कैसे छोटा है

    मेरा यह भिक्षुक जीवन?

    उन में अनन्त करुणा है

    इस में असीम सूनापन!

    महादेवी वर्मा कविता,Mahadevi Verma Poems in Hindi, महादेवी वर्मा,mahadevi verma poems in hindi,mahadevi verma,महादेवी वर्मा की कविता,mahadevi verma hindi poems,mahadevi verma poems,hindi poem,hindi kavita,महादेवी वर्मा गीत,mahadevi verma poem’s in hindi,mahadevi verma महादेवी वर्मा,mahadevi verma ki kavita,hindi poetry,hindi poems,mahadevi poem’s in hindi,mahadevi verma poetry in hindi,mahadevi verma ki poem in hindi class 11,mahadevi verma kavita,महादेवी वर्मा की कविताएँ

    close