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क्रिसमस कब और क्यों मनाया जाता है पूरी कहानी 2022

    क्रिसमस कब और क्यों मनाया जाता है पूरी कहानी 2022

    Christmas Kyu Manaya Jata Hai: दुनिया में कई सारी धर्म है और धर्म चाहे कोई भी हो, त्यौहार का महत्व सभी धर्मों में एक जैसा ही होता है। क्योंकि त्योहार एक ऐसा दिन है, जिस दिन परिवार के पूरे सदस्य एवं रिश्तेदार एक दूसरे के करीब आते हैं।

    यह दिन लोगों के लिए खास होता है क्योंकि इस दिन लोग कामकाज को भूल कर अपने परिवार के साथ सेलिब्रेट करते हैं। सभी धर्मों में कई सारे प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं। ईसाइयों का भी एक प्रमुख त्योहार क्रिसमस है। क्रिसमस का त्यौहार ईसाइयों के लिए उतना ही मायने रखता है, जितना हिंदुओं के लिए दिवाली एवं मुसलमानों के लिए इद।

    वैसे सभी त्योहार को मनाने की परंपरा अलग-अलग होती है एवं प्रत्येक त्योहार को मनाने के पीछे कुछ ना कुछ प्रमुख कारण भी होता है। क्रिसमस का त्यौहार भी ईसाई लोग बहुत ही अलग ढंग से मनाते हैं। साथ ही इस त्यौहार को मनाने के पीछे भी एक प्रमुख कारण है, जिसके बारे में हम आज के इस लेख में विस्तार पूर्वक जानेंगे।

    क्रिसमस कब मनाया जाता है? (Christmas Kab Manaya Jata Hai)

    क्रिसमस का त्योहार हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है और इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों का मौसम होता है। क्रिसमस का त्यौहार केवल 1 दिन का नहीं बल्कि 12 दिन का होता है। क्रिसमस के जश्न की शुरुआत 25 दिसंबर यानी कि ईसाई धर्म की स्थापना करने वाले प्रभु यीशु के जन्मदिन से होती है और लगभग 3 जनवरी तक यह जश्न चलती है और हर दिन कुछ ना कुछ खास होता है।

    वैसे प्रभु यीशु का जन्म बेथलहम में युसुफ और मेरी के यहां हुआ था और उनके जन्म का महीना और तारीख किसी को भी ज्ञात नहीं है। लेकिन चौथी शताब्दी के शुरुआती दशक तक पश्चिमी ईसाई चर्च ने 25 दिसंबर को प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में घोषित किया। उसके बाद इस तिथि को पूरी दुनिया ने अपना लिया। यहां तक कि 1870 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्रिसमस को एक संघीय अवकाश भी घोषित किया।

    यह त्यौहार ईसाइयों के लिए धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। वैसे सभी त्योहार की तरह क्रिसमस के दिन भी लोग एक दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं और यह त्यौहार ना केवल ईसाइयों तक सीमित रह गया है बल्कि लगभग अन्य धर्म के लोग भी इस त्यौहार को अपना चुके हैं। भारत में भी हिंदू बच्चे इस त्यौहार को मनाते हैं और विद्यालयों, कॉलेजों में इस दिन का अवकाश रहता है।

    क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? (Christmas Kyu Manaya Jata Hai)

    दुनिया में चाहे कोई भी धर्म हो, उनसे जुड़े महत्वपूर्ण त्योहारों को मनाने के पीछे कुछ ना कुछ महत्वपूर्ण कारण जरूर होता है। ईसाइयों के प्रमुख त्योहार क्रिसमस को मनाने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण है।

    माना जाता है बहुत पहले समय की बात है जब नाजरेथ नामक एक जगह पर मेरियम (मैरी) नाम की एक महिला रहती थी। मैरी बहुत अच्छे दिल के इंसान थी, वह दूसरे की भी सहायता करती थी और बहुत ही मेहनत किया करती थी।

    वह युसूफ नामक एक आदमी से प्यार भी करती थी, वह भी बहुत अच्छे दिल का आदमी था। ईश्वर मैरी से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए थे। जिस कारण 1 दिन ईश्वर ने ग्रेबियल नामक एक परी को एक संदेश के साथ मेरियम के पास भेजा।

    मेरियम के पास जाकर उस परी ने ईश्वर के संदेश को बताते हुए कहा कि ईश्वर लोगों की सहायता के लिए धरती पर एक पवित्र आत्मा भेजना चाहते हैं और वह आत्मा तुम्हारे बेटे के रूप में इस दुनिया में पैदा होगा, जिसका नाम तुम्हें यीशु रखना है।

    मेरी परी की उस बात से बहुत घबरा जाती है। क्योंकि वह अब तक अविवाहित थी। ऐसे में उसे चिंता सताने लगती है कि अविवाहित होने पर वह एक बालक को कैसे जन्म दे सकती है। तो उस परी ने कहा कि तुम्हें यह सब चीज की चिंता नहीं करनी है, ईश्वर की तरफ से यह चमत्कार होगा। तुम्हारा चचेरा भाई एलिजाबेथ जिसका कोई बच्चा नहीं है, वह जॉन बैपटिस्ट नामक एक बच्चे को जन्म देंगे और वही यीशु के जन्म के लिए रास्ता तैयार करेंगे।

    उसके बाद मेरी अपने चचेरे भाई एलिजाबेथ से मिलने चली गई। वहां से वह 3 महीने के बाद आई तब तक वह गर्भवती भी हो चुकी थी। युसूफ उसके लिए चिंतित था लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि वह गर्भवती हो चुकी है तो उसने मेरियम से विवाह रचाने का विचार छोड़ दिया।

    लेकिन उसी रात जब युसूफ सो रहा था तब उसके सपने में एक परी आती है, जो ईश्वर की इच्छा के बारे में उसे सब कुछ बताती है। जिसके बाद अगली सुबह युसूफ फैसला लेता है कि वह मेरी से विवाह कर लेगा। उसके बाद वह मेरी को अपनी पत्नी बना लेता है और फिर वह दोनों बेथहलम चले जाते हैं।

    लेकिन वहां जब पहुंचते हैं तो देखते हैं कि वहां बहुत भीड़ होती है और वहां रहने के लिए कोई जगह नहीं होती है। जिसके बाद वे वहीं पर एक जानवरों के खलिहान में बसेरा डाल देते हैं और वहीं पर मेरी ईश्वर के पुत्र यीशु को जन्म देती है।

    यीशु के जन्म के समय उस रात एक उज्जवल तारे का निर्माण होता है, जो यीशु के जन्म का संकेत होता है। दुनिया के बुद्धिमान लोग इस संकेत को समझ चुके होते हैं, जिसके कारण वे उस तारे के जरिए यीशु के जन्म स्थान तक पहुंचने की कोशिश करते हैं और उस बच्चे एवं मेरी के लिए उपहार भी लेकर आते हैं।

    बेथहलम के अन्य हिस्सों में भी जहां चरवाहे जानवरों को चरा रहे थे, उन्हें स्वर्गदूत के द्वारा इस बालक के जन्म की अच्छी खबर दी जाती है और इस तरीके से पूरी दुनिया में इस पवित्र आत्मा का स्वागत गीत गाकर किया जाता है। चारों तरफ माहोल आनंदमय हो जाता हैं। इस तरीके से उसी दिन से इस दिन को लोग त्योहार के रूप में मनाने लगते हैं।

     

    क्रिसमस डे कैसे मनाया जाता है?

    क्रिसमस का त्योहार ईसाई समुदाय के लिए बहुत बड़ा त्यौहार होता है। इस त्यौहार की शुरुआत कुछ दिन पहले से ही हो जाती हैं। क्रिसमस आने से पहले ही ईसाई लोग अपने घरों एवं चर्च की साफ सफाई करते हैं। इस दिन क्रिसमस ट्री को सजाने के लिए लोग शॉपिंग करते हैं एवं उपहार खरीदते हैं। जिस दिन क्रिसमस होता है, उस दिन सबसे पहले लोग एक दूसरे को क्रिसमस त्योहार की बधाई देते हैं।

    आज के सोशल मीडिया के समय में लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए एक-दूसरे को क्रिसमस के बधाई संदेश भेजते हैं और एक दूसरे से खुशियां बांटते हैं। इस दिन क्रिसमस ट्री को सजाने का रिवाज है। इसीलिए इस दिन लोग सदाबहार पेड़ को कैंडी केन, रंगीन रोशनी, मोमबत्ती, झालर, तारे इत्यादि से सजाते हैं।

    इस दिन सभी लोग अपने घरों पर क्रिसमस केक बनाते हैं, जिसे सभी परिवार जन साथ में बैठकर खाते हैं। सभी माता-पिता अपने बच्चों को उनके मनपसंद उपहार देते हैं। इस दिन लोग गरीब और जरूरतमंद लोगों को भी भोजन, वस्त्र उपहार स्वरूप देते हैं।

    इस दिन चर्च में भी काफी ज्यादा उत्सव का माहौल रहता है। चर्च को पूरे तरीके से सजा दिया जाता है, यीशु के सामने लोग मोमबत्ती जलाकर प्रार्थना करते हैं। इस दिन चर्च में प्रार्थना सभा आयोजित होती है। सभी लोग इकट्ठा होकर कैरल गाते हैं और जीवन की सुख शांति के लिए यीशु से प्रार्थना करते हैं।

    क्रिसमस त्योहार का प्रतीक

    जिस तरीके से दिवाली में पटाखे, फुलझड़ी, दीये दिवाली के प्रतीक होते हैं और होली में पिचकारी प्रतीत होता है, ठीक उसी तरह क्रिसमस के दिन भी कुछ खास चीजों से इस त्यौहार को अनूठी पहचान मिलती है। क्रिसमस के दिन घंटी, केक, क्रिसमस ट्री, उपहार, मोमबतियां इत्यादि क्रिसमस त्योहार का प्रतीक होती है और हर एक वस्तु का बहुत महत्व होता है।

    क्रिसमस के दिन घंटी को सकारात्मक का प्रतीक माना जाता है। क्रिसमस के दिन सभी ईसाई लोग घंटियां बजाकर इस त्यौहार के उल्लास को और भी ज्यादा बढ़ाते हैं और लोगों में उमंग पैदा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन घर में घंटियां सजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा भर जाती है।

    क्रिसमस के दिन केक काटने का भी रिवाज है। हर एक त्योहारों में कुछ ना कुछ मीठा होता है, ठीक उसी तरह क्रिसमस में भी केक जरूरी होता है। इस दिन सभी ईसाई लोग अपने घरों में केक बना कर इसे खाते हैं और ईसा मसीह के जन्मदिन को आनंद से मनाते हैं।

    क्रिसमस के दिन उपहार भी बहुत मायने रखता है। इस दिन सभी ईसाई लोग एक दूसरे को उपहार देते हैं और खुशियां बांटते हैं। इस दिन गरीब और जरूरतमंद बच्चों को अन्न, वस्त्र और मिठाई का उपहार बांटा जाता है और यीशु के जन्मदिन को धूमधाम से मनाया जाता है।

    क्रिसमस के दिन सभी लोग ईसा मसीह के सामने मोमबत्ती जलाकर अपने जीवन में प्रकाश रहने की कामना करते हैं। इस दिन अलग-अलग रंगों की मोमबत्तियां जीवन में ढेर सारी खुशियां एवं सफलता का प्रतीक होता है। इसीलिए इस दिन लोग अपने घरों को भी मोमबत्ती से सजा देते हैं।

    इन सब चीजों के अतिरिक्त क्रिसमस के दिन क्रिसमस ट्री भी क्रिसमस का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह क्रिसमस त्योहार की पहचान होती है और क्रिसमस के दिन सभी ईसाई लोग अपने घरों पर इस पेड़ को लाते हैं और इसे सजाते हैं। यह सदाबहार पेड़ है, जो हमेशा हरा भरा रहता है।

    इस पेड़ के जरिए लोग भगवान यीशु से सदाबहार पेड़ के भांति अपने बच्चों की लंबी आयु की प्रार्थना करते हैं। क्रिसमस के दिन लोग क्रिसमस ट्री को तारों से सजाते हैं। यह तारे बेथलेहम के पहले सितारे का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उस रात को पैदा हुए थे जब यीशु प्रभु का जन्म हुआ था।

     

    क्रिसमस पर संत निकोलस खास क्यों हैं?

    संत निकोलस और प्रभु यीशु के जन्म का कोई भी सीधा संबंध नहीं है। लेकिन उसके बावजूद यीशु के जन्मदिन पर 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार बिना संता क्लॉज के अधूरा रहता है। इस त्यौहार में सेंटा क्लोज एक अहम हिस्सा बने हुए हैं। क्योंकि सेंटा क्लोज की लाल रंग की ड्रेस इस त्यौहार की पहचान बन चुकी है और इस त्यौहार के दिन सभी लोग सेंटा क्लोज के लाल रंग के कपड़ों के गेटप में तैयार होते हैं।

    संत निकोलस इस दिन काफी ज्यादा प्रख्यात है क्योंकि ईसाई लोगों के बच्चों की धारणा होती है कि क्रिसमस के दिन घर के बाहर जुराब लटकाने से सेंटा क्लॉज उनके घर पर आएंगे और उनके मनपसंद उपहार को उनके जुराबे में भर देंगे। यह धारणा इतनी ज्यादा लोकप्रिय हो गई है कि लगभग हर देश में जहां-जहां पर इस त्यौहार को मनाया जाता है सभी बच्चे सेंटा क्लोज को बहुत चाहते हैं।

    बात करें सेंटा क्लोज के इतिहास की तो सेंटा क्लोज का जन्म जीसस की मौत के 280 साल बाद यानी की तीसरी सदी में मायरा में हुआ था। कहा जाता है कि संत निकोलस बहुत ही अमीर परिवार से थे लेकिन उन्होंने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था, जिस कारण इन्हें गरीब एवं अनाथ बच्चों से बहुत ज्यादा लगाव था।

    ये जीसस के प्रति बहुत आस्था रखते थे, जिस कारण यह बड़े होकर ईसाइयों के पादरी भी बने और बिशप भी बने। 25 दिसंबर यानी कि जीसस के जन्मदिन पर हमेशा संत निकोलस गरीब बच्चों को उपहार बाटां करते थे, जिसके बाद क्रिसमस के दिन गिफ्ट देने का प्रचलन बन गया।

    हालांकि बहुत से लोग सेंटा क्लोज को भगवान यीशु के द्वारा भेजा गया दूत भी मानते हैं। तो वहीं कुछ लोग सेंटा क्लोज को यीशु के पिता भी मानते हैं और कहते हैं कि वह अपने बच्चे के जन्मदिन पर अन्य बच्चों को गिफ्ट देते आ रहे हैं। हालांकि कारण जो भी रहा हो, लेकिन आज के समय में सेंटा क्लोज सभी बच्चों के फेवरेट बन चुके हैं और क्रिसमस त्योहार की पहचान है।

     

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