Skip to content

Hindi Poems on Nature, Nature Par Hindi Kavita

    Hindi Poems on Nature, Nature Par Hindi Kavita

    कविता 1 – प्रकृति पर हिंदी कविता

    प्रकृति से मिले है हमे कई उपहार

    बहुत अनमोल है ये सभी उपहार

    वायु, जल, वृक्ष आदि इनके ही नाम हैं

    नहीं चुका सकते हम इनके दाम

    वृक्ष जिसे हम कहते है

    कई नाम इसके होते है

    सर्दी गर्मी बारिश ये सहते है

    पर कभी कुछ नहीं ये कहते है

    हर प्राणी को जीवन देते

    पर बदले में ये कुछ नहीं लेते

    समय रहते यदि हम नहीं समझे ये बात

    मूक खड़े इन वृक्षो में भी होती है जान

    करने से पहले इन वृक्षो पर वार

    वृक्षो का है जीवन में कितना है उपकार

    कविता 2 – प्रकृति पर हिन्दी कविता

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है,

    मार्ग वह हमें दिखाती है।

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

    नदी कहती है’ बहो, बहो

    जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।

    जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,

    पूर्णता जीवन की पाओ।

    विश्व गति ही तो जीवन है,

    अगति तो मृत्यु कहाती है।

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

    शैल कहतें है, शिखर बनो,

    उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।

    ठोस आधार तुम्हारा हो,

    विशेषज्ञता समर्थन है।

    रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,

    उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

    वृक्ष कहते हैं खूब फलो,

    दान के पथ पर सदा चलो।

    सभी को दो शीतल छाया,

    पुण्य है सदा काम आया।

    विनय से सिद्धि सुशोभित है,

    अकड़ किसकी टिक पाती है।

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

    यही कहते रवि शशि चमको,

    अस्थमा की कर चमक प्राप्त करें।

    अंधेरे से संग्राम करो,

    न खाली बैठो, काम करो।

    काम जो अच्छे कर जाते,

    याद उनकी रह जाती है।

    प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

     

    कविता 3 – प्रकृति पर हिंदी कविता

    जब भी घायल होता है मन

    प्रकृति रखती उस पर मलहम

    पर उसे हम भूल जाते हैं

    ध्यान कहाँ रख पाते हैं

    उसकी नदियाँ, उसके सागर

    उसके जंगल और पहाड़

    सब हितसाधन करते हमारा

    पर उसे दें हम उजाड़

    योजना कभी बनाएँ भयानक

    कभी सोच लें ऐसे काम

    नष्ट करें कुदरत की रौनक

    हम, जो उसकी ही सन्तान

     

    कविता 4 – प्रकृति पर हिंदी कविता

    हरी हरी खेतो में बरस रही ह बूंदे,

    खुशी खुशी से आया है सावन,

    भर गया खुशियों से मेरा आंगन।

    ऐसा लग रहा है जैसे मन की कलियां खिल गई,

    ऐसा आया है बसंत,

    लेकर फूलों की महक का जशन।

    धूप से प्यासे मेरे तन को,

    बूंदों ने भी ऐसी अंगड़ाई,

    उछल कूद रहा है मेरा तन मन,

    लगता है मैं हूं एक दामन।

    यह संसार है कितना सुंदर,

    लेकिन लोग नहीं हैं उतने अकलमंद,

    यही है एक निवेदन,

    मत करो प्रकृति का शोषण।

     

    Poem 5 – Prakarti Par Kavita –
    सुन्दर रूप इस धरा का

    सुन्दर रूप इस धरा का,

    आँचल जिसका नीला आकाश,

    पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,2

    उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज

    नदियों-झरनो से छलकता यौवन

    सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार

    खेत-खलिहानों में लहलाती फसले

    बिखराती मंद-मंद मुस्कान

    हाँ, यही तो हैं,……

    इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप

    प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार

     

    Poem 6 – Parkarti Par Hindi Poem – मैं प्रकृति हूँ

    मैं प्रकृति हूँ

    ईश्वर की उद्दाम शक्ति और सत्ता का प्रतीक

    कवियों की कल्पना का स्रोत

    उपमाओं की जननी

    मनुष्य सहित सभी जीवों की जननी

    अभिभावक

    और अन्त में स्वयं मे समाहित करने वाली।

    मैं प्रकृति हूँ

    उत्तंग पर्वत शिखर

    वेगवती नदियाँ

    उद्दाम समुद्र

    और विस्तृत वन-कानन मुझमें समाहित।

    मैं प्रकृति हूँ

    शरद, ग्रीष्म और वर्षा

    मुझमें समाहित

    सावन की बारिश

    चैत की धूप

    और माघ की सर्दी

    मुझसे ही उत्पन्न

    मुझसे पोषित।

    मैं प्रकृति हूँ

    मैं ही सृष्टि का आदि

    और अनन्त

    मैं ही शाश्वत

    मैं ही चिर

    और मैं ही सनातन

    मैं ही समय

    और समय का चक्र

    मैं प्रकृति हूँ।

    कविता 7 – प्रकृति कविता हिंदी में –
    वातावरण पर कविता

    हे भगवान, यह धरती बहुत खूबसूरत है

    नए – नए और तरह – तरह के

    एक नही कितने ही अनेक रंग !

    कोई गुलाबी कहता ,

    तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल

    तपती गर्मी मैं

    हे ईस्वर , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स

    सीतल हवा बहाते

    खुशी के त्यौहार पर

    पूजा के वक़्त पर

    हे ईस्वर , तुम्हारा पीपल ही

    तुम्हारा रूप बनता

    तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी

    नील अम्बर को सुनेहरा बनाते

    तेरे चौपाये किसान के साथी बनते

    हे ईस्वर तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी

    कविता 8 –
    प्रकर्ति पर कविता – प्रकर्ति की पुकार

    हे मानव पापी बनकर तुम,

    क्योँ इतना उधम मचाते हो,

    सब कुछ तुमको अर्पण करने वाली,

    मुझ प्रकृति को अपने कुकर्मों से सताते हो।

    जिसने पेड़-पौधे, दिए तुझे,

    शुद्ध प्राण वायु जीवन के लिए,

    क्यों काट रहे इनको निरन्तर तुम,

    लालच के पैसे पाने के लिए।

    वो हवा जो तुमको जीवन देती,

    जो बनी तेरे रग रग में ताज़गी भर देने के लिए,

    क्यों प्रदूषित कर रहे हो विस्फोटकों,

    रसायनों, फ़ैक्टरियों के धुंए द्वारा,

    हर जीव का दम घुटने के लिए।

    नदियों, तालाबों, वर्षा के द्वारा,

    अमृत समान पानी भी दिए,

    जो कभी ना मना करें तुम्हारी प्यास बुझाने से,

    क्योँ प्रदूषित कर रहे हो इनको,

    असहाय जानवरों के खूनों और

    फ़ैक्टरियों के गन्दे नाले से।

    जो आग दिए भोजन पकाने के लिए,

    उनसे जंगलों को क्योँ जलाते हो,

    इन्ही जंगलों में रह रह कर तुम,

    सभ्य बने ये सत्य क्योँ भूल जाते हो।

    वो मिट्टी जो तुम्हारे भोजन उत्पादन का स्रोत है,

    उनमें जैविक की जगह रासायनिक उर्वरक मिलाते हो,

    शायद तुमको मालूम नहीं, जलती है धरती इनसे,

    तुम स्वयं ही अपने भोजन में ज़हर मिलाते हो।

    फलों और सब्जियों में हानिकारक

    इंजेक्शन और केमिकल द्वारा,

    वृद्धि दर और पकने की प्रक्रिया बढ़ाते हो,

    खुद भी मौत का दाना चुगते,

    औरों को भी खिलाते हो।

    असहाय पक्षियों और जानवरों को,

    हानिकारक दवाओं और यातनाओं द्वारा,

    समय से पहले विकसित कराते हो,

    तुम्हारे पूर्वजों ने जिनकी पूजा की,

    तुम क्यों उनका ही लहू बहाते हो।

    हे मानव पापी बनकर तुम,

    क्योँ इतना उधम मचाते हो,

    सब कुछ तुमको अर्पण करने वाली,

    मुझ प्रकृति को अपने कुकर्मों से सताते हो।

     

    Hindi Poems on Nature, Nature Par Hindi Kavita, poem on nature in hindi,hindi poem on nature,poem on nature,hindi kavita,nature poem in hindi,poem on environment in hindi,hindi poem,hindi poetry on nature,hindi kavita on nature,hindi poem on environment,nature poem,nature,prakriti par kavita in hindi,prakriti par kavita hindi mein,hindi kavita on prakriti,hindi poem about nature,prakriti kavita | poem on nature in hindi,hindi poetry on environment,environment poem in hindi,poem on environment

    close