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10 Best Moral Stories for Child in Hindi

    10 Best Moral Stories for Child in Hindi

    सूर्य और वायु New Moral Stories for Child in Hindi

    एक समय की बात है। एक दिन सूर्य और वायु में अचानक विवाद उठ गया कि उन दोनों में अधिक शक्तिशाली कौन है? वायु का कहना था कि वह अधिक शक्तिशाली है। वह चाहे तो किसी को भी हिलाकर रख सकती है।

    उसके प्रकोप से कोई भी बचा नहीं रह सकता। परंतु सूर्य, हवा की बात से सहमत नहीं था। उसका मानना था कि शक्ति में उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती, अत: वही अधिक शक्तिशाली है।

    वे दोनों अभी आपस में लड़ ही रहे थे कि दोनों की दृष्टि एक व्यक्ति पर पड़ी। वह व्यक्ति अपने शरीर पर दुशाला लपेटे हुए वहाँ से निकल रहा था। अचानक सूर्य के मन में एक विचार आया। वह मुस्कुरा कर बोला,

    “अब हम इस बात का हल ढूंढ सकते हैं कि हम में से अधिक शक्तिशाली कौन है?” “वह कैसे?”, वायु ने पूछा। सूर्य बोला, “वह देखो, उस व्यक्ति को। वह दुशाला ओढ़े हुए जा रहा है।

    हम दोनों में से जो भी इस व्यक्ति के शरीर पर से दुशाला उतरवा सकेगा, वही अधिक शक्तिशाली होगा। बोलो, मंजूर है।” वायु को यह बात जँच गई परंतु उसने सूर्य के सम्मुख एक शर्त रखी कि पहले दुशाला उतरवाने का प्रयास वह करेगी।

    सूर्य ने सहर्ष ही उसकी बात मान ली। । वायु धीमे-धीमे बहने लगी, उसे इस बात की पूरी आशा थी कि वह व्यक्ति गौशाला उतार कर शीतल वायु का आनंद लेगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। व्यक्ति पहले की तरह ही दुशाला को ओढ़े रहा।

    अपना पहला प्रयास विफल होता देखकर वायु क्रोधित हो उठी और अत्यंत उग्रता से बहने लगी। यह देखकर उस व्यक्ति ने दुशाला और कसकर ओढ़ लिया वायु अपने इस प्रयास में भी असफल रही। अब सूर्य की बारी थी।

    पहले वह शांत भाव से चमकने लगा। इतनी तेज हवा के बाद सूर्य की हल्की किरणों के ताप से उस व्यक्ति को राहत मिली तो उसने दुशाले पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली कर दी। फिर धीरे-धीरे सूर्य ने अपनी गर्मी बढ़ानी शुरू की।

    व्यक्ति को गर्मी महसूस होने लगी। फलस्वरूप व्यक्ति ने अपने शरीर से दुशाला उतार दिया। यह देखकर वायु लज्जित हो गई और उसने सूर्य की शक्ति को अपने से महान मान लिया। इस प्रकार वायु और सूर्य की शक्ति का परीक्षण हो सका और अहंकारी हवा का घमंड चूर-चूर हो गया।

     शिक्षा: अधिकारी की सदा पराजय होती है।

     

    बूढ़ा गरुड़ Latest Moral Stories for Child in Hindi

    एक बार बड़ के विशाल वृक्ष पर एक बूढ़ा व दृष्टिहीन गरुड़ रहता था। उस वक्ष पर और भी बहुत सारे पक्षियों के घोंसले थे। चूंकि गरुड़ दृष्टिहीन था इसलिए वह अपना भोजन नहीं जुटा पाता था। इसी कारण वृक्ष पर जो दूसरे पक्षी रहते थे.

    वे सहानुभूति और दयावश उसके भोजन का प्रबंध कर देते थे। बदले में बुढा गरुड़ पक्षियों की अनुपस्थिति में उनके बच्चों की रखवाली करता था। पक्षी अपने बच्चों को गरुड़ के पास छोड़कर निश्चित हो जाते थे।

    उन्हें उस पर पूरा भरोसा था। एक बार कहीं से एक बिल्ली उस वृक्ष पर आ गई। यह देखकर पक्षियों के बच्चे भयभीत हो गए और जोर-जोर से चीखने लगे। बूढ़े गरुड़ को तुरंत खतरे का आभास हो गया। उसने कड़क कर पूछा,

    “कौन है वहां?” “मैं बिल्ली हूँ श्रीमान!”, बिल्ली ने उत्तर दिया। “खबरदार, जो तुम वृक्ष पर चढ़ी। दफा हो जाओ यहाँ से, नहीं तो मुझे मजबूरन तुम्हें सबक सिखाना पड़ेगा।”, गरुड़ ने उसे धमकाया। पहले तो बिल्ली डर गई।

    फिर वह चापलूसी से बोली, “श्रीमान गरुड़, मैं तो तीर्थ यात्रा पर निकली हुई हूँ। मैं बहुत से तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर चुकी हूँ और अनेक साधु-संतों से मिल चुकी हूँ। आप भी निःसन्देह किसी महात्मा से कम नहीं लगते।

    कृपया मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं आपके चरण स्पर्श कर सकँ।” बूढ़ा गरुड़ बिल्ली की झूठी प्रशंसा में फँस गया और अपने आप को वास्तव में संत-महात्मा समझने लगा। उसने बिल्ली को अपने चरण छूने की आज्ञा दे दी।

    बिल्ली तुरंत वृक्ष पर चढ़ गई और उसने एक पक्षी के बच्चे को मार दिया। उसने गरुड़ के चरण स्पर्श किए तथा पक्षी के बच्चे को गरुड़ के चरणों के निकट ही खाया, जिसे दृष्टिहीन गरुड़ देख नहीं पाया।

    अब तो यह बिल्ली का रोज का काम हो गया। वह रोज आती और एक बच्चे को अपना शिकार बनाती। उस वृक्ष के पक्षियों को जब अपने-अपने बच्चे कम लगने लगे तो उन सबने मिलकर एक सभा की।

    सभा में निर्णय लिया गया कि इस विषय में गरुड से बात की जाए। अत: सभी मिलकर गरुड़ से मिलने पहुँचे। उन्होंने गरुड़ के आस-पास पंख और हड्डियों को बिखरे हुए देखा तो उन्हें गरुड़ की नीयत पर शक हुआ।

    वे समझे कि गरुड़ ने ही उनके बच्चों को मारा है। फिर तो उन्होंने आव देखा ना ताव और सभी ने मिलकर गरुड़ पर आक्रमण कर उसका अंत कर दिया। इस प्रकार बेचारे गरुड़ को झूठी प्रशंसा के फेर से अपनी जान गँवानी पड़ी।

     शिक्षाः चापलूसों से सावधान रहने में ही भलाई है।

     

    चोर और छड़ी Amazing Child Stories in Hindi with Moral

    एक बार एक राज्य में एक किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था। उसके पास अन्य किसानों की तरह कई बीघा खेत तो न थे बस, ले देकर एक छोटा-सा खेत था। पर वह उस खेत में हर साल मेहनत से मक्के की खेती करता था,

    जो कि केवल उसके परिवार के भरण-पोषण के काम ही आ पाती थी। एक बार की बात है। बैसाख का महीना था और मक्के की फसल पक कर तैयार थी। इस बार फसल अन्य सालों की अपेक्षा बढ़िया हुई थी।

    बढ़िया फसल देखकर किसान की खुशी का ठिकाना ना रहा। वह मन ही मन फसल को अगले दिन काटने की योजना बना कर घर लौट आया। अगले दिन जब किसान फसल काटने के लिए खेत पर पहुँचा तो वह भौंचक्का रह गया।

    उसका खेत खाली पड़ा था। उसकी सारी फसल रातों-रात चोरी हो गई थी। किसान भारी मन से घर लौट आया। अगले दिन लाचार हो कर वह किसान राजदरबार में पहुँचा,

    वहाँ उसने राजा को अपनी व्यथा सुनाई और चोर को पकड़ने की प्रार्थना की। राजा ने शांति से किसान की व्यथा पर विचार किया और फिर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे राज्य के सभी किसानों को पकड़ कर दरबार में ले आएँ।

    जब सभी किसान दरबार में उपस्थित हो गए तो राजा ने उन्हें चोरी के विषय में बताने के बाद कहा, “मैं आप सभी को एक ही नाप की लकड़ी की छड़ी दूँगा जिसको आप सभी अपने साथ अपने घर ले जाएंगे।

    यदि आप में से किसी के घर में फसल का चोर होगा तो उसकी छड़ी अपने आप दो अंगुल बढ़ जाएगी।” इसके बाद राजा ने सभी किसानों को अपने घर लौट जाने का आदेश दिया। उनमें से जो किसान चोर था, उसे चिंता सताने लगी।

    उसने मन ही मन सोचा, ‘कल तक तो ये जादुई छड़ी दो अंगुल बढ़ जाएगी। फिर छड़ी नापने के बाद यह सिद्ध हो जाएगा कि मैंने ही फसल चुराई है।

    यदि मैं इसे दो अंगुल काट दूँ तो कल दरबार में इस छड़ी का नाप बाकी छड़ियों के बराबर ही होगा और फिर मैं पकड़ा भी नहीं जाऊँगा।’ ऐसा सोचकर उसने छड़ी को दो अंगुल छोटा कर दिया।

    अगले दिन सभी किसान राजदरबार में एकत्रित हुए। उन सभी की छड़ियों को नापा गया तो एक छड़ी और छड़ियों की तुलना में दो अंगुल छोटी पाई गयी।

    राजा समझ गया कि चोर कौन है। राजा ने चोर को कारावास की सजा सुनाई और उसे आदेश दिया कि वह चोरी की सारी फसल लौटा दे। राजा के न्याय की सभी ने प्रशंसा की।

    शिक्षा: चोर की दाढ़ी में तिनका

     

    बुद्धिहीन सियार Unique Moral Stories for Child in Hindi

    एक बार एक सियार भोजन की खोज में भटक रहा था। भटकते-भटकते वह नदी के किनारे पहुँचा। उसे आशा थी कि कोई न कोई जानवर पानी पीने के लि नदी तट पर आएगा तब मैं उसे पकड़ लूँगा और खाकर अपनी भूख शांत कर लँगा।

    सियार झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठ गया। उस नदी में बहुत से कछए रहते थे। कुछ ही समय बीता था कि कुछ कछुए पानी से बाहर निकल कर नदी के किनारे पर टहलने लगे।

    अपने सामने कछुओं को टहलता देखकर सियार के मँह में पानी आ गया। वह दबे पाँव उनकी तरफ बढ़ने लगा। कछुए इस बात से बेखबर थे। सियार धीरे-धीरे चलकर कछुओं के पास पहुँचा ही था कि उसे जोर से छींक आ गई।

    छींक की आवाज सुनते ही कछुओं में सनसनी फैल गई और वे सभी हड़बड़ा कर नदी की ओर भागे परंतु उनमें से एक कछुआ थोड़ा पीछे रह गया। इससे पहले कि वह नदी में जा पाता, सियार ने छलाँग लगा कर उसे पकड़ लिया।

    सियार ने कछुए को अपने पैरों के नीचे दबोचा और उसका मास खाने का प्रयास करने लगा। परंतु सियार कछुए को खाने में असमर्थ रहा। चतुर कछुआ पहले ही अपने कठोर खोल में दुबक चुका था।

    सियार ने बहुत प्रयास किया परंतु वह कछुए के खोल को तोड़ने में असमर्थ रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि कछए के खोल को कैसे खाया जाए? वह झल्लाकर बोला, “ये कछुए भी कितने कठोर होते हैं।

    कठोरता के कारण खाए भी नहीं जाते। लेकिन आज मैं इस कछुए को ख़ाकर हा दम लगा। कितनी मुश्किल से तो मेरे हाथ में एक शिकार लगा है।” कछुआ चतुर व बुद्धिमान था। वह सियार की झल्लाहट देखकर मन ही मन मुस्कुरा दिया।

    वह बहुत ही विनीत भाव से बोला, “सियार महाशय! आप बहुत नासमझ हैं। क्या आप जानते नहीं कि कछुओं का खोल जब सूखा हुआ होता है तो वह अत्यंत कठोर होता है।

    यदि आप मुझे कुछ देर के लिए पानी में रख दें तो मेरा खोल नर्म हो जाएगा। तब आप इसे आसानी से खा पाएँगे। मैं जानता है कि आप भूखे हैं, लेकिन आपको थोड़ी-सी प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी।”

    मूर्ख सियार कछुए की बातों में आ गया। उसने तुरंत कछुए को नदी में छोड़ दिया। कछुआ एक झटके में गहरे पानी में जा पहुँचा। कछुआ वहाँ से चिल्ला कर बोला,

    “मैंने तो सुना था कि सियार चालाक होते हैं परंतु कुछ तुम्हारी तरह निपट मूर्ख भी होते हैं यह आज पता चला है। अब तुम जाकर अपने लिए भोजन ढूँढो, मैं तो चला अपने साथियों के पास।” सियार ठगा-सा रह गया। उसके पास अपनी मूर्खता पर पछताने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।

    शिक्षा: चतुराई से कपटी को पराजित किया जा सकता है।

     

    चतुर ठिठोलिया Moral Stories for Child in Hindi

    बगदाद के खलीफा के दरबार एक चतुर ठिठोलिया था। वह ठिठोलिया दिन भर खलीफा व बाकी सभी दरबारियों का तरह-तरह से मनोरंजन करता रहता था। यही कारण था कि वह खलीफा का बहुत प्रिय था।

    एक दिन खलीफा जब अपने महल में टहल रहे थे तो उन्हें अपने दरबार से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। खलीफा तुरंत अपने दरबार में पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि कुछ संतरी ठिठोलिये को निर्दयता से पीट रहे हैं।

    यह देखकर खलीफा क्रोधित हो गए और गरज कर बोले, “रुक जाओ। खबरदार! अगर किसी ने उसे मारा। जानते नहीं यह कौन है?” “यह ठिठोलिया बेहद दुष्ट हैं, जहाँपनाह! आप इसके भोलेपन पर मत जाइए।

    यह शक्ल से जितना भोला और सीधा दिखाई देता है अंदर से उतना ही दुष्ट है। इसकी रग-रग में धूर्तता समाई हुई है। आप भी इसका अपराध सुनेंगे तो इसे दंड देंगे।”, सभी संतरी एक स्वर में चिल्लाए।

    यह सुनकर खलीफा ने पूछा, “आखिर उसने ऐसा क्या किया है जो तुम भी उसे इतनी निर्दयता से मार रहे हो?” संतरी बोले, “इसकी इतनी मजाल कि अपनी औकात भूलकर आज यह हमारे जहांपनाह के तख्त पर बैठा हुआ था।

    अब आप ही बताइये कि इसका इतना बड़ा अपराध देखकर क्या हम चुप बैठ सकते थे। कोई जहाँपनाह के तख्तेताज पर नजर डाले तो हम यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।” “कोई बात नहीं। ऐसा इसने अनजाने में कर दिया होगा।

    तुम सब इसी वक्त यहाँ से दफा हो जाओ।” खलीफा ने कहा। उसके बाद खलीफा ने बहुत प्यार से ठिठोलिया से पूछा, “बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया? तुम तख्त पर क्यों बैठे थे?” परंतु ठिठोलिया उस प्रश्न का उत्तर देने की बजाए रोने लगा।

    खलीफा ने उसे समझाते हुए कहा, “रोओ मत। तुम नहीं बताना चाहते तो मत बताओ। मैं तुमसे बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। चलो अब जरा मुस्कुरा कर दिखाओ।” इस पर ठिठोलिया बोला, “जहांपनाह! मैं अपने लिए नहीं, आपके लिए रो रहा हूँ।”

    खलीफा ने आश्चर्य से पूछा, “मेरे लिए!” “बेशक जहाँपनाह! मैं आपके लिए ही रो रहा हूँ। मैं यह सोच-सोचकर रो रहा हूँ कि अगर मुझे थोड़े से समय के लिए तख्त पर बैठने पर इन संतरियों ने इतनी बर्बरता से मारा है तो इन्होंने आपको कितना मारा होगा,

    क्योंकि आप तो तख्त पर बरसों से बैठ रहे हैं।” ठिठोलिया ने कहा। यह सुनकर खलीफा ठहाके लगा कर हँस पडे और उन्होंने ठिठोलिया को उसके परिहासजनक उत्तर के लिए ढेर सारा इनाम भी दिया।

    शिक्षा: चतुराई से अद्भुत परिणाम पाए जा सकते हैं।

     

    लोभी कुत्ता Animals Moral Stories for Child in Hindi

    एक दिन एक कुत्ता बहुत भूखा था। वह भोजन की तलाश में भटक रहा था। जब उसे कहीं कुछ खाने के लिए नहीं मिला तो उसे बाजार के नुक्कड़ में स्थित कसाई की दुकान की याद आई। जब भी उसे गोश्त खाने का मन होता,

    वह कसाई की दुकान पर जाता। कसाई बची-खुची हड्डी का गोश्त का छोटा टुकड़ा उसके आगे डाल देता इसलिए आज भी वह कसाई की दुकान के सामने जा पहुँचा।

    वह कसाई की दुकान के सामने बैठ गया पर आज कसाई ने उसे अनदेखा कर दिया इसलिए चुपके से वह दुकान से माँस का एक बड़ा टुकड़ा मुँह में लेकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ।

    कुत्ते ने सोचा कि क्यों ना मांस के टुकड़े को किसी सुरक्षित स्थान पर खाया जाए जहाँ कोई और कुत्ता आकर उसके द्वारा चुराए गए मांस के टुकड़े को ना छीन सके। इसी सोच-विचार में वह आगे बढ़ रहा था।

    उसने माँस के टुकड़े को अपने मुँह में कसकर पकड़ा हुआ था। रास्ते में उसे एक नहर मिली, जिसे पार करने के लिए उस पर लकड़ी का एक पुल बना हुआ था।

    अभी वह कुत्ता आधा पुल ही पार कर पाया था कि उसकी नजर नहर के पानी में पड़ती हुई अपनी परछाई पर पड़ी। कुत्ता यह नहीं समझ पाया कि वह उसकी परछाई है।

    उसने सोचा कि पानी के अंदर कोई दूसरा कुत्ता है जो उसी के समान माँस का टुकड़ा मुँह में लिए पानी के नीचे खड़ा है। वह बहुत प्रसन्न हुआ उसे लगा कि आज निश्चय ही मेरे भाग्य के सितारे बुलंद हैं।

    इसीलिए मुझे बार-बार मांस के टुकड़े मिल रहे हैं। मुझे अचानक मिले इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसे सुनहरे अवसर बार-बार नहीं मिलते। कुत्ते के मन में लालच आ गया। उसने सोचा,

    ‘क्यों न मैं पानी के नीचे खड़े कुत्ते के मुँह से मॉस का टुकड़ा छीन लूँ। इस प्रकार मेरे पास दो टुकड़े हो जाएंगे। पता नहीं फिर कब भोजन मिले। मुझे इस मौके को गँवाना नहीं चाहिए।’

    ऐसा सोचकर वह अपनी ही परछाई पर जोर-जोर से भौंकने लगा। भौंकते ही उसके मुँह से माँस का टुकड़ा निकल कर नहर में जा गिरा।

    टुकड़ा गिरने के कारण पानी में पड़ती हुई कुत्ते की परछाई भी खो गई। अब तो कुत्ते के पास कुछ भी नहीं रह गया था। दूसरे का टुकड़ा छीन लेने की कोशिश में उसने अपना टुकड़ा भी गँवा दिया।

    शिक्षा: लालच बुरी बला है।

     

    असली राजकुमारी Best Moral Stories for Child in Hindi

    एक समय की बात है। एक देश की महारानी बहुत ही घमंडी और सनकी थी। वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी। किसी को उसका स्वभाव पसंद नहीं था पर रानी के विरुद्ध जाने की किसी की मजाल नहीं थी।

    वह अपने इकलौते पुत्र का विवाह करना चाहती थी। रानी अपने राजकुमार का विवाह दुनिया की सबसे सुन्दर व बहुत कोमल राजकुमारी से करना चाहती थी। राजकुमार के लिए देश-विदेश की कई राजकुमारियों के रिश्ते आए,

    परंतु रानी को कोई पसंद नहीं आया। हर किसी में वह कोई न कोई दोष बताकर नापसंद कर देती थी। एक से एक सुंदर और कोमल राजकुमारियाँ आई पर रानी की कसौटी पर कोई खरी नहीं उतरी।

    रानी ने बहुत रिश्ते ठुकराए हैं, यह बात आस-पास के सभी देशों में फैल गई। सभी महारानी की अद्भुत इच्छा से हैरान थे कि आखिर वह अपने पुत्र के लिए कैसी वधु चाहती हैं।

    यह बात जब एक देश की राजकुमारी को पता चली तो वह महारानी से मिलने के लिए व्यग्र हो उठी। वह महारानी से मिलकर यह जानना चाहती थी कि आखिर वे राजकुमार के लिए कैसी लड़की तलाश कर रही हैं।

    राजकुमारी ने अपने पिता को अपनी इच्छा बताई और महारानी के पास जाने की आज्ञा माँगी। राजकुमारी के पिता ने अपनी बेटी की बात को सहर्ष ही मान लिया।

    तब राजकुमारी ने एक राजदूत भेजकर रानी को संदेश भिजवाया कि वह अमुक दिन रानी से मिलने आएगी। राजकुमारी की प्रस्तावित यात्रा को महारानी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और महल का एक बहुत सुंदर कमरा राजकुमारी के स्वागत के लिए तैयार करवा दिया।

    राजकुमारी महल में पहुँची तो रानी ने उसका भव्य स्वागत कर उसे उसके कमरे में ठहरा दिया। राजकुमारी बहुत सुंदर थी। अत: रानी को राजकुमारी अच्छी सुन्दर लगी परंतु वह कितनी कोमल है,

    यह जाँचने के लिए रानी ने राजकुमारी के पलंग पर मटर के दो दाने बिखेर कर उसके ऊपर बीस गद्दे बिछा दिए। रात को राजकुमारी पलंग पर लेटी तो उसे नींद नहीं आ पाई। मटर के दो दाने उसे रात भर चुभते रहे।

    उसने पूरी रात करवट बदल-बदलकर काटी। सुबह जब राजकुमारी जागी तो उसके सारे शरीर में दर्द हो रहा था। उसकी पीठ पर जगह-जगह नील पड़ गए थे।

    यह देखकर महारानी समझ गई कि यह उसके मापदंड पर खरी उतरने वाली राजकुमारी है। जो सुन्दर भी है और अत्यंत कोमल भी है। महारानी ने घोषणा कर दी कि उन्हें अपनी मनपसंद वधू मिल गई है।

    रानी ने धूम-धाम से विवाह की तैयारी शुरू कर दी। नववधू के बेशकीमती हीरे और रत्नों से जड़ित आभूषण बनवाए गए। विवाह में राजकुमारी ने एक भी गहना पहनने से इनकार कर दिया।

    कारण उसके कोमल अंग गहनों का भार सहन नहीं कर सकते थे। रानी यह देखकर बहुत दुखी हुई। उन्हें अपनी भूल पर पश्चाताप होने लगा कि उसने जिद में आकर इतनी कोमल वधू क्यों चुनी।

    शिक्षाः हठ का परिणाम बुरा होता है।

     

    मूर्ख गधा Moral Stories for Child in Hindi for Students

    एक समय की बात है। एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। उसने बोझा ढोने के लिए एक गधा पाला हुआ था। वह गधे पर विभिन्न प्रकार का सामान लाद कर बाजार में बेचने के लिए ले जाता था। यही उसकी आमदनी का जरिया था।

    व्यापारी क्रूर व्यक्ति था। वह हमेशा गधे पर अत्यधिक भार लादता था जिसके कारण बेचारा गधा बहुत ही मुश्किल से चल पाता था। उसका मानना था जितना अधिक सामान उतनी अधिक बिक्री और इतना अधिक पैसा।

    वह कभी गधे के बारे में नहीं सोचता था। एक दिन व्यापारी ने गधे के ऊपर नमक के भारी-भरकम बोरे लाद दिए। गधा इतना भार उठा कर बहुत ही धीमी गति से चल पा रहा था।

    उसके लिए नमक से भरे बोरों का भार उठाना मुश्किल हो रहा था। बाजार पहुँचने के लिए रास्ते में एक नहर पार करनी पड़ती थी। उस दिन नहर पार करते हुए गधे को किसी पत्थर से ठोकर लगी और वह नहर में गिर गया।

    इस कारण थोड़ा नमक पानी में घुल गया। व्यापारी ने गधे को नहर से बाहर निकाला। जब गधा नहर से बाहर निकलकर फिर से अपने पैरों पर उठ खड़ा हुआ तो उसे लगा कि उसकी पीठ पर भार कुछ कम हो गया है।

    मूर्ख गधा यह मानने लगा कि पानी में भीगने से सभी वस्तुएँ हल्की हो जाती हैं। कुछ दिन बाद व्यापारी ने गधे की पीठ पर रूई के कुछ बोरे लाद दिए। यद्यपि रूई के बोरों का बोझ अधिक नहीं था,

    परंतु वह गधा उसे और हल्का करना चाहता था। इसलिए जब वह नहर पार करने लगा तो वह जानबूझ कर लड़खड़ा कर नहर में गिर गया। परंतु इस बार बोरों में भरी रूई पानी को सोख कर और अधिक भारी हो गई।

    जब गधे ने उठने की कोशिश की तो उसने पाया कि रूई के भार से वह खड़ा भी नहीं हो पा रहा है। तभी व्यापारी उसे नहर से बाहर निकालने आ गया। गधे को उठता देखकर व्यापारी ने उस पर कोड़े बरसाने शुरू कर दिए।

    कोड़े खाकर गधे को मजबूरन खड़े होकर सारा भार उठाना पड़ा। अब गधे को यह आभास हो गया कि भीगने से सभी वस्तुऐं हल्की नहीं होतीं अपितु कुछ वस्तुएँ भारी भी हो जाती हैं।

    इस प्रकार मुर्ख गधे को सबक मिल गया और वह समझ गया कि कार्य को सदा संक्षिप्त रूप देने की कोशिश से वह बिगड़ भी सकता है। इसलिए परिणाम के बारे में अच्छी तरह सोच-विचार कर ही कार्य करना चाहिए।

    शिक्षा: कोई भी कार्य करने से पहले सोच-विचार करना चाहिए।

     

    किसान तथा उसके पुत्र Moral Stories for Kids in Hindi

    एक बार एक गाँव में एक किसान रहता था। किसान के चार पुत्र थे जिन्हें एक दूसरे से कोई लगाव नहीं था वे सदैव एक दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे

    चारों पुत्रों का आपसी व्यवहार किसान के लिए चिंता का गंभीर विषय बना हुआ था। किसान को अपने पुत्रों का भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था। बहुत सोच विचार करने पर किसान ने मन ही मन एक योजना बनाई।

    एक दिन वह बिस्तर पकड़ कर लेट गया और ऐसा जताने लगा जैसे उसका अंतिम समय निकट हो। फिर उसने अपने चारों पुत्रों को बुलाया और कहा,

    “मेरे प्रिय पुत्रो! अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ और किसी भी समय इस दुनिया को छोड सकता हूँ। मेरी ऑंतिम इच्छा है कि तुम लोग मुझे लकड़ी का एक गट्ठर ला कर दो।”

    किसान के पुत्रों ने सोचा कि हमें कम से कम अपने पिता की अंतिम इच्छा तो  अवश्य पूरी करनी चाहिये। ऐसा सोचकर चारों लड़कों ने पेड़ की छोटी-छोटी टहनियों को काटकर उसका गट्ठर बनाया और अपने पिता को दे दिया।

    किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने अपने चारों पुत्रों को एक-एक कर के लकड़ी का गट्ठर तोड़ने के लिए कहा। चारों पुत्रों ने एक एक करके अपनी पूरी शक्ति से लकड़ी का गट्ठर तोड़ने की कोशिश की परंतु कोई भी सफल नहीं हो पाया।

    अब किसान ने अपने ज्येष्ठ पत्र को गटठर खोलने के लिए कहा। गट्ठर खुलने के बाद किसान ने सभी छात्रों को एक-एक लकड़ी का टुकड़ा दिया और उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी भाईयों ने ऐसा चुटकियों में लकड़ियाँ तोड़ दीं।

    उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनका पिता आखिर चाहता क्या है? क्या यह बांवरा हो गया है जो व्यर्थ के कामों में हमें उलझा रहा है। फिर किसान ने अपने पुत्रों से कहा, “मेरे बच्चो! मैं जल्दी ही यह संसार त्यागने वाला हूँ।

    यदि मेरे बाद तुम इस लकड़ी के गट्ठर के समान संयुक्त हो कर रहोगे तो कोई भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। परंतु यदि तुम गट्ठर से अलग हुई लकड़ियों के समान रहोगे तो तुम सब एक-एक करके पराजित हो जाओगे।”

    पिता की बात चारों की समझ में आ गई थी। वे चारों एक स्वर में बोले, “पिताजी! हम आपसे वादा करते हैं कि अब हम आपस में कभी नहीं लड़ेंगे। हमेशा मिल-जुलकर रहेंगे।” किसान ने अपने चारों पुत्रों को गले से लगा लिया।

    शिक्षा: एकता में शक्ति है।

     

    सच्चा मित्र Moral Stories for Children in Hindi for Friends

    एक जंगल में एक खरगोश रहता था। वह बहुत नेक दिल जानवर था। वह सबके साथ मित्र भाव से रहता था। वह अक्सर सबकी सहायता किया करता था। यूँ तो सभी जानवर उसके दोस्त थे लेकिन घोड़ा,

    सांड और मेढ़ा से उसकी ज्यादा पटती थी। जंगल के सभी जानवर खरगोश के अच्छे स्वभाव की प्रशंसा किया करते थे। वे प्रायः खरगोश से कहते थे, “तुम हमारे लिए इतना कुछ करते हो।

    कभी हमें भी मौका दो कि हम भी तुम्हारे लिए कुछ कर सकें।” एक दिन खरगोश के पीछे कुछ शिकारी कुत्ते पड़ गए। खरगोश निकट ही एक झाड़ी में छुप गया।

    खरगोश के मन मे र आया कि इस समय यदि वह किसी मित्र की सहायता ले तो वह जंगली कुत्तों से बच सकता है। वैसे भी वह अपने दोस्तों की कितनी ही बार मदद कर चुका है।

    तभी अचानक उसका एक दोस्त घोड़ा झाड़ियों के पास से निकला। खरगोश घोड़े को देखकर बहुत खुश हुआ। उसे अपने बचने की आशा दिखाई देने लगी। उसने घोड़े से अपने बचाव के लिए सहायता मांगी तो घोड़ा बोला,

    “माफ करना मित्र! मैं तुम्हारी सहायता जरूर करता, लेकिन इस समय मैं जरा जल्दी में हूँ” और ऐसा कह कर घोड़ा तत्काल वहाँ से चला गया। कुछ समय बाद खरगोश का एक दूसरा मित्र वहाँ से गुजरा।

    वह एक पैने सींगों वाला तंदरूस्त साँड था। खरगोश ने साँड से भी सहायता माँगी परंतु साँड ने भी कहा, “मुझे क्षमा करना मित्र! मेरे कुछ मित्र मैदान में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुझे पहले ही बहुत देरी हो चुकी है,

    अब मैं और देर नहीं कर सकता। मुझे वहाँ शीघ्र पहुँचना है।” उसके बाद वहाँ से खरगोश का तीसरा मित्र एक मेढ़ा निकला। खरगोश ने उससे भी सहायता माँगी। मेढ़ा बोला, “मित्र! शिकारी कुत्तों से लड़ना मेरी प्रतिष्ठा पर ठेस होगी।

    इसलिए मैं इस विषय में आपकी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा।” खरगोश को समझ में आ गया था कि झूठे मित्र खतरे के समय साथ नहीं देते इसलिए उन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।

    अब तक शिकारी कुत्ते खरगोश के बहुत निकट आ चुके थे। उन्होंने खरगोश को झाड़ियों में से खींचा और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस प्रकार बेचारे खरगोश को अपने झूठे दोस्तों के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी।

    शिक्षा: जो विपत्ति में साथ दे वही सच्चा मित्र है।

     

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