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पतंग पर कविता, Kite Poem in Hindi

    पतंग पर कविता, Kite Poem in Hindi

    उड़ चली गगन छूने पतंग “सीताराम गुप्त”

    तितली से लेकर पर उधार

    मुर्गे की कलगी सिर सँवार

    बंदर की लम्बी लगा पूंछ

    मछली सी करती जल विहार

    इसकी विचित्र है चाल ढाल

    है बड़े निराले रंग ढंग उड़ चली…

    राकेट से बहुत पुरानी है

    यह नील गगन की रानी है

    सूरज को छूना चाह रही

    हिम्मतवाली, सैलानी है

    इसके तन में कितनी फुर्ती

    इसके मन में कितनी उमंग

    उड़ चली गगन छूने पतंग

    खींचो तो यह तन जाती है

    नागिन सी शीश उठाती है

    पर चुटकी के संकेतों से

    यह ठुमठुम नाच दिखाती है

    लो वे आईं दो चार और

    नीली, पीली, जम गया रंग

    उड़ चली गगन छूने पतंग

    वह लड़ा पेंच, वह कटा दांव

    वह बूढी किया उसने बचाव

    जामुनी पास में देख लाल

    जल्दी मत आना, न देखना, न डरना

    दो चार कटीं, मच गया शोर

    अंबर में होने लगी जंग

    उड़ चली गगन छूने पतंग

    बादल से बातें करती है

    बगुलों के साथ विचरती है

    हिरणी सी इन्द्रधनुष वाले

    आँगन में कूदी फिरती है

    कितनी भी ऊँची चढ़ जाए

    फिर भी रहती धरती के संग

    उड़ चली गगन छूने पतंग

     

    पतंग और डोरी

    आसमान की रानी हूँ मैं

    घूम घूम कर कहे पतंग

    डोरी तुझको सैर कराऊं

    झूम झूम कर कहे पतंग

    मैं डोरी ही तुझे उड़ाऊ

    भूल न जाना अरी पतंग

    बिन मेरे तू कब उड़ सकती

    मत इतरा तू अरी पतंग

    मत झगड़ों यों आपस में तुम

    चुनमुन बोला सुनो पतंग

    इक दूजे के बिना अधूरे

    खाली डोरी पतंग

    हवा उड़ाए तुम दोनों को

    सुन री डोरी, सुनों पतंग

    अंबर में ना चले हवा तो

    कब उड़ पाए डोर पतंग?

    चुनमुन ने समझाया उनको

    शरमाई तब बड़ी पतंग

    नजर झुका ली डोर ने भी

    छोड़ा झगड़ा बदला रंग

     

    उस पतंग को खूब छ्काएं

    आँखों की कसरत करने को

    आओ चलो पतंग उड़ाएं

    इसे काटने आए जो भी

    उस पतंग को खूब छ्काएं

    थोड़ा सा ऊपर ले जाकर

    थोड़ा नीचे इसे घुमाएं

    दाएं से फिर बाएँ लाकर

    ठुमके देकर इसे नचाएँ

    पेंच लड़ाने की उलझन से

    इसको सदा बचाते जाएं

    आओ चलो, पतंग उड़ाएं

    जीरा मिर्ची मिले कुरकुरे

    आलू के पापड़ भुनवाएं

    इमली अदरक लहसुन वाली

    धनिए की चटनी पिसवाएं

    महक रही घी की खुशबू से

    बैठ धूप में तहरी खाएं

    आओ चलो पतंग उड़ाएं

     

    पतंग

    देखो देखो उड़ी पतंग

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी पेड़ पर कभी ढेर पर

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी रुक जाए कभी उड़ जाए

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी चिढ़ाती कभी मनाती

    देखो देखो उडी पतंग

    कभी तार पर कभी धार पर

    देखो देखो उडी पतंग

    कभी अमित की कभी ललित की

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी हँसाए कभी रुलाए

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी ढील पर कभी मील पर

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी चाँद पर कभी मांद पर

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी लहराती कभी बहलाती

    देखो देखो उड़ी पतंग

    कभी काटती कभी भागती

    देखो देखो उड़ी पतंग

     

    पतंग रानी “मधु माहेश्वरी”

    पतंग रानी पतंग रानी

    झट से तुम उड़ जाती हो

    रंग बिरंगी लाल पीली

    आसमान से इठलाती हो

    धूप से तुम तनिक न डरती

    वर्षा में तुम गल जाती हो

    बच्चों के मन को हर्षाती

    बड़ों को भी तुम लुभाती हो

    सुबह शाम तुम खूब इतराती

    आसमान में धूम मचाती हो

    एक दूजे से पेच लड़ाती

    वह कट्टा कह चिढ़ाती हो

     

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